-मलेरिया और डेंगू फैलाने वाले मच्छर के लार्वा को खा जाती है यह मछली

-जानलेवा बीमारियों के बचने के लिए कॉलोनी वासियों ने नाले में छोड़ मछली

क्चन्क्त्रश्वढ्ढरुरुङ्घ:

मौसम में तेजी के साथ हो रहे बदलाव से मच्छरों के आतंक में भी बढ़ोतरी हो गई है। दिन में बढ़ा तापमान और रात को हल्की ठंड ने मच्छरों के पनपने के लिए मुफीद माहौल तैयार किया है। इससे लोगों को डेंगू, मलेरिया जैसी मच्छर जनित जानलेवा बीमारियों का खतरा सताने लगा है। मच्छरों के डंक से बचने के लिए लोग तरह-तरह के इंतजाम कर रहे हैं। सावधानियों की इसी कड़ी में रामपुर गार्डन के बाशिंदों ने मच्छरों से बचने के लिए नायाब तरीका ईजाद किया है। एरिया के लोग नाले में गंबूसिया मछली पाल रहे हैं। यह ऐसी मछली है, जो मच्छरों के लार्वा को खाकर उन्हे काबू में कर रही है। एक्सप‌र्ट्स ने भी इस पहल

नाले में डाल रहे हैं दाना

बरेली कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ। सोमेश ने बताया कि एक दिन उनकी निगाह नाली पर पड़ी, तो उन्हें मछलियां दिखाई दीं। उन्होंने मछली की पड़ताल की, तो पता चला कि यह गंबूसिया मछली है, जो मच्छरों के लार्वा को खाती है। उन्हें जब यह जानकारी हुई, तब से उन्होंने नाली में मछलियों के लिए दाना डालना शुरू कर दिया है.आरयू की एनिमल साइंस की प्रोफेसर ने बताया यह मछली एंटी लार्वा का काम करती है। यह मछली जहां भी रहती है, वहां पर लार्वा को पनपने नहीं देती हैं। वहीं, इस मछली की प्रजनन क्षमता बहुत अच्छी है। यह एक बार में 60 अंडे दे सकती है।

ईको फ्रेंडली है तरीका

बीसीबी के जूलॉजी डिपार्टमेंट के प्रो। राजेन्द्र सिंह ने बताया मच्छरों के आतंक से निजात पाने के लिए शहरवासी जो भी तरीका अपनाते हैं। वह वातावरण के लिए नुकसानदायक होता है। वहीं, गंबूजिया मछली ईको फ्रेंडली है। इससे प्रयोग से वातावरण को बगैर नुकसान पहुंचाए मच्छरों और लार्वा को खत्म किया जा सकता है।

यह है मछली की खासियत

-औसतन एक से डेढ़ साल तक जीवित रहती हैं।

-एक मछली औसतन 60 बच्चों को जन्म देती हैं।

-यह मछली एंटी लार्वा का काम करती है।

-मच्छरों के लार्वा इस मछली का पंसदीदा भोजन है।

-यह मछली नाले के गंदे पानी में आसानी से जिंदा रह सकती है।

वर्जन

गंबूसिया मछली एंटी लार्वा का काम करती है। जहां भी यह मछली होती है, वहां मच्छरों को नहीं पनपने देती है। मच्छर जनित बीमारियों से बचने के लिए लोगों को यह मछली पालनी चाहिए।

प्रो.नीलिमा गुप्ता, प्रो। एनिमल साइंस, आरयू