एक ओर पीके फिल्म की दलीलों को धर्म का अपमान कह कर हंगामा मचा है। दूसरी तरफ शहर में जगह-जगह भगवान के नाम पर भगवान का ही जो अपमान हो रहा है, उसे सभी नजरअंदाज किये बैठे हैं। आप ही सोचिए कि क्या दूसरों को मनमानी से रोकने, अपनी चीजों को बेचने के लिए भगवान के नाम या उनके चित्र का उपयोग सही है

भगवान के नाम पर कुछ भी करेगा

- गंदगी से बचने के लिए शहर में खूब हो रहा भगवान की मूर्ति और तस्वीरों का इस्तेमाल

- बिजनेस प्रमोशन के लिए भी लोग ईष्ट के नाम और चित्र के इस्तेमाल से बाज नहीं आते

- धर्मस्थलों के आस-पास खुल चुकी हैं शराब की दुकानें और गंदगी की भी है भरमार

VARANASI : इंसान के जीवन और सुख-सम्पत्ति की रक्षा करने वाले भगवान लोगों के घर, दीवार, मकान के साथ शौच आदि से भी रक्षा करते हैं। अगर ऐसा नहीं होता है ऐसी जगहों पर इनकी तस्वीर या मूर्तियां नहीं दिखतीं जहां उन्हें नहीं होना चाहिए। सच यह है कि इंसान इन्हें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है। ऐसा करने वाले को शर्म नहीं आती है। कुछ तो इससे भी ज्यादा बेशर्म होते हैं। वह इन तस्वीरों और मूर्तियों के सामने शौच करते हैं, पान का पीक थूकते हैं। पीके बने रिपोर्टर को ऐसे नजारे पूरे शहर में दिखे। परम शक्ति के ऐसे भक्तों की भक्ति ढेरों सवाल खड़ा करती नजर आई जिसका जवाब खोजना भी मुश्किल था।

हर जगह है मौजूद

पीके बना रिपोर्टर शनिवार को शहर की सड़कों और गलियों में घूमता रहा। एक नजारा आम था। कहीं किसी गंदगी से पटी गली की एक दीवार पर एक मूर्ति या तस्वीर, यह उसकी है जिसके आगे सभी शीश नवाते हैं। कहीं ये मूर्ति या तस्वीर किसी कब्जे से बचने के लिए थी तो कहीं पेशाब और मल करने से लोगों को रोकने के लिए। धर्म से डरने वालों को यहां डर नहीं लगता है। वह मूर्ति और तस्वीर के आगे भी मूत्र विसर्जन बेखौफ होकर करते नजर आए।

किसी को परवाह नहीं

भगवान के चित्र के आगे सिर्फ इतना ही विचित्र होता नहीं दिखा। आस-पास के लोग घरों, दुकानों का कूड़ा-कचरा, जूठन भी भगवान के चित्र के आगे चलते बने। मूति-तस्वीरों का यह फायदा जरूर है कि अवैध रूप से बनायी किसी मकान, दुकान की दीवार को तोड़ने के लिए प्रशासनिक अमला पहुंचता है तो धर्म की रक्षा के नाम पर कुछ लोग जरूर खड़े हो जाते हैं। अवैध निर्माण कराने वाले का तो काम हो जाता है। लेकिन चित्र बनवाने और उसके आगे गंदगी करने वालों को इससे फर्क नहीं पड़ता कि उनके इस कृत्य से किसकी भावनाएं आहत होती हैं।

हर दीवार कुछ कहती है

खइके पान बनारस वाला तो थूकेगा ही। शहर की कोई ऐसी इमारत और दीवार नहीं बची जिस पर पान की पीक नजर नहीं आती है। पान के शौकीनों को ऐसे स्थान को लाल करने में ज्यादा मजा आता है जो बिल्कुल नई नजर आती है। इस स्थिति से बचाने के लिए लोगों को ऊपर वाले से मदद लेनी पड़ती है। जिस स्थान पर लोग पान थूकते हैं वहां कोई उनकी तस्वीर लगा देते हैं। बनारसी इससे भी कहां बाज आने वाले वह तस्वीर की परवाह किए बगैर अपना काम जारी रखते हैं। उस वक्त उन्हें पाप-पुण्य का ख्याल नहीं आता है, जिसकी वह हर वक्त दुहाई देते हैं। कुछ दिनों बाद तो पीक के चलते वह तस्वीर भी नजर नहीं आती।

बाजार में भगवान को झटका

भगवान मार्केटिंग के लिए भी बड़े सूटेबल हैं। कोई इनके नाम पर अपनी दुकान का नाम रख लेता है तो कोई इनके नाम पर अपना प्रोडक्ट बेचता है। यहां भी उन्हें सम्मान नहीं मिल पाता है। बीड़ी, सिगरेट, पान मसाला को इनके नाम पर बेच रहे हैं। किसी ने शराब की दुकान नाम ही इनके नाम पर रख दिया है। ऐसा करने वाला की कोई मंशा सम्मान करने की नहीं होती है वह तो सिर्फ रुपये कमाने के लिए नाम का उपयोग करता है। बहुत सारे लोग अपने प्रोडक्ट पर भगवान की तस्वीरें छपवाते हैं। उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि प्रोडक्ट के इस्तेमाल के बाद उसके रैपर या डिब्बे पर बने भगवान की क्या गति होने वाली है।

किसी को नहीं पड़ता फर्क

इधर-उधर कूड़ा फेंकना, मल-मूत्र विसर्जित करना, पान थूकना इस शहर में मना है। जुर्माना के साथ जेल तक का प्रावधान है। लेकिन भला माने कौन। पूरे देश के साथ शहर में सफाई अभियान चल रहा है लेकिन बनारस वालों को इससे क्या लेना-देना। उन्हें दो जैसे गंदगी फैलाने में मजा आता है। यहां तक कि जिन नदियों को मां की संज्ञा देते हैं उसके किनारे मल-मूत्र त्याग करते हैं। यह नदियों तक पहुंचता है। जबकि लोग नदियों में नहाने-धोने से लेकर आचमन तक करते हैं। भला कौन सोचे इस बारे में। बस उनका काम तो हो रहा है। शहर को साफ रखने के जिम्मेदार भी इस गंदगी को रोक नहीं पाते हैं।

बेशर्मी की हद है

यह सब देखने के बाद पीके के मन में सवाल आता है कि क्या भगवान इन कामों के लिए हैं। वह राह चलते गंदगी फैलाने वालों का पहरा देंगे। वह लोग टायलेट जाने के बजाय सड़क किनारे यूरीन करते हैं। उनको तमीज कब आएगी? घरों की दीवारों और सीढि़यों के कोनों पर उनकी पीक की पिचकारी मारने की आदत कब बंद होगी।

ये भी हो रहा है भाई

- धर्म स्थलों के आस पास शराब या मीट-मछली की दुकान नहीं होनी चाहिए लेकिन ये भी हो रहा है।

- धर्म स्थलों के आस-पास गंदगी, शौचालय नहीं होना चाहिए लेकिन ये भी आपको नजर आ जाएंगे।

- जिस ईष्ट से लोग अपने गुनाहों की माफी मांगने जाते हैं उसी के घर में चोरी की घटनाएं भी हो रही हैं।

- कुछ धर्म स्थलों को अतिक्रमण करके उनको दुकानदारी का अड्डा बना दिया गया है।

- धार्मिक मान्यताओं से जुड़े कुण्ड, तालाब, पोखरे पाट कर कॉलोनियां बसाई जा रहीं हैं।