पुलिस ने दी जानकारी  

पुलिस की ओर से यह अनुमान लगाया गया है कि इन लोगों ने 1500 से ज्यादा लोगों को ठगा है। जानकारी देते हुए क्राइम ब्रांच की प्रभारी एएसपी प्रतिभा मैथ्यू कहती हैं कि ठगी की पहली शिकायत ग्वालियर के रेलवे कर्मचारी सुरेंद्र सिंह की थी। सुरेंद्र सिंह ने एक अप्रैल 2015 को 17 लाख रुपए ठगे जाने की शिकायत क्राइम ब्रांच में दर्ज कराई थी। उसके बाद क्राइम ब्रांच को छानबीन में 50 दिन लगे और इतने दिनों में जांच के बाद पुलिस दिल्ली से संचालित इस गिरोह तक पहुंच गई। बताया गया है कि गिरोह का मास्टरमाइंड सुमित रंजन है। उसने एमबीए किया है और इंग्लैंड में भी रह चुका है।

प्रारंभिक जांच में हुआ खुलासा

गिरोह को लेकर हुई प्रारंभिक जांच में इस बात का खुलासा हुआ है कि गिरोह का नेटवर्क मध्यप्रदेश के साथ-साथ उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात और महाराष्ट्र के अलावा देश के कई राज्यों तक फैला है। गिरोह को शिकंजे में लेने के बाद पुलिस ने उसके सदस्यों से पूछताछ की, तो पता चला कि इसके सदस्य उन लोगो से संपर्क करते थे, जिनकी पॉलिसी लैप्स हो जाती थी। वह लोग उन्हें लैप्स हो चुकी पॉलिसी का बोनस दिलाने का वादा करते थे और उसके ही नाम पर लाखों रुपये उनसे निकलवा लेते थे।

इंश्योरेंस अथॉरिटी के प्रतिनिधि के रूप में देते थे परिचय

उन्होंने यह भी कबूल किया कि वह सभी सदस्य लोगों को अपना परिचय इंश्योरेंस अथॉरिटी के प्रतिनिधि के रूप में देते थे। पॉलिसी में फंसे पैसे को वापस दिलाने के अलावा वह खाली जमीन पर टॉवर लगवाने की बात भी करते थे। इन बातों के साथ वह लोगों से मोटी कमाई करते थे। एएसपी मैथ्यू ने बताया कि यह लोग  बीमा पॉलिसी के बोनस, लोन, मोबाइल टॉवर लगवाने के नाम पर लोगों से पैसे ऐंठते थे। जांच में मिले दस्तावेजों के आधार पर अब तक करीब 1500 लोगों के साथ ठगी की जा चुकी है। गिरोह ने एक व्यक्ति से 5 से 10 लाख रुपए की ठगी की है। अब तक ये लोग 100 करोड़ से ज्यादा की ठगी कर चुके हैं।

कस्टमर केयर भी था उपलब्ध

इस फर्जीवाड़े को असली बताने के लिए गिरोह के सुमित रंजन ने हरसंभव कोशिश की थी। इसके लिए उसने बकायदा कंपनियों की साइट भी तैयार की थी। लोगों को अपने जाल में फंसाने के लिए एक कस्टमर केयर भी बनाया था। ऐसे में अगर कोई व्यक्ति उस कस्टमर केयर पर शिकायत करता था तो उसे कुछ महीनों के लिए टाला जाता था। इसके बाद भी अगर शिकायत बंद नहीं होती थी तो ये लोग कस्टमर केयर का नंबर ही बदल देते थे।

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