- राजधानी में चार हजार से ज्याद पैथोलॉजी और नर्सिग होम

- इनमें से केवल एक हजार ही सीएमओ ऑफिस में रजिस्टर्ड

- सरकारी डाक्टरों के प्राइवेट प्रैक्टिस करने के कई मामले सामने आए

- फर्जी अस्पतालों में ट्रीटमेंट के नाम पर मरीजों से मनमानी वसूली

- मामला सामने आने पर जांच तो होती है लेकिन आगे एक्शन नहीं

-प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोपियों पर नहीं हो पाती कार्रवाई

-राजधानी के सभी इलाकों में चल रहे हैं फर्जी अस्पताल

LUCKNOW@Inext.co.in

LUCKNOW:

सरकारी अस्पताल के डॉक्टर प्राइवेट पै्रक्टिस में लिप्त हैं। आए दिन इस बात का खुलासा हो रहा है। इसके बाद भी उनका यह खेल खत्म नहीं हो रहा है। इसका कारण यह है कि प्राइवेट प्रैक्टिस करते पकड़े जाने के बाद भी उन पर किसी तरह का एक्शन नहीं लिया जा रहा है। जांच तो होती है पर उसका कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है।

एक दिन पहले ही हुआ खुलासा

शनिवार को जिस साई हॉस्पिटल को सीएमओ की टीम ने बिना रजिस्ट्रेशन चलने पर सीज किया था, वहां उन्नाव के जिला अस्पताल में कार्यरत डॉ। अजीत कुमार पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप है। साई हॉस्पिटल के संचालक ने बकायदा सीएमओ टीम को बताया था कि डॉ। अजीत 30 हजार रुपए महीना लेकर यहां सेवाएं दे रहे थे। सीएमओ की टीम के मुताबिक प्राइवेट अस्पताल में सरकारी डॉक्टरों के प्रैक्टिस करने पर रोक है, इस मामले की रिपोर्ट सरकार को भेजी जाएगी।

मिलीभगत से चल रहे हॉस्पिटल

राजधानी में करीब चार हजार से अधिक पैथोलॉजी, डायग्नोस्टिक सेंटर, क्लीनिक और नर्सिगहोम हैं। इनमें करीब 1000 ही सीएमओ कार्यालय से रजिस्टर्ड हैं। शेष सीएमओ कार्यालय की मिली भगत से चलते हैं। इनमें बाराबंकी, हरदोई, रायबरेली जिलों में तैनात डॉक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। पकड़े जाने पर उनके खिलाफ सिर्फ जांच होती है उसके आगे कुछ नहीं। जिससे यह खेल खत्म नहीं हो रहा है।

पकड़े गए थे डॉ। राकेश

पिछले वर्ष 18 मार्च को सीएमओ टीम ने आलमबाग के विजयनगर स्थित एक क्लीनिक पर छापा मारा था। क्लीनिक बंद था लेकिन जानकारी मिली कि हरदोई में तैनात डॉ। राकेश यहां पर प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। उनके नाम के पर्चे भी मौके पर मिले थे। लेकिन बाद में कोई कार्रवाई नहीं हुई। इसी तरह लोकबंधु राजनारायण अस्पताल के डॉक्टर पर प्राइवेट प्रैक्टिस करने का आरोप लगे थे। वह नगराम में अपनी पत्‍‌नी के अस्पताल में मरीजों को जाकर देखते थे। आरोपों की जांच हुई लेकिन कार्रवाई नहीं।

आलमबाग में करते थे अल्ट्रासाउंड

पिछले वर्ष ही रायबरेली में तैनात रेडियोलॉजिस्ट डॉ। वीके ओझा पर आलमबाग के एक डायग्नोस्टिक सेंटर में प्राइवेट प्रैक्टिस के आरोप लगे थे। जांच में संचालक ने खुद उनके प्रैक्टिस करने की जानकारी दी थी। इस मामले में भी आगे कुछ नहीं हुआ।

फर्जी अस्पतालों की भरमार

सीएमओ आफिस के सूत्रों के अनुसार लखनऊ के आउटर पर लगभग सभी प्रमुख मार्गो पर बड़ी संख्या में फर्जी अस्पताल चले रहे हैं। वहां न कोई डॉक्टर है और ना ही प्रशिक्षित स्टाफ। सरकारी अस्पताल के डॉक्टर वहां न केवल विजिट करने जाते हैं बल्कि ऑपरेशन भी करते हैं। इन अस्पतालों में ट्रीटमेंट के नाम पर मरीजों से जमकर उगाही भी की जाती है। सूत्रों के अनुसार सीएमओ कार्यालय को समय समय पर इनकी रिपोर्ट भी मिलती है लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया जाता।

जांच के नाम पर लूट

इन फर्जी अस्पतालों में जांच के नाम पर मरीजों से मनमानी रकम वसूली जाती है। प्राइवेट डायग्नोस्टिक सेंटर एमआरआई जांच का मरीजों से चार से साढ़े चार हजार रुपया लेते हैं। वहीं इन अस्पतालों में इसी जांच के लिए मरीजों से 6 से 8 हजार रुपए लिए जाते हैं। साथ ही ट्रांसपोर्ट के लिए खटारा ओमिनी वैन में बनी एंबुलेंस का भी 2500 रुपए किराया वसूल किया जाता है।

प्राइवेट प्रैक्टिस अवैध है। मामले की रिपोर्ट मिलने पर आगे कार्रवाई की जाएगी।

डॉ। पद्माकर सिंह, डीजी, हेल्थ