- वन सर्वेक्षण निदेशालय ने किया है इसरो से करार

- मॉडीज और एसएनबीपी सेटेलाइट से दिन में दो बार मिल रही जानकारी

- सेटेलाइट से लैटिट्यूड व लॉन्गिट्यूट की जानकारी मिलने के बाद बीट लेबल पर दी जाती है सूचना

DEHRADUN: दुर्गम पहाड़ी इलाकों पर जंगलों में आग लगने की जानकारी कई दिनों तक न मिल पाने की समस्या इस बार हल हो गई है। सेटेलाइट से वनों में लगी आग की जानकारी वन विभाग को मिलने लगी है। हालांकि यह सूचना लैटिट्यूड और लॉन्गिट्यूड के रूप में मिलती है, लेकिन इस सूचना का विश्लेषण करके वन विभाग द्वारा सूचना को कंपार्टमेंट लेबल यानी फॉरेस्ट गार्ड लेबल तक भेजा जाती है। दो सेटेलाइट्स के माध्यम में हर दिन तीन बार वन विभाग को आग लगने वाले स्थानों की जानकारी उपलब्ध होती है।

इसरो से समझौता

यह जानकारी वन विभाग को भारतीय वन सर्वेक्षण निदेशालय के सौजन्य से मिलती है। निदेशालय और इसरो की बीच हुए एक समझौते के अनुसार मॉडीज और एसएनपीबी सेटेलाइट के माध्यम से वनों में संभावित आग वाले क्षेत्रों की जानकारी दी जा रही है।

सेटेलाइट की प्रक्रिया

मॉडीज सेटेलाइट 24 घंटे में दो बार और एसएनबीपी एक बार उत्तराखंड के ऊपर से गुजरते हैं। मॉडीज सुबह और शाम को साढ़े 10 बजे के करीब और एसएनपीबी आधी रात के बाद 1.30 बजे सूचना भेजता है। मॉडीज की सूचना में 1 वर्ग किमी क्षेत्र को इंगित किया जाता है, लेकिन एसएनपीबी 375 वर्ग मीटर के दायरे की सूचना प्रेषित करता है।

तीन सूचनाएं

ये सेटेलाइट अपनी सूचना में संबंधित क्षेत्र के टेंप्रेचर, ह्यूमिडिटी और ब्राइटनेस की सूचना देते हैं। इनके आधार में उस क्षेत्र में आग लगी होने का अनुमान लगाया जाता है। वन मुख्यालय से सूचना को तुरन्त मैप के माध्यम से अथवा जगह के नाम के साथ संबंधित क्षेत्र के फॉरेस्ट गार्ड तक भेज दिया जाता है।

क्रू स्टेशन भी महत्वपूर्ण

आग का पता लगाने में वन विभाग के क्रू स्टेशन भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। क्रू स्टेशन पर 5 से 7 फायर गार्ड लगाये गये हैं। इस काम में स्थानीय लोगों को मनरेगा के बराबर मजदूरी देकर काम पर लगाया जाता है। क्रू स्टेशन पर मौजूद लोग अपने पूरे क्षेत्र पर नजर रखते हैं और आग दिखते ही अधिकारियों को सूचना देकर बुझाने के प्रयास शुरू कर देते हैं।

अब तक 54 घटनाएं

इस सीजन में अब तक राज्य में आग की 54 घटनाएं हो चुकी हैं। इनमें 50 हजार 125 रुपये का नुकसान होने का अनुमान लगाया गया है। आग की सबसे ज्यादा 26 घटनाएं टिहरी जिले में हुई हैं। पौड़ी में 11, अल्मोड़ा में 5 और चमोली में 4 घटनाएं हुई हैं। अब तक सबसे ज्यादा नुकसान अल्मोड़ा में हुआ है जहां करीब 15000 रुपये का नुकसान आंका गया है। नैनीताल में हुई 2 घटनाओं में 13 हजार 500 रुपये और पौड़ी में 11 हजार 250 रुपये का नुकसान हुआ है।

आग की कुछ घटनाएं हुई हैं, लेकिन इन पर काबू कर लिया गया। सेटेलाइट से मिली सूचनाओं से भी मदद मिल रही है। इस बार आग की ज्यादा घटनाओं की आशंका के चलते सभी व्यवस्थाएं पहले ही कर दी गई हैं।

- बीपी गुप्ता, नोडल ऑफिसर, फॉरेस्ट फायर।