-गोरखपुर के गांव काजीपुर सुकरौली निवासी दो किशोरियां पहुंची शहर

-चाइल्ड लाइन आज दोनों किशोरियों को पेश करेगी सीडब्ल्यूसी कोर्ट

>BAREILLY

: पंद्रह बरस की रंजू और 16 बरस की उसकी सहेली आफरीन संडे देर रात बरेली जंक्शन पर पकड़ी गईं। दोनों गोरखपुर से आने वाली एक ट्रेन से उतरीं और जंक्शन पर अकेले घूम रही थीं। जीआरपी को शक हुआ तो उनसे पूछताछ की। दोनों के पास गोरखपुर से अंबाला का टिकट था। उनकी कहानी खुली तो सभी चौंक गए। दरअसल, यह दोनों सहेलियां गोरखपुर के काजीपुर सुकरौली नाम के गांव की रहने वाली है, उनके गांव में आठवीं कक्षा तक का सरकारी स्कूल है। दोनों आगे पढ़ना चाहती हैं, लेकिन घरवाले शहर भेजने को तैयार नहीं। काफी जिद के बाद भी जब इनके माता पिता तैयार नहीं हुए तो दोनों ने घर से भागने का मन बना लिया। सैटरडे को दोनों अपने माता-पिता से छिपते हुए 600 सौ रुपए लेकर गोरखपुर जंक्शन पहुंची और वहां से ट्रेन पर सवार हो गईं। रंजू आठवीं तक पढ़ाई कर चुकी है और आफरीन शहर के एक स्कूल में दसवीं में पढ़ रही थी, लेकिन घरवालों ने बीच में स्कूल छुड़वा दिया।

अंबाला जाने की क्यों ठानी? क्या इन्हें कोई वहां जानता है? इन सवालों का जवाब दोनों सहेलियों के पास नहीं है। बस इतना कहती है। ट्रेन अंबाला जाती है इसलिए वहां का टिकट ले लिया। दोनों सहेलियां को जीआरपी ने चाइल्ड लाइन को सौंप दिया। मंडे को उन्हें मेडिकल के बाद उन्हें नारी निकेतन भेज दिया गया। ट्यूजडे को उन्हें चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की कोर्ट में पेश किया जाएगा। दोनों के माता-पिता को सूचना दे दी गई है। दोनों परिवार भी रास्ते में हैं।

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मैंने अपने मम्मी पापा से बहुत बार कहा कि मुझे आगे की पढ़ाई करना है लेकिन उन्होंने मेरी नहीं सुनी। दो भाई हैं पापा उन्हीं का पढ़ाना चाहते थे। मेरी पढ़ाई छुड़वा दी। मेरी मोहल्ले में सहेली है उसके घर वालों ने भी हाईस्कूल की पढ़ाई छुड़वा दी है। वह भी परेशान थी। मेरे पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं। पैसा भी कमाते हैं फिर भी मुझे नहीं पढ़ाया। फिर मैंने भी मम्मी पापा को सबक सिखाने के लिए घर छोड़ दिया.

रंजू यादव

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रंजू मेरे मोहल्ले में रहती है, मेरी और उसकी काफी पुरानी दोस्ती है। हम दोनों आगे की पढ़ाई करना चाहते थे लेकिन घर वाले शहर भेजने को तैयार नहीं थे। मेरी हाईस्कूल की पढ़ाई छुड़वा दी। गुस्सा आया, लेकिन मम्मी पापा का कुछ कर भी नहीं सकते। जिससे हम दोनों ने परिवार वालों को सबक सिखाने के लिए घर छोड़ा है। लेकिन अब घर जाना चाहती हूं। घरवालों को सबक मिल गया होगा।

आफरीन खातून