अवशेष का संरक्षण ही नहीं

पिछले दस सालों में सरकार की ओर से कई जिलों में खुदाई करवाई गई। इसमें वैशाली का चेचर, औरंगाबाद का कुटुंबा, बक्सर का चौसा और नालंदा का तेलहाड़ा प्रमुख है। पिछले साल ही इन जगहों पर खुदाई हुई। तेल्हाड़ा के बारे में बताया गया कि यहां प्राचीन विश्वविद्यालय के संकेत मिले हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि यह नालंदा विवि से भी पुराना हो सकता है। वहीं कुटुंबा के बारे में यह बताया गया कि यहां से मध्यपाषाण कालीन हथियार मिले हैं। लेकिन इस साल एएसआई ने यहां खुदाई की इजाजत ही नहीं दी। वहीं चौसा में प्राचीन स्तूप मिले हैं। जानकारों ने बताया कि यहां से जैन धर्म से संबंधित अवशेष मिले हैं, जो मौर्य और गुप्तकालीन हैं। पुरातत्व से जुड़े लोगों की मानें तो पिछले दस सलों में कई जगहों पर खुदाई हुई, कई जगहों से लोगों को भी मूर्तियां व अन्य सामग्री मिलीं। इनमें से अधिकांश का संरक्षण ही नहीं किया जा रहा है।

 

गंभीर नहीं हैं अधिकारी

पिछले कुछ महीने की बात करें तो सहरसा में सूर्य की प्रतिमा मिली। दरभंगा के बलिया और महबूबा गांव से भी सूर्य की प्रतिमा मिलने की सूचना है। इसी तरह मधूबनी के अंधराठाढ़ी एवं बाबू बड़ही से अनेक मूर्तियां मिली हैं। लेकिन अब तक इसके रख-रखाव की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। संरक्षण और रख-रखाव तो दूर विभागीय अधिकारी इसे देखने तक नहीं गए। नतीजा यह होता है कि पुरातत्व महत्व की ये चीजें नष्ट होने लगी हैं या फिर इनकी चोरी हो जाती है।

 

मंत्री शिवचंद्र राम से सीधे सवाल

क्। इस साल कहीं भी खुदाई की इजाजत नहीं मिली है

- यह दुर्भाग्य की बात है। हम यह जांच कर रहे हैं कि आखिर किन कारणों से अब तक एएसआई को रिपोर्ट या प्रतिवेदन नहीं दिया गया है। विभाग शीघ्र ही रिपोर्ट एएसआई को सौंपेगी।

ख् पुरावशेषों का संरक्षण क्यों नहीं होता है बिहार में?

- संरक्षण के मामले में हमारे हाथ बंधे हुए हैं। इसमें हम भारत सरकार के गाइड लाइन के अनुसार चलते हैं। बावजूद इसके हमने सभी जिले के डीएम और एसपी को लिखा है कि कहीं से भी पुरावशेष प्राप्ति की सूचना मिले तो वो विभाग को जानकारी दें। हम आम आदमी से भी अपील करते हैं, वे भी हमें जानकारी दे सकते हैं। इन मसलों पर हम खुद सक्रिय हैं।