वन महोत्सव एक औपचारिकता
काम से छुट्टी मिलती है तो हम शुद्ध हवा की तलाश में पहाड़ों की सैर पर निकल जाते हैं। लेकिन अपने शहर को अपने हाथ से एक पेड़ भी नहीं दे सकते। उसकी सारी जिम्मेदारी हमने सरकार पर छोड़ दी है। और सरकारी हुक्मरान काम के बोझ में इतने ज्यादा दबे हैं कि उनके लिए वन महोत्सव एक सालाना औपचारिकता है.
कागजी खानापूर्ति
दरअसल वन महोत्सव में जिन लाखों पेड़ों को लगाने का दावा किया जाता है उनमें से अधिकांश कागजों में लगते हैं। हर साल वन विभाग दो लाख से पांच लाख पेड़ लगाने का लक्ष्य रखता है, उसका बजट भी तय होता है, लेकिन उन पेड़ों को गिनने वाला कोई नहीं। जो दावे के दस या बीस प्रतिशत पेड़ लगाए भी जाते हैं वे देखरेख के अभाव में मारे जाते हैं। इसलिए मेरठ का ग्रीन कवर बढ़ नहीं रहा है.
कटे पेड़ों की भरपाई नहीं
एनएच-58 के चौड़ीकरण में तकरीबन दस हजार पेड़ काटे जाएंगे। लेकिन उनकी जगह नए पेड़ लगाने की दिशा में कोई गंभीर कदम नहीं उठाए जा रहे। जबकि नियम ये है कि हाई-वे बनाने में जितने पेड़ काटे जाएं उससे दोगुने पेड़ लगाए जाएं। नीर फाउंडेशन के डायरेक्टर रमन त्यागी कहते हैं कि वन विभाग द्वारा लगाए जाने वाले पेड़ अगर वे कागजों पर न लगाकर हकीकत पर लगाए जाएं और उनकी सही देखभाल की व्यवस्था हो तभी धरातल पर तस्वीर बदलेगी.
दिल्ली से सीखे मेरठ
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक मेरठ का फॉरेस्ट कवर कुल ज्योग्राफिक एरिया का महज 2.55 परसेंट है। जो न पहले से घटा है और न बढ़ा है। इससे ये सवाल जरूर उठता है कि हर साल मोटा बजट खर्च करके लगाए जाने वाले लाखों पेड़ कहां गए। जबकि देश की राजधानी दिल्ली का ग्रीन कवर लगातार बढ़ रहा है और 20 परसेंट के आसपास पहुंच गया। जिसकी बदौलत दिल्ली को ग्रीन कैपिटल का दर्जा दिया जाने लगा है.
कितनी ऑक्सीजन
एक आदमी दिन में औसतन 550 लीटर ऑक्सीजन इस्तेमाल करता है। जबकि एक पेड़ दो आदमियों की ऑक्सीजन की जरूरत पूरा कर सकता है। क्योंकि ये ऑक्सीजन हमें मुफ्त में उपलब्ध है इसलिए हमें इसकी कद्र नहीं है। अगर इसी ऑक्सीजन के हमें पैसे देने पड़ें तो बाजार में मेडिकल ऑक्सीजन तकरीबन 14 रुपए लीटर मिलती है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि पेड़ आपका कितना पैसा बचा रहे हैं.
प्रकृति ने नेमत बख्शी
प्रकृति ने तो मेरठ को दिल खोल कर नेमत बख्शी है। एक तरफ हस्तिनापुर जैसा वन्य क्षेत्र दिया तो पानी से भरे काली और गंगा नदी के भंडार दिए। लेकिन हमने प्रकृति के इन उपहारों का महत्व नहीं समझा। अगर इसी तरह प्रकृति के साथ खिलवाड़ जारी रहा तो उम्मीद है कि आने वाली पीढिय़ां अपने साथ एक छोटा सा ऑक्सीजन सिलेंडर कैरी करके चलें.

क्या है वन महोत्सव
वन महोत्सव की शुरुआत 1950 में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री केएम मुंशी द्वारा की गई। इसका उद्देश्य लोगों के बीच पेड़ों और जंगलों को संरक्षित करने की दिशा में जागरूकता और जोश पैदा करना था। ‘पेड़ का मतलब पानी, पानी का मतलब अन्न और अन्न का मतलब जीवन’। वन महोत्सव जुलाई के पहले सप्ताह में देशभर में मनाया जाता है और लाखों वृक्ष रोपे जाते हैं। वन महोत्सव के दौरान पेड़ लगाने के पीछे
1. ईंधन की उपयुक्त व्यवस्था करना ताकि गोबर का इस्तेमाल खाद के रूप में हो सके.
2. फलों का उत्पादन बढ़ाना ताकि देश के खाद्य संसाधन बढ़ें.
3. खेती की जमीन के आसपास शेल्टर बेल्ट्स का तैयार करना ताकि उपज बढ़े.
4. पशुओं को भरपूर चारा उपलब्ध कराना ताकि संरक्षित जंगलों में पशुओं का चरना कम हो सके.
5. घरेलू निर्माण और कृषि के लिए लकड़ी उपलब्ध कराना.
6. मिट्टी के संरक्षण को बढ़ावा देना.
7. लोगों के बीच पेड़ों के प्रति प्यार और जागरूकता पैदा करना.