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JAMSHEDPUR: बच्चे देश के भविष्य हैं, लेकिन इस भविष्य का वर्तमान किस कदर नशे की गिरफ्त में है, इसकी बानगी टाटानगर रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द देखी जा सकती है। यहां सुलेशन सूंघते, नशे में लड़खड़ाते और हाथ में नशे की पुडि़या हर पल साथ लेकर घूमने वाले बच्चों को देखते ही पता चल जाता है कि अब यही इनकी जिंदगी बन चुकी है। शहर में बच्चों के लिए काम करने वाली समाजिक संस्था बाल मुक्ति सेवा संस्थान के एक सर्वे के अनुसार जमशेदपुर में कुल क्ब्,ब्9फ् बच्चे ऐसे हैं, जो किसी न किसी नशे के शिकार है। इनमें सबसे ज्यादा सुंघनेवाले नशे के आदी क्0,8ब्भ् बच्चे हैं। इनकी सबसे अधिक संख्या टाटानगर रेलवे स्टेशन पर ही देखने को मिलती है। यहां रेलवे प्लेटफॉर्म से लेकर सर्कुलेटिंग एरिया में ऐसे सैकड़ों मासूम देखने को मिलेंगे, जो नशा सूंघकर अलग दुनिया में खोए रहते हैं।
कम पैसे में घातक नशा
नशे के लिए सुलेशन के इस्तेमाल के बारे में जब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट के रिपोर्टर ने पड़ताल की तो पता चला कि यह कम पैसे में सबसे घातक नशा है। महज क्0 से क्भ् रुपए में सुलेशन की एक ट्यूब आसानी से कहीं भी मिल जाती है। सुलेशन ट्यूब को बच्चे प्लास्टिक की थैलियों में भरकर पूरा दिन सूंघते रहते हैं।
करते हैं नशे का जुगाड़
टाटानगर रेलवे जंक्शन पर क्0 से क्ख् वर्ष तक के करीब 70 से 80 मासूम दिन-रात भटकते हैं। ये कूड़ा बीनते हैं, भीख मांगते हैं और नशा करत हैं। बस इनकी जिंदगी इतनी सी ही है और रेलवे स्टेशन से लेकर गुदरी मार्केट तक ही इनकी दुनिया है। ये मासूम प्लेटफार्म पर पैसेंजर्स द्वारा पानी पीकर रेल पटरियों पर फेंके गए बोतल को बिनकर इसमें दोबारा पानी भरकर जनरल कोच के पैसेंजर्स को बेच देते हैं और इनसे होने वाली आमदनी से ये अपने नशे का जुगाड़ कर लेते हैं।
सुलेशन ही सबकुछ
रेलवे स्टेशन पर धूम रहे मासूम बच्चे अपने हाथों में प्लास्टिक की थैली लिए नजर आते हैं, जिसे मुंह में लगाकर वे गुब्बारे की तरह फुलाते हैं। दूर से देखने पर ऐसा लगता है कि बच्चे खेल रहे हैं, लेकिन जब इसके पीछे की सच्चाई जानने की कोशिश की गई तो एक डरावना सच सामने आता है। दरअसल नशे के आदी हो चुके ये बच्चे पंक्चर ठीक करने में काम आने वाले सुलेशन को प्लास्टिक की थैलियों में भर लेते हैं और उसे पूरा दिन इसे सुंघते रहते हैं। इसका कश भरकर बच्चे नशे में चूर रहते हैं।
काम नहीं आती कोशिश
जीआरपी, आरपीएफ इन्हें नशा करते देखकर डांटकर भगा देते हैं, तो कई स्वयंसेवी संस्थाएं इन्हें सुधारने की कोशिश भी करती हैं, लेकिन किसी का प्रयास काम नहीं आता। ये थोड़ी देर के लिए सुधरे भी तो फिर उसी रास्ते पर चले जाते हैं। स्वयंसेवी संस्था बाल मजदूर मुक्ति सेवा संस्थान के सदन कुमार ठाकुर बताते हैं कि बच्चों की काउंसलिंग कर इन्हें मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की गई थी। कुछ ने तो अपनी जिंदगी बदल ली, मगर सही तरीके से काउंसलिंग नहीं होने के कारण बाकी बच्चे फिर उसी दलदल में लौट गए।
बढ़ रही नशे की लत
बाल मजदूर मुक्ति सेवा संस्थान द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार शहर के बच्चों में नशे की लत लगातार बढ़ रही है। वर्ष ख्0क्फ् में कुल क्क्,भ्8म् बच्चें नशे की चपेट में थे, जो अब बढ़कर क्ब्,ब्9फ् तक पहुंच गया है। इसमें लड़कों की संख्या 9,फ्ब्फ् व लड़कियों की संख्या भ्,क्भ्0 है।
करनी होगी ये कोशिश
- चूंकि इन बच्चों का परिवार नहीं होता, इसलिए इन्हें कृत्रिम परिवार में रखना चाहिए।
- इन्हें खेल-कूद से जोड़ा जाए। साथ ही अन्य समाजिक गतिविधियों में सक्रिय किया जाए।
- ऐसे बच्चों को बस नशे से अलग रखना ही नहीं बल्कि एंगेज रखना भी जरूरी है।
- बच्चों के स्कूल भेजा जाना सबसे अधिक जरूरी है, ताकि उन्हें एक अच्छा माहौल मिल सके।
- जबतक इन बच्चों को फ्रेश सोसायटी नहीं मिलती, उन्हें नशे से दूर नहीं किया जा सकता है।
- नशे का मुख्य कारण इनका समाजिक विघटन है। इसलिए इनका समाजीकरण सबसे ज्यादा जरूरी है।
- प्राइमरी कंट्रोलिंग एजेंसी परिवार है। वहीं, सेकेंड्री कंट्रोलिंग एजेंसी स्कूल वगैरह है। इनसे बच्चों को जोड़ना होगा।
कौन सा नशा कितने आदी
गांजा : ख्,8ब्म्
शराब : म्भ्ब्
अफीम : 9भ्
हुक्का चिल्लू : फ्भ्
चरस : क्8
नशे के दूसरे प्रकार : क्0,7ब्भ्
किस एरिया में कितने नशेड़ी
एरिया संख्या
सीतारामडेरा क्ख्9भ्
बहरागोड़ा क्0ब्0
बिरसानगर क्007
मानगो 977
साकची 9म्भ्
बागबेड़ा 778
टेल्को 777
घाटशिला 70भ्
पोटका म्99
बिष्टुपुर म्फ्7
परसुडीह भ्9फ्
गोविंदपुर भ्फ्फ्
सोनारी भ्08
आजादनगर भ्07
जुगसलाई भ्0ख्
कदमा ब्ब्भ्
एमजीएम ब्क्8
उलीडीह ब्क्भ्
मुसाबनी ब्क्भ्
सुंदरनगर ब्क्फ्
सिदगोड़ा 09
श्यामसुंदरपुर फ्08
70-80
मासूम रेलवे स्टेशन के इर्द-गिर्द घूम करते हैं नशा
क्ख्
वर्ष से कम उम्र के हैं अधिकतरच्बच्चे
0भ्
लाख के सुलेशन का होता है रोज जिलेभर में कारोबार
क्भ्
रुपए दाम है सुलेशन की एक ट्यूब का