- क्रॉनिक ऑब्सट्रेटिक प्लमोनरी डिजीज (सीओपीडी) में हार्ट अटैक की आशंका 10 गुणा अधिक

- हॉस्टल और लॉज में रहने वाले स्टूडेंट्स को अधिक हो रही है टीबी

- कोयले के चूल्हे से चेस्ट को खतरा, पटना में आयोजित इंडियन चेस्ट सोसाइटी के कांफ्रेंस में सामने आया सच

PATNA : बिहार चेस्ट की बीमारी का बड़ा घर बन गया है। चेस्ट को सबसे ज्यादा खतरा किन कारणों से हो रहा है, आई नेक्स्ट ने इसकी पड़ताल संडे को इंडियन चेस्ट सोसाइटी की ओर से होटल मौर्या में ऑर्गनाइज प्रोग्राम में किया। पटना में आयोजित चेस्ट अपडेट के एकदिवसीय कांफ्रेंस में देश के जाने माने डॉक्टर पहुंचे थे।

स्मोकिंग ज्यादा खतरनाक है चूल्हे का धुंआ

चेस्ट को बड़ा खतरा गांवों में जलने वाले गोयठे और कोयले के चूल्हे से हो रहा है। ये बताते हैं कोलकाता के फोर्टिस हॉस्पीटल के डॉ। राजा धर। वे कहते हैं कि नए रिसर्च के मुताबिक स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक होता है चूल्हे से निकलने वाला धुंआ। गांव में पांच-दस साल के बच्चों की सांस की नली बचपन में ही इस धुएं की वजह से संकुचित हो जाती है। खास तौर से यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल में ये खूब देखा जा रहा है। इसे सीओपीडी यानी क्रॉनिक ऑब्सट्रेटिक प्लमोनरी डिजीज कहते हैं। इसमें सांस की नली स्थायी रूप से सिकुड़ जाती है। जबकि अस्थमा में सांस की नली अस्थाई रूप से सिकुड़ती है। अस्थायी संकुचन का ठीक होना ज्यादा आसान है पर स्थायी संकुचन का ठीक होना मुश्किल।

सीओपीडी में और भी कई खतरे

सीओपीडी में हार्ट अटैक की आशंका क्0 गुणा ज्यादा बढ़ जाती है। टीबी होने का रिस्क ज्यादा हो जाता है। गांव में ज्यादातर महिलाओं का दम फूलना और झुक कर चलना इसी कोयले-गोयठे वाले चूल्हे के इस्तेमाल से होता है। अब गांवों में भी गैस चूल्हा पहुंच गया है पर लोगों ने पूरी तरह से कोयले के चूल्हे को नहीं छोड़ा है।

टीबी यहां भी है ज्यादा

स्टूडेंट्स टीबी के शिकार बहुत ज्यादा हो रहे हैं। खास तौर से हॉस्टल, जेल, डॉरमेटरी में रहने वाले किसी एक को यह बीमारी हो गई तो उससे बाकी लोगों में तेजी से फैलती है। दो सप्ताह टीबी की दवा चलने के बाद ही टीबी का बैक्टीरिया सांसों के रास्ते बाहर निकलना बंद करता है, नहीं तो ये फैलकर आसपास के लोगों को अपनी गिरफ्त में ले लेता है।

खर्राटे को नहीं करें इग्नोर

कई बार लोगों को आपने नींद मे खर्राटे लेते हुए देखा होगा। खर्राटे को नजरअंदाज करना कभी-कभी मुश्किल खड़ा कर सकता है। इसे कभी इग्नोर नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों की सांस की नली कई बार बंद हो जाती है। शरीर के अंदर के ऑर्गेन को ऑक्सीजन सप्लाई बंद हो जाने की वजह से ऐसा होता है। ऐसे में हार्ट अटैक, हाइपरटेंशन, ब्लड सूगर और किडनी डिजीज हो सकते हैं।

स्लीप एप्निया से बचने के लिए मशीन

स्लीप एप्निया से बचने के लिए एक मशीन के इस्तेमाल पर जोर देते हुए डॉक्टर राजाधर ने कहा कि इसे सीपीएपी ट्रीटमेंट कहते हैं। कंटीनुअस पॉजिटिव एयर वे प्रेशर मशीन को रात में सोते समय नाक पर लगा कर सोना होता है। यह मशीन बीमारी से ग्रस्त मरीजों की जिन्दगी को बदल देती है।

धूल से चेस्ट को कैसे-कैसे खतरे

चेस्ट की कई बीमारियां वहां दिखती हैं जहां लोग हर दिन काम करते हैं। ऐसी बीमारी को ऑक्युफेशनल लंक्स डिजीज कहते हैं।

पत्थर काटने वाले को- सिलिकोसिस

अंडरग्राउंड, कोयला खान में काम करने वाले को- सीओपीडी

एस्बेस्टस का काम करने वाले को- एस्बेस्टोसिस

ब्रेड बनाने वाले को- अस्थमा

ट्रैफिक पुलिस को- अस्थमा और सीओपीडी

इंडियन चेस्ट सोसाइटी की ओर से किए गए इस आयोजन का मकसद बिहार के डॉक्टरों को नये रिसर्च से अवगत कराना है। बड़े डॉक्टर के एक्सपीरिएंस से लाभ होता है। पटना में क्भ्-ख्0 परसेंट ट्रैफिक पुलिस को सीओपीडी सांस फूलने की बीमारी है। पटना की हालत यह है कि स्मोकिंग और धूल से लोगों के चेस्ट डैमेज हो रहे हैं।

- डॉ। संजय कुमार, स्टेट को-ऑर्डिनेटर, इंडियन चेस्ट सोसाइटी।

पटना में धूल बहुत है। इसलिए लोगों को घर से बाहर निकलते समय मास्क जरूर लगाना चाहिए। घर लौटने के बाद नाक और गले को पानी से ठीक से साफ करें। आस पास के गांवों में जहां गोयठा, लकड़ी या कोयला का इस्तेमाल लोग जलावन के लिए करते हैं उसे छोड़ना चाहिए। गवर्नमेंट को चाहिए कि लोगों के लंग्स चेकअप कराए।

- डॉ। राधा धर, एचओडी, फोर्टिस हॉस्पीटल, कोलकाता।

कई बार पेशेंट सच नहीं बताते। उन्होंने स्मोकिंग करना छोड़ा कि नहीं या इन्हेलर ले रहे हैं कि नहीं। उनकी वाइफ से पूछने पर भी सच पता नहीं चलता, उनके बेटे भी सच नहीं बताते। लेकिन ज्यादातर ऐसा होता है कि बेटियों से जब हम पूछते हैं तो वो सच बताती हैं कि पापा स्मोकिंग अभी भी करते हैं। इन्हेलर भी नहीं लेते।

- डॉ। सूर्यकांत, किंग जॉर्ज हॉस्पीटल, लखनऊ।