सूखा फिर भी लोगों को शिकायत नहीं

भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के साथ धम्म प्रचार के लिए एक गांव पहुंचे. गांव में पुराने ठूंठ पेड़ के नीचे ठहरे. उनके गांव में रुकने की बात जैसे ही लोगों तक पहुंची वह बुद्ध के स्वागत की तैयारियां करने लगे. किसी ने उन्हें बैठने का आसन दिया तो किसी ने भोजन-पानी की व्यवस्था की. घास-फूस का छज्जा बनाकर कुछ लोगों ने वहां छाया और सत्संग के लिए लोगों के बैठने का प्रबंध भी कर दिया. धीरे-धीरे लोग वहां आते और बुद्ध को प्रणाम करके एक ओर बैठ जाते. सत्संग के दौरान लोगों ने बुद्ध से ऐसे तमाम उपाय जानने की कोशिश की जिससे वे राज्य और लोगों की उन्नति में अपना योगदान दे सकें. लोगों ने पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति के उपाय भी पूछे. जीवन में मध्यम मार्ग अपनाने की सलाह देते हुए बुद्ध ने उन्हें शांति और उन्नति का मार्ग बताया. शिष्य यह जानकर हैरान थे कि उस गांव में किसी ने भी क्लेश या राजकीय उपेक्षा से संबंधित कोई शिकायत नहीं की. उस गांव में कुछ माह पहले ही सूखा पड़ा था. अगले दिन सुबह बुद्ध अपने शिष्यों के साथ वहां से जाने के लिए तैयार हुए तो गांव के लोगों ने उन्हें आदर सहित विदा किया. जाते वक्त भगवान बुद्ध ने उनके लिए आशीर्वाद में कहा, 'यह गांव उजड़ जाए...' यह सुनकर शिष्य अचरज से एक दूसरे का मुंह देखने लगे. लेकिन किसी से कुछ कहा नहीं. वे चुपचाप बुद्ध के पीछे चल दिए.

लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे

उस गांव से चलने के बाद वह जंगल, खेत और बागीचों से होकर एक हरे-भरे गांव में पहुंचे. पसीने से लथपथ थकान से हलकान शिष्यों ने गांव में एक आम के वृक्ष के नीचे ठहरने का आग्रह किया. बुद्ध वहीं रुक गए. पेड़ के नीचे बैठकर अभी सांस भी नहीं ले पाए तो एक पत्थर एक शिष्य के सिर पर लगा और चोट लगने से खून बहने लगा. पत्थर गांव के एक युवक ने पेड़ पर आम के लिए मारे थे. सामने ही आम गिरा तो लूटने के लिए कुछ लोग दौड़े और धक्का-मुक्की करने लगे. धीरे-धीरे झगड़ा होने लगा. एक आम को लेकर झगड़ा इतना बढ़ गया कि पेड़ के नीचे पूरा गांव दो गुट में बंटकर आमने-सामने था. जिसको जो मिला लाठी, तलवार, कटार लेकर एक-दूसरे को मारने दौड़े. तभी भगवान बुद्ध बीच में आ गए. यह बुद्ध का प्रताप ही था कि उन्हें देखते ही सब शांत पड़ गए. बुद्ध ने सभी को बैठने के लिए कहा. घटना को भुलाने की सलाह देकर वे उन्हें शांति का उपदेश देने लगे. बीच-बीच में लोग एक-दूसरे की शिकायत करते रहे और बुद्ध उन्हें समझाते रहे. काफी देर बाद गांववाले भगवान बुद्ध की बातों से संतुष्ट हुए. विदा लेकर लोग शांतिपूर्वक अपने-अपने घरों में जाने को तैयार हुए तो बुद्ध ने उन्हें आशीर्वाद दिया, 'यह गांव हमेशा बसा रहे...' सिर की पट्टी को सहलाते हुए चोटिल शिष्य ने दूसरे शिष्यों की तरफ आश्चर्य से देखा. सबकी आंखों में एक ही सवाल था लेकिन वे सब चुपचाप भूखे-प्यास बुद्ध के पीछे चल दिए.

दुनिया में शांति के लिए जरूरी

शिष्य बुद्ध के पीछे चुपचाप चल रहे थे. शिष्यों के देर तक चुप रहने की वजह भगवान बुद्ध जानते थे फिर भी वे उनके मुंह से सुनना चाहते थे. सो पहल करते हुए उन्होंने पूछा, 'क्या बात है? इतने चुप क्यों?' एक शिष्य ने कहा, 'भगवन, कुछ नहीं साथी को चोट लगी है तो...' बुद्ध ने कहा, 'ऐसा तो पहले भी हो चुका है. धम्म प्रचार में यह सब सहना पड़ता है. वैसे भी भिक्षु इतना कमजोर नहीं होता.' दूसरे शिष्य ने कहा, 'भगवन एक शंका है. किंतु आपकी बातों पर शंका...' बुद्ध ने कहा, 'किसी की भी बातों पर आंख मूंदकर विश्वास नहीं करना चाहिए. शंका हो तो बातचीत से उसका निराकरण होना चाहिए. नहीं तो अंधविश्वास और गलतफहमी पैदा होती है. धम्म तो ऐसा करने को नहीं कहता.' अब चोट खाए शिष्य ने पूछा, 'भगवन, आपने पहले गांव के अच्छे लोगों को उजड़ने और दूसरे गांव के बुरे लोगों को सदा बसे रहने का आशीर्वाद दिया. यही हम लोगों की शंका है.' तभी दूसरा शिष्य भी बोल पड़ा, 'जी भगवन, उजड़ना है तो बुरे लोग उजड़ें. शांति के लिए जरूरी है कि अच्छे लोग हमेशा बने रहें.' बुद्ध ने कहा, 'बिल्कुल ठीक. दुनिया में तभी शांति हो सकती है जब अच्छे लोग हर जगह हों. तभी मैंने पहले गांव को उजड़ने का आशीर्वाद दिया ताकि वे उस गांव से बाहर निकलकर कर दूसरे जगह जाएं और अच्छाई फैलाएं.' तभी उम्र में सबसे छोटा शिष्य बोल पड़ा, 'भगवन, मैं समझ गया. आपने दूसरे गांव के बुरे लोगों को सदा वहीं बसे रहने का आशीर्वाद दिया ताकि उस गांव की बुराई वहीं बनी रहे. बुरे लोग दूसरी जगह ना पहुंचे. वे जब वहां से बाहर नहीं जाएंगे तो उनके झगड़े, क्लेश, चोरी इत्यादि बुरी चीजें भी नहीं फैलेंगी.'