- एन विजया लक्ष्मी ने कहा, महिलाओं के खिलाफ हिंसा के लिए आवाज उठना जरूरी

- पहल की ओर से चाइल्ड अर्ली एंड फो‌र्स्ड मैरेज सब्जेक्ट में पीडब्ल्यूसी में सेमिनार आयोजित

-बाल विवाह व जबरन विवाह करने वाले गार्जियंस व सोसायटी की काउंसिलिंग होनी चाहिए

PATNA: बेटियों की शादी के लिए मिनिमम एज ख्क् वर्ष होना चाहिए। फिलहाल लॉ में ग‌र्ल्स की शादी की उम्र मिनिमम क्8 वर्ष है, जिसमें बदलाव जरूरी है। इस उम्र में तो प्राय: ग‌र्ल्स इंटर की पढ़ाई कर रही होती हैं। ये बातें मंगलवार को पटना वीमेंस कॉलेज के स्टेज हॉल में पहल की ओर से चाइल्ड अर्ली एंड फो‌र्स्ड मैरेज सब्जेक्ट पर आयोजित सेमिनार में जीविका की सीईओ एन विजया लक्ष्मी ने कहीं। उन्होंने आगे कहा कि देश के ईस्टर्न रीजन बिहार, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल में सेक्स रेशियो काफी खराब है। इन एरिया में फीमेल एजुकेशन, बाल विवाह आदि कई समस्याएं हैं। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए ग‌र्ल्स को भी व्यक्गित रूप से सोसायटी में जागरूकता फैलाने का काम करना होगा।

मिलकर काम करना होगा

भारत में कनाडा के डिप्टी हाई कमीशन जेश डट्टन ने चाइल्ड अर्ली एंड फो‌र्स्ड मैरेज की समस्या को हल करने के लिए अवेयरनेस बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया। दैनिक जागरण प्रकाशन लिमिटेड के डायरेक्टर सुनील गुप्ता ने बाल विवाह को वर्तमान समय में बड़ी चुनौती बताते हुए इस समस्या को समाप्त करने के लिए सबको मिलकर सहयोग करने की अपील की। प्रोग्राम में यूनिसेफ के चाइल्ड प्रोटेक्शन राइट्स के एक्सपर्ट सैय्यद मंसूर कादरी, कॉलेज की प्रिंसिपल डॉ सिस्टर मैरी जस्सी, सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट के डायरेक्टर इमामउद्दीन अहमद, जागरण पहल के सीईओ आनंद माधव ने भी अपने विचार रखे। वोट ऑफ थेंक्स डॉ शेफाली राय ने किया।

बाल विवाह की इजाजत नहीं

वीमेंस कमीशन की चेयरपर्सन अंजुम आरा ने बाल विवाह व जबरन विवाह के खिलाफ ग‌र्ल्स को अपने आस-पास से विरोध प्रारंभ करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि जबरन विवाह या बाल विवाह के लिए कानून, सोसायटी या धर्म कोई भी परमिशन नहीं देता है। सोसायटी में यह सोच डेवलप हो चुका है कि बेटियां बोझ हैं, इसी कारण गार्जियंस बेटियों की शादी जल्दी करना चाहते हैं। हमें इस मेंटैलिटी को बदलना होगा। बेटियां बोझ नहीं, सोसाइटी की एसेट हैं। प्राय: कहा जाता है कि घर से बाहर बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। पुलिस-कानून अपना काम नहीं कर रही है। घर के बाउंड्री के भीतर जब कोई पति या कोई अन्य रिश्तेदार किसी को प्रताडि़त करता है तो उस हिंसा के विरोध में हमें खड़ा होना होगा, तभी इसे रोका जा सकता है।

मेंटैलिटी का सवाल है

बाल विवाह व जबरन विवाह किसी खास क्लास, गरीब-अमीर व शहरी या ग्रामीण की प्रॉब्लम्स नहीं है। यह प्रॉब्लम सोसायटी के कुछ खास लोगों की मानसिकता का है। ये बातें बाल संरक्षण आयोग की चेयर पर्सन डॉ निशा झा ने कहीं। उन्होंने आगे कहा कि इन प्रॉब्लम्स के पीछे एप्रोच एवं एटीच्यूड का है कि हम इसे किस तरह ग्रहण करते हैं, प्रॉब्लम्स को रोकना इस पर निर्भर करता है। हम अपने गार्जियंस को एजुकेशन एवं अन्य सुविधा पाने के लिए मना लेते हैं। हमें बाल विवाह या जबरन विवाह को सोसाइटी से समाप्त करने के लिए परिवार व सोसायटी के साथ काउंसिलिंग करना होगा। उन्हें इस प्रॉब्लम्स के नुकसान के बारे में बताना होगा।