मेहमान की तरह होता था स्वागत

एक और मैसेंजर शैलेंद्र कुमार भी भरी आंखों से कहते हैं कि मेहमान की तरह लोग हमें सम्मान देते थे। बम्हरौली एरिया में तार बांटने की ड्यूटी करने वाले शैलेंद्र कहते हैं कि आर्मी के न जाने कितने अफसर हमको सलाम तक करते हैं। वह इसलिए कि किसी के पिता बनने का तो किसी के चाचा बनने का मैसेज हमने ही उन तक पहुंचाया था। तमाम ऐसे भी थे, जिनके प्रमोशन की सूचना हमने उन तक पहुंचाई है। यही कारण है कि वहां के कई अफसर तक हमको सलाम करते हैं। शैलेंद्र कहते हैं कि जब से पता चला है कि टेलीग्राम बंद हो रहा है, तब से ऐसा लगता है कि जिंदगी में कुछ कमी सी आ गई है.

हर कोई बसाना चाहता था इसे यादों में

Dear, Vijay With best wishes sending this telegraph as memoir, to day is the last day of telegraph। टेलीग्राफ को यादों में बसाने के लिए इलाहाबादी ने कुछ इस अंदाज में अपने प्रियजनों को मैसेज दिए। संडे को आम दिनों की कम्पैरिजन में तार घर में थोड़ी ज्यादा भीड़ थी। हर कोई यहां पर टेलीग्राम को यादों में बसाना चाहता था। टेक्नोलॉजी के इस युग में भले ही मोबाइल व इंटरनेट फास्ट सर्विस प्रोवाइड करवा रहे हों, लेकिन इमोशनली तार पब्लिक से आज भी जुड़ा हुआ है। आखिर एक सदी से ज्यादा यह एकमात्र लोगों के सुख और दुख का साथी रहा है। संडे को तार करने पहुंचे एक 60 वर्षीय शख्स ने कहा कि आज आखिरी दिन है इस सर्विस का। यह हमसे जुड़ी हुई थी, इसको बहुत मिस करेंगे.

रिटायर्ड साथी भी पहुंचे प्रिय तार को विदाई देने

टेलीग्राम को आखिरी विदाई देने के लिए इसके पुराने साथी भी पहुंचे हुए थे। 2006 में टेलीग्राफ असिस्टेंट के पद से रिटायर हुए राधेश्याम गुप्ता कहते हैं कि हमने पूरी नौकरी इसी की बदौलत की है। अब यह खत्म होगी तो दुख होगा। कुछ कर नहीं सकते है, लेकिन जिन सर्विस में हमें नौकरी दी उसको अलविदा कहना अच्छा नहीं लग रहा है। वहीं उनके एक अन्य रिटायर्ड साथी आरके कुशवाह कहते हैं कि बड़ा अजीब लग रहा है आज का दिन। ऐसा लग रहा है कि कोई पुराना, हर दिल अजीज साथी हमको छोड़कर जा रहा है। जीएम बीएसएनएल आरएस यादव भी टेलीग्राम को आखिरी विदाई देने के लिए पहुंचे हुए थे.


अब नहीं आएगा 000 और xx

एक दशक पहले तक टेलीग्राम के थू्र ही देश की हर सरकारी व पर्सनल सूचनाओं को पहुंचाते थे। टेलीग्राम स्टॉफ के लोग बताते हैं कि मैसेज के हिसाब से इसको कोड एलॉट किया हुआ था। मसलन, ट्रिपल जीरो कोड का मतलब आर्मी ऑपरेशन से जुड़ा हुआ होता था और इसको बेहद अर्जेट पहुंचाया जाता था। वहीं डबल एक्स कोड डेथ केस होता था। इसको पहुंचते ही मैसेंजर द्वारा भेज दिया जाता था। बताते हैं कि डबल एक्स के लिए एक अलग ही डेस्क बनी होती थी जो इसको तुंरत पहुंचाती थी। इतना ही नहीं वेदर के लिए और फांसी रुकवाने के तक के लिए कैपिटल सेंनटेंस नाम के कोड वर्ड का इस्तेमाल किया जाता था.

 


डेढ़ सदी में कई मुकाम तय किए

करीब डेढ़ सदी तक पब्लिक के संदेशों का साथी रहे टेलीग्राफ ने वक्त के साथ कई बदलाव भी किए हैं। लेकिन यह समय के साथ कदमताल नहीं कर पाया और अंत में हमसे जुदा ही हो गया.

-मोर- टेलीग्राम सबसे पहले मोर नाम की एक मशीन से भेजा जाता था। इसमें गटर-गट करके शब्द बनाए जाते थे।
-टेलीप्रिंटर- मोर के बाद टेलीप्रिंटर का जमाना आया था। इसमें टेलीप्रिंटर के थू्र मैसेज जल्दी पहुंचने लगा था।
-टेलेक्स सिस्टम- यह एक तरह से फैक्स की तरह था। टेलीग्राम के इस फार्मेट में टेलीफोन लाइन भी शामिल हो चुकी थी।
-एसएफटी- यह सिस्टम कुछ मार्डन था। इसमें बिजली न होने पर भी देशभर से आने वाले मैसेज इकट्टा हो जाते थे और स्टॉफ के पहुंचते ही इसको मैसेजर के थू्र भेजा जाता था।
-डब्लूटीएमएस- यह सर्विस इंटरनेट पर बेस्ड थी। जिसमें मैसेज भी ईमेल की तरह जल्दी से पहुंचने लग गया था.


 24 घंटे से 12 घंटे तक पहुंच गया था टेलीग्राम

आज की यंग जेनरेशन भले ही टेलीग्राम का इंपॉर्टेस न समझती हो, लेकिन पुराने लोग इस बात को अच्छी तरह से समझते हैं। जीडी जोशी कहते हैं कि टेलीग्राम की बुकिंग 24 ऑवर्स होती थी, लेकिन धीरे-धीरे यह 12 घंटे तक पहुंच गई। टेलीग्राफ ऑफिस में 300 से 400 स्टॉफ काम करता था, लेकिन अब 10-15 स्टॉफ में यह सिमट गया था.


आर्मी से पूछो टेलीग्राम का महत्व

टेलीग्राम का महत्व आर्मी मैन बखूबी जानते हैं। आज भी सर्विस वह इस सर्विस का इस्तेमाल करते हैं। कारण, यह है कि कानूनी तौर पर टेलीग्राम मैसेज को सरकारी मैसेज माना जाता है। जो कि एक प्रूफ की तरह काम करती है। आज भी पुलिस के मुकदमा न दर्ज करने पर लोग एसएसपी को टेलीग्राम करके सूचना देते हैं.