इंडियन वीमेन टीम वल्र्ड कप से बाहर हो गई। टीम से लोगों को जीतने की उम्मीद थी। भले ही टीम वल्र्ड कप नहीं जीत सकी, लेकिन उसने स्टेट की गल्र्स में क्रिकेट खेलने का जज्बा जगा दिया। इंडिया में खेले गए वल्र्ड कप में मिताली राज, झूलन गोस्वामी जैसे प्लेयर्स को खेलते देख कई गल्र्स बैट लेकर घर से निकल पड़ीं। पहले भी क्रिकेट खेलती थीं लेकिन तब प्रोफेशनल क्रिकेट में ज्यादा इंटरेस्ट नहीं लेती थीं। वल्र्ड कप में चौके-छक्के देखने के बाद स्टेट की गल्र्स ने भी इंडियन टीम में शामिल होने के लिए कमर कस लिया है। उन्हें अच्छे कोच, ग्राउंड और प्रैक्टिस नहीं मिल रहे हैं, फिर भी मैचों में उनकी बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग देखने लायक होती है। अभी हाल ही में इनमें से कई गल्र्स इंडो-भूटान सीरिज जीतकर लौटी हैं। दो मैचों की इस सीरिज में टीम ने बेहतरीन परफॉर्मेंस दिया। गल्र्स कहती हैं कि प्रोफेशनल क्रिकेट में आने से डर लगता था। स्टेट को रणजी की मान्यता नहीं है। ऐसे में कॅरियर के लिहाज से क्रिकेट ठीक नहीं था। लेकिन जब महेंद्र सिंह धोनी इंटरनेशनल क्रिकेट तक पहुंच सकते हैं तो हम क्यों नहीं? बस इसी सोच के बाद गल्र्स ने खेलना शुरू कर दिया।

सुहेली के साथ से चल पड़ी

पटना यूनिवर्सिटी में स्पोट्र्स करीब-करीब दम तोड़ चुका था। लेकिन सुहेली ने एक बार फिर से पीयू में स्पोट्र्स को जिंदा कर दिया है। लंबे अंतराल के बाद फरवरी 2007 में डॉ। सुहेली मेहता इंटर यूनिवर्सिटी क्रिकेट खेलने के लिए वीमेन टीम को ग्लालियर ले गई। उसके बाद एक बार फिर जब डॉ। सुहेली स्पोट्र्स बोर्ड की सेक्रेटरी बनी तो पीयू इंटर कॉलेज टी-20 क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। स्पोट्र्स में बैकफुट पर रहने वाला पटना वीमेंस कॉलेज ने टूर्नामेंट जीता, जबकि उसके अगेंस्ट मगध महिला कॉलेज की कई इंटरनेशनल लेवल की प्लेयर्स खेल रही थी। डॉ। सुहेली कहती हैं कि आप जिस स्पोट्र्स को प्रमोट करेंगे लोग वही खेलेंगे। जब टूर्नामेंट हुए तो दर्जनों गल्र्स आगे आईं। अब पीयू के हर कॉलेज में लगातार क्रिकेट सहित अन्य गेम होंगे।

गल्र्स ने ठाना खेलूंगी क्रिकेट

सपोर्ट मिलने के बाद गल्र्स ने क्रिकेट खेलने की ठान ली है। दिल्ली के केन्द्रीय विद्यालय स्पोट्र्स एकेडमी की ऑफिसर उमा गार्गी सिंह कहती हैं कि मैं जब मगध महिला कॉलेज में आई उसके बाद से क्रिकेट खेलना शुरू किया। कई नेशनल और स्टेट लेवल का मैच खेल चुकी हूं। अभी भूटान में इंटरनेशनल क्रिकेट खेलकर लौटी हूं। इससे पूर्व मैं खेलती तो थी लेकिन प्रोफेशनल नहीं थी। मैं नागपुर यूनिवर्सिटी की ओर भी क्रिकेट खेल चुकी हूं। वहीं मगध महिला कॉलेज की वर्तिका कहती हैं हमें इंटरनेशनल लेवल का कोच और फैसिलिटीज मिले तो इंडियन टीम में एंट्री से कोई नहीं रोक सकता है। भले ही स्टेट को रणजी की मान्यता नहीं मिले हम दूसरे स्टेट से खेलकर इंडियन वीमेन क्रिकेट टीम में जगह बना लेंगे। इसी तरह वीमेंस ट्रेनिंग कॉलेज की संचिकाश्री कहती हैं कि मैं पहले एथलेटिक्स में थोड़ा बहुत पार्टिसिपेट करती थी। बचपन में ही मैंने डिस्ट्रिक्ट कराटे में गोल्ड मेडल जीता। एमएमसी में आकर मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया। अब मैं प्रोफेशनल क्रिकेट में आ चुकी हूं। वहीं संचिकाश्री की ट्वींस सिस्टर सुचिकाश्री कहती है कि मेरा भी कुछ इसी तरह का हाल है। लॉ कॉलेज से एलएलबी कर रही हूं। क्रिकेट मेरा पैशन है लेकिन अब जाकर खेल पा रही हूं।

ये हैं प्रॉब्लम

* गल्र्स के खेलने के लिए ग्राउंड नहीं है।

* स्पेशलिस्ट कोच नहीं है

* गल्र्स क्रिकेटर्स को बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मिलता।

* रणजी की मान्यता नहीं होने से आगे गल्र्स क्रिकेट नहीं खेल पाती हैं।

* एसोसिएशन में चल रहा है विवाद तो कॉलेज में स्पोट्र्स को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था।

* एनुअल स्पोट्र्स को छोड़ नहीं होता था कोई गेम।