-बीआरडी मेडिकल कॉलेज का हाल

-सीनियर डॉक्टर को भी नहीं पता जूनियर डॉक्टर की करतूत

- बीआरडी में दवा होने के बावजूद भेज देते हैं बाहर

- गंभीर केस को नहीं करना चाहते हैंडल, सीधे कर देते रेफर

Gorakhpur@inext.co.in
GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कमीशन के खेल में जूनियर डॉक्टर्स ने नायाब फार्मूला अख्तियार किया है। बीआरडी में दवा उपलब्ध होने के बाद भी रात में डॉक्टर मरीज के साथ आए तीमारदारों को बाहर की दवाएं और जांच लिख रहे हैं। मजबूरन उन्हें चुनिंदा मेडिकल स्टोर्स व सेंटर्स भेजा जा रहा है, इस बारे में कंसल्टेंट को भी नहीं पता चल पता। सिर्फ इतना ही नहीं जो केस मेडिकल कॉलेज में ठीक हो सकता है उसे भी सीधे रेफर कर दिया जाता। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट टीम को वार्ड नंबर छह में भर्ती मरीज के साथ आए तीमारदारों ने बताया कि सीनियर डॉक्टर सिर्फ सुबह वार्ड का दौरा कर मरीजों को देखने आते हैं। उनके जाने के बाद मरीजों का इलाज जूनियर डॉक्टर के भरोसे होता है। वह रात में ही पर्ची पर दवा और जांच लिखकर बाहर भेज देते हैं। जबकि मेडिकल कॉलेज में सभी दवाएं रहतीं है.

बीमारों को प्राइवेट का पता भी बताते हैं कर्मचारी
ऐसा नहीं है कि कर्मचारी सिर्फ मशीन के खराब होने की ही तीमारदारों को सूचना देते हैं। वह तीमारदारों को यह भी बताते हैं कि इस जांच की सुविधा किस प्राइवेट सेंटर पर है। इसके लिए कर्मचारियों ने प्राइवेट सहायक रखा है। सहायकों को भी कमीशन से हिस्सा मिलता है। प्राइवेट सेंटर के संचालक भी कर्मचारियों को सहायक मुहैया कराते हैं।

केस एक
देवरिया के रहने वाले संतोष यादव को इमरजेंसी में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टर्स ने सिटी स्कैन जांच कराने के लिए एक पर्ची लिखी। इसके बाद मरीज को बाहर के सिटी स्कैन सेंटर पर जांच करानी पड़ी।

केस दो
कुशीनगर के रामकोला निवासी शनि सड़क दुर्घटना में घायल हो गया। एक हफ्ते पहले उसे मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। छह नंबर वार्ड में उसका इलाज चल रहा है। तीमारदार ने बताया कि करीब दवा में 3700 रुपए खर्च हो गए हैं।

मारपीट में मेरा भाई गंभीर रूप से घायल हो गया। उसे बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया। जहां डॉक्टर्स ने न्यूरो सर्जन न होने का हवाला देते हुए लखनऊ रेफर कर दिया। इलाज में काफी पैसे भी खर्च हुए, लेकिन उसकी जान नहीं बचा सका.
मनोज यादव, सीवान

सिर्फ यह कहने के लिए अस्पताल है। रात में कंस्टेंट मरीजों को देखने नहीं आते हैं। वह जूनियर के भरोसे छोड़ देते हैं। वह दवा के लिए पर्ची देकर बार-बार बाहर भेजते हैं।
अशोक कुमार यादव, देवरिया

एक सड़क हादसे में सलीम गंभीर रूप से घायल हुआ। दो दिनों से वार्ड नंबर छह में भर्ती हैं। अभी तक सुधार नहीं है। डॉक्टर आये दिन बाहर की दवा लिखते हैं। जब अस्पताल की दवा की बात की जाती है तो उल्टा बरस पड़ते।
गोलू, खजनी

अस्पताल में सभी दवाइयां उपलब्ध है। अगर जूनियर डॉक्टर बाहर की दवाएं लिख रहे हैं तो गलत हैं। इंडेंट के हिसाब से हर दिन वार्डो में दवाएं और इंजेक्शन आदि मुहैया कराया जाता है। अगर बाहर की दवा व जांच लिखा जा रहा है तो इसकी जांच कराई जाएगी।
डॉ। आरएस शुक्ला, सीएमएस नेहरू चिकित्सालय बीआरडी