अदालत ने उन्हें 19 जनवरी को व्यक्तिगत रुप से पेश होने का भी आदेश दिया है। सप्रीम कोर्ट की पाँच सदस्यी खंडपीठ ने 10 जनवरी को नेशनल रिकंसिलिएशन आर्डिनेंस (एनआरओ) के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर फ़ैसला सुनाते हुए सरकार को छह विकल्प दिए थे, जिसमें प्रधानमंत्री को अदालत की अवमानना का नोटिस जारी करना भी शामिल था।

मुशरर्फ़ ने दी थी आम माफ़ी

ग़ौरतलब है कि पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ ने अपने कार्यकाल में कई नेताओं और अधिकारियों को आम माफ़ी दी थी। इसके तहत इन लोगों के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार और कोई अन्य मुकदमा नहीं चलाया जा सकता था। इन लोगों पर 1990 के दशक के दौरान कई तरह के आरोप लगे थे।

नेशनल रिकंसिलिएशन आर्डिनेंस या एनआरओ के नाम से प्रचलित इस क़ानून का लाभ उठाने वालों में राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी, गृह मंत्री रहमान मलिक, कई अन्य मंत्री, वरिष्ठ नेता और सरकारी कर्मचारी शामिल हैं।

राष्ट्रपति बनने से पहले ज़रदारी कई सालों तक जेल में थे और उन पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे। लेकिन पाकिस्तान की अदालत ने इस विवादास्पद अध्यादेश को दिसंबर 2009 में अवैध क़रार दिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बचाव का रास्ता भी सुझाया था और कहा था कि सरकार को संसद में विश्वास मत हासिल करना होगा।

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