बिजनेसमैन हैं कौशल

बेसिकली बलिया को बिलॉन्ग करने वाले कौशल गुप्ता 1990 में बनारस अपने परिवार को लेकर रोजी की तलाश में आये थे। काफी ठोकरें खाने के बाद जब कौशल को कुछ खास हाथ नहीं लगा तो वो पहुंच गये महाश्मशान मणिकर्णिका घाट। यहां पहुंचने के बाद कौशल ने इलाके के ही कुछ लकड़ी बेचने वालों व एक पान की दुकान में नौकरी की लेकिन कुछ ही सालों बाद कौशल ने खुद का बिजनेस स्टार्ट कर दिया। कौशल आज मणिकर्णिका और हरिश्चन्द्र घाटों पर दाह संस्कार के बिकने वाले सामानों का बिजनेस करते हैं। वह बताते हैं कि 1990 में जब वो इस घाट पर आए तो कई ऐसी लाशों को देखा जिनको कोई जलाने वाला नहीं था। उनको लोग लावारिस कहकर गंगा में फेंक देते थे। इससे मेरा दिल रो दिया।

अस्पतालों से है सम्पर्क

कौशल अपना प्रचार नहीं चाहते। उनका कहना है कि मैं ये सब खुद को फेमस करने के लिए नहीं बल्कि उन आत्माओं को मोक्ष दिलाने के लिए करता हूं जिनको दुनिया में भगवान ने भेज तो दिया लेकिन उनका कोई अपना नहीं भेजा। कौशल के मुताबिक उन्होंने लावारिस लाशों का क्रिमेशन कराने के लिए न तो कोई समिति बनाई है और न ही किसी का सहयोग लेते हैं। इसके बावजूद वो अबतक लगभग 200 से ज्यादा लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं। इसके लिए उन्होंने शहर के कुछ सरकारी और गैर सरकारी हॉस्पिटल्स से सम्पर्क साध रखा है। इन अस्पतालों में अगर किसी ऐसे व्यक्ति कि मौत होती है जिसका कोई अपना नहीं है तो वो अस्पताल कौशल को इन लाशों के दाह संस्कार के लिए फोन करता है।

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कौशल यहां नहीं रहते हैं फिर भी उन्होंने इलाके के लकड़ी दुकानदारों को कह रखा है कि अगर कोई लावारिस लाश आती है तो उसके दाह संस्कार कौशल पिछले कई सालों से करा रहे है।

शिवनारायण यादव, स्थानीय निवासी

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मैंने जबसे घाट पर आना शुरू किया है तबसे मैं देख रहा हूं कौशल लावारिस लाशों का दाहसंस्कार करा रहे है। जिन लाशों की ये अंत्येष्टि कराते है उनको आग देने के बदले डोम समाज भी कुछ नहीं लेता है।

मालू चौधरी, स्थानीय नागरिक

Report by: Devendra Singh