फिर भी बन गया ग्रीन गैंग 

हम जिन आठ दोस्तों की बात कर रहे हैं उनके बहुत सारे लोग ग्रीन गैंग के नाम से भी जानते हैं क्योंकि इनका एक खास मकसद है ग्रीन प्लॉन्ट्स को बचाना। जी हां, ये पेड़-पौधों को ही अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हैं और उन्हीं के लिए रोजाना कुछ न कुछ वक्त देकर खुद उनका इलाज करते हैं। ये आठों आज से एक साल पहले तक एक दूसरे को नहीं जानते थे। हां, सिगरा एरिया में इनका आना-जाना था। इस ग्रुप में आज गोलू लखवानी, संतोष कन्नौजिया, रिंकू, राजेश यादव, रविशंकर, अमर पाण्डेय, दीपेश भारद्वाज और पंकज हैं। ये सभी अचानक एक-दूसरे से जुड़ कर दोस्त बने फिर सभी ने फील किया उन्हें पेड़-पौधों के लिए कुछ करना चाहिए। यहीं से शुरू हुआ एक नया अभियान.
 
पेड़ों को बना लिया दोस्त

इन सारों को समझ आया कि आज सिटी में तेजी से ग्रीनरी कम हो रही है। जो बचे-खुचे पौधे हैं वह भी धूल से बरबाद होते जा रहे हैं। इनकी आंखों के सामने ही कई पौधों ने जिंदगी की ऊंचाई छूने से पहले ही आखिरी पत्ता गिरा कर दम तोड़ दिया। सभी ने मिलकर इन प्लांट्स को बचाने की ठानी। तय किया गया कि सिटी के किसी पर्टिकुलर एरिया को सेलेक्ट किया जाए। वहां रोड के किनारे, डिवाइडर या पार्क में लगाये गए प्लांट को सेफ किया जाएगा. 

फिर शुरू हो गयी मुहिम

इस गैंगे ने सबसे पहले कैंट एरिया को सेलेक्ट किया गया। लॉजिक ये था कि कैंट ही वो पॉइंट है जहां से रोजाना हजारों टूरिस्ट बनारस में एंट्री करते हैं। जीटी रोड होने के कारण यहां व्हीकल्स का मूवमेंट भी कुछ ज्यादा है। पॉल्यूशन और डस्ट के चलते कैंट एरिया में काफी पेड़-पौधे दम तोड़ चुके हैं। इन सभी ने सबसे पहले कैंट एरिया के सभी ट्रीगार्ड को दुरुस्त किया। जो प्लॉन्ट बीमार थे उनको पानी और नेचुरल खाद देने का काम शुरू हुआ। देखते ही देखते मरने के कगार पर पहुंचे दो-तीन दर्जन पौधों का पीला रंग हरा नजर आने लगा। इससे टीम का हौसला बढ़ा। इन्होंने इस मूवमेंट में लहरतारा और इंग्लिशिया लाइन एरिया के प्लांट्स को शामिल किया. 

अभी काम कर रहे सिगरा में 

ये गैंग इन दिनों सिगरा एरिया के प्लांट्स बचाने में जुटा है। सिगरा में चल रहे डेवलपमेंट वर्क का खामियाजा प्लांट्स भी भुगत रहे हैं। रोड्स की तोडफ़ोड़ और उड़ती धूल पेड़ों का दम घोट रही है। इस टीम के मेम्बर्स ने बताया कि जब तक हम यहां काम शुरू करते, दर्जनों पौधे दम तोड़ भी चुके थे। हालांकि अब हम तीन सप्ताह से यहां काम कर रहे हैं और रिजल्ट पॉजिटिव है. 

हर किसी को दे रहे सीख

ज्वाइंटली वर्क करने के साथ ही टीम का हर मेम्बर अपने घर के आसपास भी प्लांट्स देखभाल करता है। मिलने-जुलने वालों को सिटी में कम हो रही ग्रीनरी के बारे में बताता है। इस गैंग की माने तो उनकी टीम को काम करता देख लोग पूछते हैं कि ये क्या हो रहा है? जब उन्हें बताया जाता है तो लोग मानते हैं कि वाकई अब इसकी जरूरत है। कई नये लोग इस गैंग के साथ काम करने के लिए इंटरेस्टेड भी हैं. 

खूब मिलता है लोकल सपोर्ट

ग्रीनरी पसंद ये गैंग जिस जगह भी काम करता है, आस-पास के लोग इनके मुरीद हो जाता है। इससे काम आसान हो जाता है। टीम के मेम्बर्स की माने तो जब हम पौधों को दोबारा जिंदा करने में सफल हो जाते हैं तो आस-पास के लोग खुद ही उनका रक्षक बनने के लिए आगे आ जाते हैं। इस तरह एक जगह बार-बार नहीं जाना पड़ता। ये सिर्फ लोकल सपोर्ट से ही पॉसिबल हो रहा है. 

