मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पर कि आसां हो गईं मिर्जा गालिब के शेर की यह लाइन बीएड काउंसिलिंग कराने आए उन कैंडीडेट्स पर बिल्कुल फिट बैठ रही है जो टीचर बनने का सपना लिए पिछले तीन दिनों से काउंसिलिंग सेंटर अपना डेरा जमाए हुए हैं। तन पर जो कपड़े थे वह उतर चुके हैं, बेड की जगह जमीन का बिस्तर है और जिनको जमीन भी मयस्सर नहीं हुई वो किसी तरह जुगाड़ करके दो कुर्सियों पर ही सो गए। यह नजारा था रात दो बजे कालीचरण डिग्री कॉलेज का। यह हमारे फ्यूचर के टीचर हैं, जो स्कूल में पढ़ाकर बाद में बच्चों का फ्यूचर संवारेंगे लेकिन अभी तो ये अपने फ्यूचर के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.
तीन दिन से जमाए हैं डेरा
खाना मिल गया तो ठीक है नहीं तो अपनी बारी के चक्कर में पूरा दिन भूखा रहना इनको गंवारा है। कालीचरण डिग्री कॉलेज सेंटर पर काउंसिलिंग के लिए आए बैचेन यादव पिछले तीन दिन से बैचेन टहल रहे हैं। वजह सिर्फ एक ही है कि इस बार बीएड काउंसिलिंग में उनको एक अदद अच्छा कॉलेज मिल जाए। इसके लिए वह पिछले तीन दिनों से सेंटर पर अपना डेरा जमाए हैं। बैचेन बताते है कि रात में अगर पानी गिरता है तो वह कॉलेज के अंदर बनी लॉबी में जाकर सो जाते हैं नहीं तो वह बाहर घास पर ही अपने साथियों के साथ ठहरे हुए हैं। पिछली बार भी कॉलेज ज्यादा डोनेशन मांग रहे थे इसलिए उनका एडमिशन नहीं हो सका। इस बार फिर वह इस आस में आए है कि शायद उनको एक अदद सरकारी सीट मिल जाए.
पीने का पानी नहीं
बैचेन यादव अकेले नहीं है बल्कि पटना, बिहार और तमाम शहरों से आए कैंडीडेट्स अपना डेरा कॉलेज में जमाए हुए हैं। कैंडीडेट्स बताते हैं कि सबसे ज्यादा परेशानी यहां पर पानी की है। उनका कहना है कि जब ड्रम में पानी खत्म हो जाता है तो उनको अपनी बोतल भरने के लिए कॉलेज के बाहर जाना पड़ता है और रात में सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। लखनऊ में बीएड काउंसिलिंग के लिए बनाए गए पांच सेंटर पर यह नजारा देखा जा सकता है। यही नहीं सेंटर पर बहुत सी महिला कैंडीडेट्स भी मौजूद हैं। जिनका सपना पूरा करने के लिए उनके साथ आए पैरेंट्स को भी सफर करना पड़ रहा है। कैंडीडेट्स का कहना है कि उनसे 500 रुपए काउंसिलिंग फीस तो ली जा रही है लेकिन सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है। ना सिर पर छत है और ना ही बैठने के लिए कुर्सियां। तपती गर्मी में पूरा दिन या तो खुले में गुजारना पड़ता है। या फिर बरसात में सिर छुपाने के लिए सेंटर पर ही कोई आसरा तलाशना पड़ता है। वही रजिस्ट्रार जीपी त्रिपाठी का कहना है कि कुछ समस्या तो है जिनको दूर करने की कवायद की जा रही है। जल्द ही सभी प्रॉब्लम दूर हो जाएगी.

Government seats में घालमेल
इलाहाबाद के रहने वाले मूलचंद ने साल भर मेहनत की थी तो बीएड के इंट्रेंस इग्जाम में रैंक भी अच्छी आई। मूलचंद की 36 सौ रैंक आई थी इसलिए सरकारी कॉलेज तो मिलना तय ही था। कई कॉलेज ऑप्शन में सलेक्ट किए और उनको लॉक कर दिया। मगर अगले दिन पता चला कि सभी कॉलेज की सीटें फुल हो गई हैं इसलिए उनको गवर्नमेंट सीट नहीं मिल सकती। आखिर वह क्या वजह थी है जिसकी वजह से 6 हजार गवर्नमेंट सीटे होने के बाद भी 36 सौ रैंक वाले मूलचंद को एक सीट नहीं मिल पाई जबकि आप को हैरत होगी कि उसी कॉलेज में 5200 रैंक वाले एक कैंडीडेट को सीट अलॉट कर दी गई। ऐसा सिर्फ मूलचंद के साथ ही नहीं बल्कि लखनऊ में काउंसिलिंग कराने आए 200 कैंडीडेट्स के साथ ऐसा हुआ है.
दस से ज्यादा कॉलेज खोलने नहीं देते
सवाल यह है कि ऐसा क्यों हो रहा कि रैंक आने के बाद भी स्टूडेंट्स को गर्वनमेंट कॉलेज में सीटें नहीं मिल पा रही हैं। मूलचंद बताते है कि काउंसिलिंग के अंदर सरकारी सीटों को लेकर कोई ना कोई खेल जरुर चल रहा है। काउंसिलिंग सेंटर के अंदर मौजूद अधिकारी किसी भी स्टूडेंट्स को दस से ज्यादा कॉलेज आप्शन में खोलने ही नहीं दे रहे हैं। जब आप्शन ज्यादा नहीं मिलते है तो सीट मिलने की गारंटी भी कम हो जाती है। अगर कोई स्टूडेंट ज्यादा कॉलेज की च्वाइस खोलना चाहता है तो उसको मना कर दिया जाता है। वहीं कुछ स्टूडेंट्स को 30 कॉलेज खोलने की अनुमति है। यही वजह है कि उनको ज्यादा रैंक होने के बाद भी सीट मिल जाती है और कम रैंक वालों को प्राइवेट कॉलेज अलॉट हो रहे है.
अपना रहे हैं दोहरे मानक
वहीं काउंसिलिंग कराने आए मनीष और मनोज बताते हैं कि काउंसिलिंग शुरु होने से पहले ज्योतिबाफुले रुहेलखंड यूनिवर्सिटी ने यह नोटिफिकेशन नहीं जारी किया था कि ओबीसी का जाति प्रमाण पत्र सिर्फ 6 महीने पुराना ही माना जाएगा। इसकी वजह से कई स्टूडेंट्स को वापस लौटा दिया गया। वहीं एससी एसटी कैंडीडेट्स का 6 महीने से पुराना सार्टिफिकेट भी मान्य है। मगर ओबीसी कैंडीडेट्स को यह सुविधा नहीं दी जा रही है। कैंडीडेट्स का कहना है कि एक मामले में यूनिवर्सिटी ने दो अलग अलग नियम बना रखें है.

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