आज हम आपको ऐसे ही एक शौकीन शख्स से मिलवा रहे हैं, जो यूं तो दूसरों को चाय की चुस्की का मजा देते हैं, मगर खुद शिकार हो गए हैं एक चस्के का। इनको लगा है एक ऐसे खेल का चस्का, जो महंगा खेल माना जाता है। यह महंगा शौक पालने वाले इस शख्स का नाम है सुमित कुमार महतो और जिस महंगे खेल का इन्हें चस्का लगा है, वह है गोल्फ।

आज सुमित टॉप के गोल्फर हैं। गोल्फ में अगर इनकी रैंकिंग की बात की जाए, तो आज यह माइनस वन हैंडिकैप के प्लेयर बन चुके हैं। साथ ही एमेचर्स रैंकिंग क्वालिफाइंग राउंड में सुमित इंडिया के टॉप टेन में शामिल हो चुके हैं। लेकिन, यहां तक का सफर तय करने में इन्होंने काफी पापड़ बेले हैं। एक चाय वाला से टॉप का गोल्फर बनने का यह सफर इतना आसान नहीं था।

कई मुश्किलें, स्पेशली ऑड फाइनेंशियल कंडीशन सुमित के इस महंगे शौक और दीवानगी की राह में आड़े आईं। इसके बावजूद सुमित ने गोल्फर बनने का सपना नहीं छोड़ा।


नौकरी करते हुए पूरी की पढ़ाई
बरियातू स्थित पंचवटीपुरम में रहने वाले सुमित कुमार महतो ने पढ़ाई के दौरान ही जॉब करना शुरू कर दिया था। जाहिर है, इनकी फैमिली की इकोनॉमिक कंडीशन अच्छी नहीं थी। पिता दिलेश्वर महतो खेती करते थे, जिससे घर का गुजारा मुश्किल से होता था। सिल्ली हाई स्कूल से 10वीं पास करने के बाद सुमित ने रांची में ही एक डॉक्टर के पास कंपाउंडर का काम करना शुरू किया।

बतौर कंपाउंडर 10 साल काम करने के दौरान ही उन्होंने इंटर और ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की। इस बीच सरायकेला कोर्ट में क्लर्क की नौकरी भी लगी.एक साल तक जॉब करने के बाद कुछ पर्सनल रीजन्स की वजह से उन्होंने  रिजाइन कर दिया और रांची लौट आए। रांची आने के बाद जब अर्निंग का कोई रास्ता नहीं दिखा, तोडॉ केके सिन्हा के क्लिनिक के पास चाय की दुकान खोल ली।


2006 से लगा गोल्फ का चस्का
चाय की दुकान चलाते-चलाते एक दिन इनके दूर के रिश्तेदार सुखलाल महतो, जो पिछले 20 सालों से गोल्फ के प्लेयर थे, इन्हें अपने साथ रांची के कोकरेल गोल्फ क्लब ले गए। यहां के मेंबर बीके श्रीवास्तव ने सुमित को देखते ही कहा कि भाई तुम गोल्फ क्यों नहीं खेलते। तुम बहुत अच्छा खेल सकते हो, बहुत आगे जाओगे। चूंकि इस खेल को खेलने के लिए लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं, इसलिए सुमित को थोड़ी हिचकिचाहट हुई।

चाय वाला golfer

मेंबर बीके श्रीवास्तव ने इनकी मदद की और पैसे बाद में देने को कहा। इसके बाद सुमित की मॉर्निंग प्रैक्टिस शुरू हो गई। चार-पांच घंटे डेली प्रैक्टिस करने के बाद साल 2006 में आर्मी गोल्फ कप में हुए बीके श्रीवास्तव मेमोरियल टूर्नामेंट में विनर का खिताब मिला।


और आ गए आल इंडिया टाप टेन में
एक बार टूर्नामेंट में विनर बनने के बाद सुमित का हौसला बढ़ता गया। इसके बाद उन्होंने कई टूर्नामेंट्स में अपना जलवा दिखाया। 2007 में हुए गोल्फ टूर्नामेंट में इन्हें बेस्ट गोल्फर का अवार्ड मिला। जबकि ओडि़शा में हुए गोल्फ टूर्नामेंट में भी विनर और लांग ड्राइव (काफी दूर तक शॉट लगाने वाला प्लेयर) बने। यह खिताब उन्हें जब मिला, उस वक्त उनकी रैंकिंग 13 से 18 हैंडिकैप के बीच थी। बिहार के जमालपुर में 2010 में हुए 33वें जमालपुर ओपेन गोल्फ टूर्नामेंट में भी सुमित को ही विनर का खिताब मिला।

इस साल भुवनेश्वर में हुए नालको ईस्ट जोन गोल्फ में बेस्ट ग्रॉस एंड रनर-अप की उपाधि मिली। कामयाबी का कारवां यहीं नहीं थमा। इसी साल एशिया के नंबर दो का गोल्फ कोर्स कहे जाने वाले ऑक्सफोर्ड क्लब में हुए डेक्कन ओपेन वेस्ट जोन क्वालिफायर में टॉप टेन में सुमित ने अपनी जगह बनाई।


मुश्किलों में भी नहीं हारी हिम्मत

सुमित कुमार महतो एक किसान के बेटे हैं। वहीं, गोल्फ बहुत ही कॉस्टली है। इसके बावजूद इन्होंने हिम्मत नहीं हारी। चाय की दुकान चलाते-चलाते एक और दुकान के साथ इन्होंने गोल्फ खेलना शुरू कर दिया था। लेकिन, महंगा गेम होने के कारण पैसे की कमी हो जाती थी। इसके बावजूद अपने पुराने किट से ही प्रैक्टिस जारी रखी। धीरे-धीरे इन्होंने चार दुकानें खोल लीं।

बरियातू में ही डॉ केके सिन्हा के क्लिनिक के बगल में ही लॉज भी बना लिया.अपने मकान के ऊपर वाले भाग को किराए पर लगा दिया। इसी आमदनी को इन्होंने अपने गोल्फ के शौक को पूरा करने में लगाया। सुमित अब अपने बेटे को भी गोल्फ की ट्रेनिंग देते हैं और इनका बेटा सुशांत भी 16 हैंडिकैप लेवल का प्लेयर बन गया है।