बचाएंगे ही नहीं, बांटेंगे भी हरियाली 

पेड़ों के बचाने की इस मुहिम में अगला प्लैन हरियाली बढ़ाने का भी है। इसके लिए ग्रीन गैंग के मेम्बर्स जल्द ही स्पॉन्सर्स ढूंढ कर ग्रीन प्लॉन्ट्स बांटने की तैयारी में है। मोटिव है कि लोगों को ट्री पॉट के साथ पौधे दिये जाये और वो उसे या तो जमीन में या फिर पॉट में ही जिंदा रख कर ग्रीनरी के इस अभियान को आगे बढ़ाये। इसके लिए ये टीम जल्द ही काम शुरू करने वाली है. 

साइंटिफिकली करते हैं पौधों का इलाज 

ग्रीन गैंग बीमार पौधों को फिर हरा करने के लिए साइंसिटिफिक तरीके भी यूज करती है। इसमें पहले ट्रीगार्ड को दुरुस्त किया जाता है। फिर आस-पास की गंदगी हटाते हुए उसके जड़ों के पास की मिट्टी को गुड़ाई की जाती है। पौधे फोटो सिंथेसिस आसानी से कर सकें, इसके लिए पत्तियों को पानी की बौछार से साफ किया जाता है। इसके बाद  हॉस्पिटल में यूज हो चुके ग्लूकोज की बॉटल और सिरिंज को लेकर पौधों को ड्राप इरिगेशन प्रॉसेस से बूंद-बंूद पानी दिया जाता है। सिरिंज से होते पानी धीरे-धीरे प्लांट की जड़ों में पहुंचता है। हफ्ते में एक दिन नेचुरल खाद प्लांट में दिया जाता है. 

ये है ग्रीन गैंग के मेम्बर्स 

गोलू लखवानी, संतोष कन्नौजिया, रिंकू : ये तीनों प्राइवेट जॉब में हैं. 
राजेश यादव: बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर हैं. 
रविशंकर और पंकज: बीएचयू से ग्रेजुएशन कर रहे हैं. 
अमर पाण्डेय और दिपेश भारद्वाज: पॉलिटेक्निक के स्टूडेंट हैं. 

फिर भी बन गया ग्रीन गैंग 

 

हम जिन आठ दोस्तों की बात कर रहे हैं उनके बहुत सारे लोग ग्रीन गैंग के नाम से भी जानते हैं क्योंकि इनका एक खास मकसद है ग्रीन प्लॉन्ट्स को बचाना। जी हां, ये पेड़-पौधों को ही अपना सबसे अच्छा दोस्त मानते हैं और उन्हीं के लिए रोजाना कुछ न कुछ वक्त देकर खुद उनका इलाज करते हैं। ये आठों आज से एक साल पहले तक एक दूसरे को नहीं जानते थे। हां, सिगरा एरिया में इनका आना-जाना था। इस ग्रुप में आज गोलू लखवानी, संतोष कन्नौजिया, रिंकू, राजेश यादव, रविशंकर, अमर पाण्डेय, दीपेश भारद्वाज और पंकज हैं। ये सभी अचानक एक-दूसरे से जुड़ कर दोस्त बने फिर सभी ने फील किया उन्हें पेड़-पौधों के लिए कुछ करना चाहिए। यहीं से शुरू हुआ एक नया अभियान।

 

पेड़ों को बना लिया दोस्त

 

इन सारों को समझ आया कि आज सिटी में तेजी से ग्रीनरी कम हो रही है। जो बचे-खुचे पौधे हैं वह भी धूल से बरबाद होते जा रहे हैं। इनकी आंखों के सामने ही कई पौधों ने जिंदगी की ऊंचाई छूने से पहले ही आखिरी पत्ता गिरा कर दम तोड़ दिया। सभी ने मिलकर इन प्लांट्स को बचाने की ठानी। तय किया गया कि सिटी के किसी पर्टिकुलर एरिया को सेलेक्ट किया जाए। वहां रोड के किनारे, डिवाइडर या पार्क में लगाये गए प्लांट को सेफ किया जाएगा. 

