- आरटीओ ऑफिस में फ्रॉड पकड़े जाने पर कराया जाता समझौता

- कई बार हुआ फ्रॉड, नहीं मिला गुनाहगार

- कार्रवाई नहीं होने से दलालों के हौसले बुलंद

GORAKHPUR: आरटीओ ऑफिस में एनओसी से लगाए फर्जी कागज लगाकर गाड़ी ट्रांसफर के मामले कई आते रहते हैं। यही नहीं यहां गाड़ी ट्रांसफर कराकर कई लोग तो उस पर दो-दो जगहों से लोन तक करा लेते हैं। ऐसे भी मामलों से आरटीओ विभाग शर्मसार होता रहा है। लेकिन इन मामलों से आरटीओ विभाग पर कोई फर्क नहीं पड़ता। फ्रॉड जैसे कोई भी मामले शुरू-शुरू में तो गरम रहते हैं लेकिन धीरे-धीरे वे ठंडे होने लगते हैं। इस बात की खबर आरटीओ के जिम्मेदारों को अच्छे से है। इस एक्सपीरियंस का फायदा उठाते हुए आरटीओ विभाग मामले को ठंडा कर दोनों पक्षों को समझाकर समझौता करा देता है। जिसकी देन है कि आज तक आरटीओ में करप्शन कभी पकड़ा नहीं जाता है, आखिर कौन है गुनाहगार ये एक सवाल बनकर रह जाता है।

समझौते से दलालों के हौसले बुलंद

आरटीओ विभाग में दलालों की पकड़ कितनी अंदर तक है इसका पता इसी से लग जाता है कि खुद अधिकारी भी इनकी पैरवी करते हैं। जिसके कारण दलालों के हौसले इतने बुलंद हो गए हैं कि बड़ी से बड़ी शिकायत पर वे खुद आकर आरटीओ ऑफिस में अपनी पैरवी करते हैं। वहीं पीडि़त इनके डर से छिपता फिरता है।

होता है फ्रॉड, गुनाहगार कोई नहीं

बाहर की टीम अगर आकर छापा ना मारे तो कभी आरटीओ ऑफिस में कोई गलत काम नहीं होता है। ऐसा इसलिए यहां मामला संभालने के लिए जिम्मेदार बैठे हुए हैं। कोई भी बड़ा से बड़ा मामला हो उसे यहां बैठे जिम्मेदार दबा देते हैं। इसके कारण आज भी अंदर से बाहर तक दलालों की तूती बोलती है।

केस-1

पिपराइच इलाके के दुर्विजय सिंह ने चोला मंडल फाइनेंस कंपनी से एक ट्रक यूपी-52-टी-2944 फाइनेंस कराया। जिसमें कंपनी ने 11 लाख रुपए लोन दिए। दुर्विजय सिंह की गाड़ी उनके ही एक जानने वाले शख्स ने ये कहकर ली कि वो लोन जमा करते रहेगा। लेकिन जब लोन की किश्त टूटने लगी तब फाइनेंस कंपनी के कर्मचारी दुर्विजय के घर पहुंचे। उन्होंने उन्हं जल्द जल्द लोन जमा करने को कहा। इसके बाद दुर्विजय किसी काम से आरटीओ ऑफिस पहुंचे तो वहां अपनी गाड़ी का स्टेटस पता किया तो पता चला कि गाड़ी दूसरे के नाम पर हो गई है। इसके बाद सीएम और डीएम के पास दुर्विजय ने शिकायत की। बाद में ज्यादा प्रेशर पड़ने पर आरटीओ अधिकारी ने इसकी जांच की तो पता चला कि फर्जी एनओसी लगा गाड़ी ट्रांसफर की गई थी। जिसके बाद आरटीओ ने फर्जीवाड़ा करने वाले के खिलाफ कोई कार्रवाई तो नहीं की लेकिन खानपूर्ति के लिए एक बार फिर दुर्विजय के नाम पर गाड़ी कर दी। हालत ये है कि आज तक दुर्विजय को अपनी गाड़ी नहीं मिल पाई है।

केस-2

शाहपुर के मनोज सिंह ने 2012 में एक नैनो कार टाटा से फाइनेंस कराई थी। तभी कार पंजीयन भी आरटीओ से हुआ और उन्हें यूपी-53-एवाई-7088 मिला। एक साल में उन्होंने बैंक का लोन 70 हजार रुपए जमा कर दिया। इसके बाद जब वो कार बेचने जा रहे थे तब पता चला कि कार तो उनके नाम से ही नहीं है। लंबी भागदौड़ के बाद भी कुछ पता नहीं चल सका। बाद में आजमगढ़ में कार की लोकेशन मिली। जहां पर कार तीन बार बिक चुकी थी। इस मामले में भी कोई गुनाहगार नहीं मिला।

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