-टूट रहे हैं गंगा किनारे मौजूद घाट, कई घाट हो चुके हैं अदर से पोल

-इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं किया गया तो खत्म हो जाएगा घाटों का वजूद

VARANASI

बनारस में गंगा के जिन घाटों के ठाठ को निहारने पूरी दुनिया के लोग इस शहर में आते हैं वो दरक रहे हैं। सदियों से बुलंद पत्थर की सीढि़यां और उन पर मौजूद इमारतें अब नदी की धारा के आगे बेबस हो गयी हैं। वो जगह-जगह से टूट रही हैं। वक्त के साथ इसमें इजाफा होता जा रहा है। अगर इसे रोकने के लिए प्रयास नहीं किया गया तो वो दिन दूर नहीं होगा जब इनका वजूद ही खत्म हो जाए। गंगा और घाटों की चिंता में घडि़याली आंसू बहाने वालों को इस हालात की जानकारी तो है लेकिन घाटों को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं।

-गंगा किनारे मौजूद 8ब् घाट बनारस को खास बनाते हैं

-गंगा किनारे बसा बनारस एकमात्र शहर है जिसके सभी घाट पक्के हैं, बलुआ पत्थर से घाट की सीढि़यां और हर घाट पर बुलंद इमारत है

-एक दर्जन से अधिक घाट की सीढि़यां दरक रही हैं, पत्थर टूटकर एक-दूसरे से अलग हो रहे हैं

-सीढि़यों के टूटने का प्रभाव घाट पर मौजूद इमारतों पर पड़ रहा है, उनमें भी दरार आ रही है

-गंगा की धार की वजह से हो रहे कटान से घाट भीतर ही भीतर पोला हो रहे हैं

-कई घाट तो इतना अधिक पोला हो चुके हैं कि कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है

-दरकते घाटों पर हादसे होने का सबसे अधिक डर बाढ़ के समय होता है जब गंगा की धारा काफी तेज होती है

गंगा का बहाव घाटों को नुकसान पहुंचा रहा है। इसके लिए पूरी तरह से इंसान जिम्मेदार है। तमाम वजहों से गंगा की प्राकृतिक संरचना से काफी छेड़छाड़ की गई है। इसका प्रभाव है कि नदी का बहाव निश्चित और प्राकृतिक नहीं रह गया है। जीवन देने वाली गंगा बनारस से विनाश की वजह बनती जा रही है। अगर बनारस में घाटों को बचाना है तो नदी को उसके मूल स्वरूप में रहने देना होगा।

प्रो। यूके चौधरी, नदी विशेषज्ञ