आई स्पेशल

पवन नौटियाल

- मानसून में वन विभाग ने बना डाले करीब 2 लाख ट्रंचेज

- करीब 3000 लोगों की फौज ने बनाए ट्रंचेज

- करीब साढ़े 10 करोड़ का है प्रोजेक्ट

DEHRADUN: मानसून से पहले ही सूबे की सरकार ने जंगलों में हर साल फैलने वाली आग से सबक लिया है। पिछली गर्मियों के सीजन में उत्तराखंड में करीब तीन हजार हेक्टेयर वन भूमि वनाग्नि से खाक हो गई थी। सरकार पर तामाम आरोप लगे थे कि वो जंगल की आग के लिए पहले से सचेत नहीं थी। इसलिए सरकार ने योजना बना ली थी कि इस बार जंगलों की आग से निपटने के लिए खासकर उन जंगलों में खास उपाय कर लिए जाए जहां चीड़ के पेड़ सबसे ज्यादा हैं। इस योजना के तहत वन विभाग ने पहाड़ के जंगलों में ट्रंचेज बनवाए हैं। इन ट्रंचेज में बरसात का पानी जमा होगा और फिर गर्मियों के दिनों में भी जंगलों में नमी बनी रहेगी, इससे जंगलों में आग नहीं फैलेगी।

क्या हैं ये ट्रंचेज ?

दरअसल वन विभाग ने चीड़ के जंगलों में एक खास टाइप के गढ्डे खुदवाए हैं। इनको खास तरह के साइज में खुदवाया गया है। इन खढ्डों में बरसात का पानी जमा हो जाएगा तो ये पानी जमीन के अंदर रिसेगा और फिर जंगल की जमीन पर नमी बनी रहेगी। ये एक तरह का रेन वॉटर हार्वेस्टिंग है। इन ट्रंचेज का एक खास साइज है। ये करीब साढ़े तीन मीटर लंबे और ब्0 सेंटीमीटर चौड़े हैं। इनकी गहराई सिर्फ एक फीट रखी गई है यानि करीब फ्0 सेमी। ये इसलिए किया गया है ताकि इसमें कोई जंगली जानवर भी न फंसे।

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प्रोजेक्ट का कितना खर्चा ?

पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में ट्रंचेज बनाने के इस प्रोजेक्ट का खर्च करीब साढ़े क्0 करोड़ है। इसमें से करीब 7 करोड़ रुपये सीएएमपीए यानि कंपनसेंट्री फॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी की तरफ से जुटाया गया है। प्रिंसिपल चीफ कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट्स राजेंद्र महाजन के मुताबिक इस प्रोजेक्ट के लिए कुछ और फंड इंटरनेशनल डोनेटर्स के मार्फत भी आ सकता है। ये इंटरनेशनल एजेंसीज संपर्क बनाए हुई हैं। महाजन ने कहा कि सीएम से अपील की गई है कि इस बजट को करीब भ्0 करोड़ तक ले जाया जाए। महाजन ने बताया कि जंगलों में बने ट्रंचेज से संचित किए गए पानी से पहाड़ों के गांवों में रहने वाले लोगों को भी फायदा होगा और उन्हें ये पानी पीने के लिए भी मिल पाएगा।

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मैदानों में नहीं भड़केगी आग

जंगलों में बनाए गए ट्रंचेज प्रोजेक्ट का एक सबसे बड़ा फायदा ये है कि इससे मैदानी इलाकों में आगजनी की घटनाओं पर रोक लग जाएगी। इससे दूहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर जैसे उत्तराखंड के जिलों के जंगलों में आगजनी की घटनाएं नहीं होंगी।

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सूबे के वन महकमे को दूधातोली के पाणी राखो प्रोजेक्ट से सीख लेनी चाहिए। दूधातोली के जंगलों में आग कई सालों से लगी ही नहीं। चाल-खाल की परंपरा पहाड़ों में ढाई सौ साल पुरानी है, तब भी जंगल हमेशा भभकते रहते हैं। जंगलों में चाल-खाल जैसी योजनाओं के लिए लगातार काम करने की जरूरत है और नए जमाने में नए हिसाब से इन योजनाओं पर काम किया जाता है। भ्0 करोड़ हों या क्00 करोड़ की योजनाएं, इन पर वैज्ञानिक तरीके से काम किए जाने की जरूरत है। इसका मॉड्यूल उफरैंखाल है।

सच्चिदानंद भारती, प्रणेता, पाणी राखो।