ओल्ड जीटी रोड से काली मार्ग पुल तक घुटने भर भी नहीं था पानी

ALLAHABAD: हिन्दू धर्म में माघ महीने का विशेष महत्व होता है। इस माह की अमावस्या को संगम की रेती पर जब देश के विभिन्न प्रांतों से आएं श्रद्धालुओं ने पुण्य की डुबकी लगाई तो ओल्ड जीटी रोड पुल से लेकर काली मार्ग पुल तक मोक्षदायिनी का स्वरूप बदरंग दिखाई दिया। मेला प्रशासन ने लाख दावा किया था कि टिहरी और नरौरा से क्रमश : चार-चार हजार क्यूसेक पानी संक्रांति स्नान से पहले आया, लेकिन मौनी अमावस्या पर उसका रंग श्रद्धालुओं को नागवार गुजरा।

प्रशासन ने नहीं निभाया वादा

मेला का पहला प्रमुख स्नान पर्व दो जनवरी को पौष पूर्णिमा का था। मेला प्रशासन ने दावा किया था कि पहले स्नान पर्व से पहले ही टिहरी व नरौरा से चार-चार हजार क्यूसेक पानी यहां आ जाएगा। लेकिन पहले पर्व पर ही पानी काला होने की वजह से दंडी संन्यासियों ने स्नान का बहिष्कार कर दिया। मकर संक्रांति के दोनों दिन पानी तो था लेकिन उसका रंग बदरंग दिखाई दिया। यही स्थिति अमावस्या पर्व पर भी दिखाई दी। ओल्ड जीटी, गंगोत्री-शिवाला व काली पुल के पास बनाए गए घाटों पर घुटने से भी कम व बदरंग पानी में श्रद्धालुओं को स्नान करना पड़ा।

इस दिन सभी देवी-देवता प्रयाग तीर्थ में एकत्र होते हैं। पानी चाहे जैसा भी हो देवताओं की आस्था और मां गंगा के प्रति समर्पित भाव की वजह से ही यहां पर आए थे।

राम किशन यादव

अधिक से अधिक पुण्य कमाने की लालसा लेकर आए थे। संगम तक नहीं जा सके, लेकिन त्रिवेणी मार्ग के घाट पर पानी का रंग आचमन करने लायक नहीं था।

आकाश दुबे

यह देवताओं की भूमि है। मोक्षदायिनी का रंग कैसा है और पानी पर्याप्त है या नहीं, हमें इससे मतलब नहीं है हमारे परिजन तो बस मां के प्रति समर्पित भाव की वजह से पहुंचे थे।

मनोज सिंह

तबियत खराब होने की वजह से संगम की बजाय गंगोत्री-शिवाला मार्ग पर बनाए गए घाट पर ही स्नान किया। बड़ा आश्चर्य हुआ कि हर बार गंगा की ऐसी ही दुर्गति होती रहेगी।

आलोक शुक्ला

संत-महात्माओं ने कमाया पुण्य

लाखों लाख श्रद्धालुओं के साथ ही संत-महात्मा भी पुण्य की डुबकी लगाने में पीछे नहीं रहे। शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती अपने अनुयायियों के साथ मनकामेश्वर मंदिर से संगम नोज पहुंचे और वहां पर स्नान किया। अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि, योग गुरू आनंद गिरि, महामंडलेश्वर संतोषदास, महामंडलेश्वर बिनैका बाबा, स्वामी महेशाश्रम, शंकर आश्रम, दंडी ब्रह्माश्रम, स्वामी नरेन्द्रानंद सरस्वती व किन्नर अखाड़ा की प्रमुख लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी सहित कई संत-महात्माओं ने संगम में डुबकी लगाई।