दूसरों के साथ हमारे अच्छे या बुरे बिहेवियर से हमारी पर्सनैलिटी का पता चलता है. हम जहां रहते हैं या काम करते हैं वहां स्पेस के अरेंजमेंट से भी हमारे मेंटल, इमोशनल और साइकोलॉजिकल फ्रेमवर्क का पता चलता है. डेस्क पर बिखरा पड़ा सामान बताता है कि आप आर्गनाइज्ड नहीं हैं, वहीं लम्बे समय तक जैसे-तैसे छोड़ा गया लिविंग रूम भी मन की उलझन को दिखाता है.

इन चीजों को अरेंज करके हम खुद को स्पिरिचुअली ऑर्गनाइज कर सकते हैं.साफ-सुथरे कमरे में सलीके से लगे सामान को देख मन भी काफी हद तक वैसा ही हो जाता है. शायद यही वजह है कि अगल-अलग ट्रेडिशन में इम्पॉर्टेंट फेस्टिवल्स के वक्त सफाई को जरूरी बताया गया है. जैसा बंगालीज न्यू ईयर और नॉर्थ इंडियंस दीवाली पर घर की सफाई करते हैं. ऐसा माना जाता है कि साफ-सुथरी जगह पर वेल्थ, लक और प्रॉस्पैरिटी आती है. तो फिर हम गुड लक के लिए, साल में ऐसे किसी खास दिन का इंतजार ही क्यों करें?

Activate your positive energy

फेंग्शुई जो एलिमेंट्स के जरिए एनर्जी को बैलेंस करने का तरीका बताता है वो भी स्पेस क्लीयरिंग पर जोर देता है. फेंग्शुई के मुताबिक अपने बिखरे पड़े सामान को साफ करके या काम में न आने वाली चीजों को हटाकर अपने आस-पास पॉजिटिव एनर्जी को एक्टिवेट किया जा सकता है. 

Gain more blessings

याद रखें बेहतर अरेंजमेंट्स चाहे वो मेल इन्बॉक्स और मोबाइल मैसेज बॉक्स से बेकार पड़े मैसेजेस को डिलीट करना हो या कमरे में सामानों को समेटना, ये सब कहीं न कहीं हमें स्पिरिचुअल रिलीफ देते हैं. ऑर्गनाइज्ड लाइफ का असर आपके फिजिकल, स्पिरिचुअल और इमोशनल लेवल पर पड़ता है. तो क्यों न हम अपने पर्सनल स्पेस को ऐसा बनाएं जो हमारी जिंदगी में खुशियां लाए. ये न सिर्फ बाहर से ऑर्गनाइज्ड दिखता है बल्कि अंदर के डिस्टर्बेंस को भी खत्म करता है.

- Courtesy: www.lifepositive.com

The secret of happiness

छोटे-मोटे पॉजिटिव चेंजेस भी हमें खुशी देते हैं. कुछ खुशियां टेम्परेरी होती हैं जबकि कुछ लम्बे वक्त तक रहती हैं. अब सवाल उठता है कि लम्बे वक्त तक खुश कैसे रहा जा सकता है. एक स्टडी से पता चला है कि खुद के एफट्र्स से आने वाली खुशी हम लम्बे वक्त तक महसूस करते हैं जबकि बाइ चांस आई खुशियां बहुत कम वक्त के लिए हमें खुश रख पाती हैं.रिसर्चर्स ने शेल्डन और ल्यूबोम्र्सकी की थ्योरी के बेसिस पर लोगों को खुश करने वाले सारे इवेंट्स को दो पार्ट में डिवाइड किया

•पहला एक्टिविटी चेंज (जैसे एक्सरसाइज)

•दूसरा सरकमस्टैनियल चेंज (लॉटरी निकलना)

Result of the study

स्टडी में पाया गया कि जो लम्बे समय तक खुश रहे उनकी खुशी की वजह एक्टिविटी चेंजेस थे वहीं जो लोग बाई चांस सिचुएशन चेंज होने पर खुश थे वे खुशियों को लम्बे समय तक बरकरार नहीं रख पाए. यह बात भी सामने आई कि लोग शॉर्ट टर्म खुशियों की ओर ज्यादा अट्रैक्ट होते हैं क्योंकि लॉन्ग टर्म में मिलने वाली खुशियों के लिए एफर्ट नहीं कर पाते.

Happiness level

हर किसी का एक हैप्पीनेस लेवल होता है जो अलग-अलग वजहों से घटता-बढ़ता रहता है. जनरली 50 से 80 परसेंट लोग अपने बचपन के हैप्पीनेस लेवल को चेंज करने के लिए एफर्ट नहीं करते.

Word wise

My tryst with spirituality

योगा एक्सपर्ट यामिनी त्रिवेदी ने बताया कि, 'इसमें कोई शक नहीं कि खुशियां इंसान को जीने की राह दिखाती हैं. लाइफ में खुशी के साथ गम भी आते हैं. मगर, इंसान को खुशी के पलों पर न तो ज्यादा इतराना चाहिए. ना ही दुख में ज्यादा दुखी. दूसरे शब्दों में लाइफ को बैलेंस-वे में जीने की जरूरत है. यकीन मानिए ऐसा करने से मुझे हमेशा खुशी मिलती है. कभी भी कुछ खोने का दुख नहीं होता है. मेरी लाइफ में जब कभी खुशियां आती हैं. मैं उन्हें सेलीब्रेट करना नहीं भूलती. मेरा लाइफ के प्रति एक विजन है. जिसका मैं हमेशा ध्यान रखती हूं और उसे फौलो करती हूं. बस यही है मेरी छोटी सी खुशहाल दुनिया और सक्सेस का अल्टीमेट मंत्रा. जो मुझे जिंदगी को बिंदास ढंग से जीने के लिए मोटीवेट करता है. आप भी इससे अपना कर जिंदगी में हमेशा खुश रह सकते हैं.'