भगत सिंह से प्रभावित रहा बचपन
अब्बास अली बचपन से ही वे भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा से काफी प्रभावित थे. भगत सिंह के प्रभाव में ही अली ने हाई स्कूल में पढ़ते समय भगत सिंह द्वारा बनाई गई नौजवान भारत सभा को जॉइन किया था. इसके बाद अली के कई दोस्तों ने भी भारत सभा जॉइन की. इसके बाद वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने चले गए जहां उनकी मुलाकात कुंवर अशरफ मुहम्मद से हुई. इसके साथ ही अली ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़ गए. इसके बाद वर्ष 1939 में अली ब्रिटिश सेना से जुड़े और वर्ल्ड वॉर 2 में यूनाइटेड इंडिया के साथ दक्षिण पूर्व एशिया में कई लोकेशंस पर तैनात भी रहे.

आजाद हिंद फौज जॉइन की
3 जनवरी 1920 को उत्तर प्रदेश के खुर्जा में पैदा होने वाले अब्बास अली ने द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आजाद हिंद फौज को जॉइन किया. इसके बाद ब्रिटिश हुकूमत ने सरकार से बगावत करने के जुर्म में मृत्युदंड की सजा सुनाई थी. लेकिन भारत के आजाद होते ही अली पर लगे सभी कानूनों को हटा लिया गया. इसके बाद वह वर्ष 1948 में आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और डा राम मनोहर लोहिया के करीब आए. इस दौरान अली ने समाजवादी आंदोलनों में भाग भी लिया.

कांग्रेसी राज में गए सैकड़ों बार जेल
1967 में उत्तर प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की गैर कांग्रेसी सरकार बनवाने वाले अब्बास अली को कांग्रेस राज में कई बार जेल जाना पड़ा. वर्ष 1948-1974 के बीच कई आंदोलनों में भाग लेने के कारण उन्हें 50 से भी ज्यादा बार गिरफ्तार किया गया. इसके साथ ही आपातकाल के दौरान अब्बास अली के ऊपर डीआइआर (डिफेंस ऑफ इंडिया रूल) और मीसा (मेंटीनेंस ऑफ इंटरनल सेक्योरिटी एक्ट) लगाया गया. इन आरोपों में वह 19 महीने तक जेल में रहे और 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद जनता पार्टी की यूपी यूनिट के पहले अध्यक्ष बने. इसके साथ ही 1978 में उन्हें पहली बार उत्तर प्रदेश की विधान परिषद में छह साल के लिए सदस्य चुना गया. वे छह वर्ष तक उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्य रहे.

जीवन की कहानी हुई शब्दों में बयां
जीवन भर देश की सेवा करने वाले अब्बास अली ने 90 वर्ष के आत्मकथा 'रहूं किसी का दास्तेनिगर-मेरा सफरनामा' लांच की. इस किताब को 2008 में लांच किया गया.

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