 

फिर शुरू हो गयी मुहिम

 

इस गैंगे ने सबसे पहले कैंट एरिया को सेलेक्ट किया गया। लॉजिक ये था कि कैंट ही वो पॉइंट है जहां से रोजाना हजारों टूरिस्ट बनारस में एंट्री करते हैं। जीटी रोड होने के कारण यहां व्हीकल्स का मूवमेंट भी कुछ ज्यादा है। पॉल्यूशन और डस्ट के चलते कैंट एरिया में काफी पेड़-पौधे दम तोड़ चुके हैं। इन सभी ने सबसे पहले कैंट एरिया के सभी ट्रीगार्ड को दुरुस्त किया। जो प्लॉन्ट बीमार थे उनको पानी और नेचुरल खाद देने का काम शुरू हुआ। देखते ही देखते मरने के कगार पर पहुंचे दो-तीन दर्जन पौधों का पीला रंग हरा नजर आने लगा। इससे टीम का हौसला बढ़ा। इन्होंने इस मूवमेंट में लहरतारा और इंग्लिशिया लाइन एरिया के प्लांट्स को शामिल किया. 

 

अभी काम कर रहे सिगरा में 

 

ये गैंग इन दिनों सिगरा एरिया के प्लांट्स बचाने में जुटा है। सिगरा में चल रहे डेवलपमेंट वर्क का खामियाजा प्लांट्स भी भुगत रहे हैं। रोड्स की तोडफ़ोड़ और उड़ती धूल पेड़ों का दम घोट रही है। इस टीम के मेम्बर्स ने बताया कि जब तक हम यहां काम शुरू करते, दर्जनों पौधे दम तोड़ भी चुके थे। हालांकि अब हम तीन सप्ताह से यहां काम कर रहे हैं और रिजल्ट पॉजिटिव है. 

 

हर किसी को दे रहे सीख

 

ज्वाइंटली वर्क करने के साथ ही टीम का हर मेम्बर अपने घर के आसपास भी प्लांट्स देखभाल करता है। मिलने-जुलने वालों को सिटी में कम हो रही ग्रीनरी के बारे में बताता है। इस गैंग की माने तो उनकी टीम को काम करता देख लोग पूछते हैं कि ये क्या हो रहा है? जब उन्हें बताया जाता है तो लोग मानते हैं कि वाकई अब इसकी जरूरत है। कई नये लोग इस गैंग के साथ काम करने के लिए इंटरेस्टेड भी हैं. 

 

खूब मिलता है लोकल सपोर्ट

 

ग्रीनरी पसंद ये गैंग जिस जगह भी काम करता है, आस-पास के लोग इनके मुरीद हो जाता है। इससे काम आसान हो जाता है। टीम के मेम्बर्स की माने तो जब हम पौधों को दोबारा जिंदा करने में सफल हो जाते हैं तो आस-पास के लोग खुद ही उनका रक्षक बनने के लिए आगे आ जाते हैं। इस तरह एक जगह बार-बार नहीं जाना पड़ता। ये सिर्फ लोकल सपोर्ट से ही पॉसिबल हो रहा है. 

 

बचाएंगे ही नहीं, बांटेंगे भी हरियाली 

 

पेड़ों के बचाने की इस मुहिम में अगला प्लैन हरियाली बढ़ाने का भी है। इसके लिए ग्रीन गैंग के मेम्बर्स जल्द ही स्पॉन्सर्स ढूंढ कर ग्रीन प्लॉन्ट्स बांटने की तैयारी में है। मोटिव है कि लोगों को ट्री पॉट के साथ पौधे दिये जाये और वो उसे या तो जमीन में या फिर पॉट में ही जिंदा रख कर ग्रीनरी के इस अभियान को आगे बढ़ाये। इसके लिए ये टीम जल्द ही काम शुरू करने वाली है. 

 

साइंटिफिकली करते हैं पौधों का इलाज 

 

ग्रीन गैंग बीमार पौधों को फिर हरा करने के लिए साइंसिटिफिक तरीके भी यूज करती है। इसमें पहले ट्रीगार्ड को दुरुस्त किया जाता है। फिर आस-पास की गंदगी हटाते हुए उसके जड़ों के पास की मिट्टी को गुड़ाई की जाती है। पौधे फोटो सिंथेसिस आसानी से कर सकें, इसके लिए पत्तियों को पानी की बौछार से साफ किया जाता है। इसके बाद  हॉस्पिटल में यूज हो चुके ग्लूकोज की बॉटल और सिरिंज को लेकर पौधों को ड्राप इरिगेशन प्रॉसेस से बूंद-बंूद पानी दिया जाता है। सिरिंज से होते पानी धीरे-धीरे प्लांट की जड़ों में पहुंचता है। हफ्ते में एक दिन नेचुरल खाद प्लांट में दिया जाता है. 

 

ये है ग्रीन गैंग के मेम्बर्स 

 

गोलू लखवानी, संतोष कन्नौजिया, रिंकू : ये तीनों प्राइवेट जॉब में हैं. 

राजेश यादव: बीएचयू के रिसर्च स्कॉलर हैं. 

रविशंकर और पंकज: बीएचयू से ग्रेजुएशन कर रहे हैं. 

अमर पाण्डेय और दिपेश भारद्वाज: पॉलिटेक्निक के स्टूडेंट हैं.