17 जनवरी से चल रहे राजसूय यज्ञ का भस्म माघी पूर्णिमा पर गंगा में किया जाएगा प्रवाहित

200 क्विंटल हवन सामग्री, एक हजार क्विंटल लकड़ी और दस क्विंटल देशी घी हो रहा यूज

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ALLAHABAD: मोक्षदायिनी गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के लिए यज्ञ का भस्म प्रवाहित किया जाएगा। 17 जनवरी से माघ मेला क्षेत्र में राजसूय यज्ञ करा रहे स्वामी दिनेशानंद का दावा है कि यज्ञ में निकलने वाली भस्म को गंगा में प्रवाहित करने से सल्फर की मात्रा बढ़ेगी जो उसे प्रदूषण मुक्त करने में सहायक होगी। यज्ञवेदी में गोरखपुर विश्वविद्यालय और अमेरिका की मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी की शोध रिपोर्ट के आधार मैटेरियल यूज किया जा रहा है।

23 दिनों तक चलेगा यज्ञ

परेड ग्राउंड स्थित विश्व हिन्दू परिषद के शिविर में 23 दिनों का राजसूय यज्ञ कराया जा रहा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यज्ञ में 200 क्विंटल हवन सामग्री, एक हजार क्विंटल लकड़ी, दस क्विंटल देशी घी का इस्तेमाल आहुति के लिए किया जा रहा है। स्वामी दिनेशानंद की अगुवाई में प्रतिदिन एक लाख आहुतियां डाली जा रही हैं। इसके लिए 27 फिट लम्बा, 27 फिट चौड़ा और 27 फिट गहरा यज्ञ स्थल बनाया गया है।

आठ फरवरी तक चलेगा यज्ञ

विहिप के शिविर में चल रहे राजसूय यज्ञ में प्रतिदिन आहुतियां डाली जा रही है। यह क्रम आठ फरवरी तक चलता रहेगा। दस फरवरी को माघ मेले का प्रमुख स्नान पर्व होगा। उसी दिन गंगा में यज्ञ भस्म को प्रवाहित किया जाएगा।

क्या है शोध रिपोर्ट की हकीकत

गोरखपुर विश्वविद्यालय: विश्वविद्यालय में किए गए प्रयोग में पाया गया कि हवन के प्रभाव से पानी व हवा में पाए गए कीटाणुओं और विषैली गैसों की मात्रा में भारी गिरावट आई। यह रिपोर्ट 24 दिसम्बर 1995 को प्रकाशित हुई।

हवन के पूर्व की स्थिति

पानी के सैम्पल में जीवाणुओं की संख्या, 4500 जीवाणु प्रति सौ मिली

हवन से पूर्व हवा में सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा, 3.36 माइक्रोग्राम

हवन से पहले हवा में नाइट्रस ऑक्साइड, 60 माइक्रोग्राम

हवन के पश्चात की स्थिति

जीवाणुओं की संख्या रह गई, 1200 जीवाणु प्रति सौ मिली

सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा, 0.8 माइक्रोग्राम

नाइट्रस ऑक्साइड नामक विषैली गैस की मात्रा, 1.02 माइक्रोग्राम

अमेरिकी अनुसंधान परीक्षण रिपोर्ट

अमेरिकी अनुसंधानकत्र्ता माइक विलियन ने हवन को कृषि रक्षा का अत्यंत कारगर तरीका बताया है। उनके मुताबिक हवन की अग्नि से वातावरण में कृषि के लिए लाभकारी परिवर्तन हो जाता है। उन्होंने परीक्षण से यह भी सिद्ध किया कि यज्ञ द्वारा हम वायु प्रदूषण को रोक सकते हैं।

मैंने खुद दो बार गोमुख जाकर देखा है कि सल्फर की चट्टानों से गंगा निकलती है। उस अनुभव और गोरखपुर विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट व अमेरिकन वैज्ञानिक के परीक्षण के आधार पर राजसूय यज्ञ करा रहा हूं। यज्ञ में एक लाख आहुतियां प्रतिदिन डाली जा रही हैं। उसके भस्म को सुरक्षित रखा जा रहा है। जिसे माघी पूर्णिमा पर गंगा में प्रवाहित किया जाएगा। ताकि मां गंगा को प्रदूषण मुक्त किया जा सके।

स्वामी दिनेशानंद, राजसूय यज्ञ के कर्ताधर्ता