कितनी ही लड़ाइयां लड़ी। कितनी ही कंट्री को जीत का स्वाद चखाया। घर-घर में जाना जाता था। लेकिन पता न था कि नक्सलियों से लड़ाई में पिछड़ जाएगा और बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। जी हां, थ्री नॉट थ्री (.303) के नाम से फेमस इस राइफल को रेलवे ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है। स्टेट में मैक्सिमम डिस्ट्रिक्ट नक्सल प्रभावित हैं। नक्सलियों के पास मॉडर्न वेपन्स को देखते हुए रेलवे डिपार्टमेंट ने इस राइफल को अपने खेमे से बाहर करने का फैसला कर लिया। आरपीएफ और जीआरपी में अब थ्री नॉट थ्री हिस्ट्री बन चुका है।

इफैक्टिव रेंज के लिए जाना जाता था

थ्री नॉट थ्री (.303) की खासियत थी कि यह अचूक निशाने और इफैक्टिव रेंज के लिए फेमस था। 4 केजी वेट के इस राइफल का इफैक्टिव रेंज लगभग 5 सौ मीटर था। एक गोली अगर इस राइफल से किसी को लग जाती तो क्या मजाल की वो पानी भी मांग पाता। लेकिन जब नक्सलियों के पास एके 47, इंसास, एसएलआर, एके 56 और रॉकेट लांचर देखे गए तो उनका मुकाबला करने के लिए .303 को बाय-बाय करने का फैसला लिया गया।

इससे इतना राउंड फायर होता है

वेपन्स की कैपेसिटी की बात की जाए तो आरपीएफ और जीआरपी के पास अवेलेवल वेपन्स का अलग-अलग रेंज और फाइरिंग कैपेसिटी है। इनमें एके 47 में 30 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है। इसका रेंज लगभग 13 सौ मीटर होता है। इंसास में 20 बुलेट्स वाली मैगजीन लगा होता है जिसका रेंज लगभग 800 मीटर होता है। कार्बाइन में 30 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है और इसका रेंज 50 मीटर तक होता है। .303 में 10 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है और इसका इफैक्टिव रेंज 5 सौ मीटर के लगभग होता है।

जानें .303 को

.303 राइफल (इन्फिल्ड राइफल का एक मॉडल) ब्रिटेन में 1889 में बनकर तैयार हुआ। ब्रिटिश कॉमनवेल्थ आम्र्ड फोर्स में इसे 1895 में इंट्रोड्यूस किया गया। 1950 तक यह ब्रिटिश आर्मी की सर्विस में रहा। इंडिया में लगातार लंबे समय तक पुलिस सर्विस में इसके  रहने से इसको लांगेस्ट सर्विंग मिलिटरी बोल्ट एक्शन राइफल का खिताब दिलवाया। 4 केजी वेट और बोल्ट एक्शन वाले इस राइफल में 10 बुलेट वाला मैगजीन लगा होता था। वल्र्ड के कई वार में इस राइफल ने अपना प्रजेंस दिखाया इनमें, फस्र्ट वल्र्ड वार, कोलॉनियल कंफ्लिक्ट्स, आइरिस वार ऑफ इंडिपेंडेंस, सेकेंड वल्र्ड वार, ग्रीक सिविल वार, कोरियन वार और अफगानिस्तान कंफ्लिक्ट्स के अलावा भी कई लड़ाइयों में इस राइफल ने इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया।

स्टेट के 22 जिले नक्सल इफेक्टेड

झारखंड के 24 में से 22 डिस्ट्रिक्ट नक्सल इफेक्टेड हैं। इन जिलों में अक्सर नक्सल एक्टिविटी होती रहती है। ट्रेंस इनका सॉफ्ट टारगेट होता है। 14 मई को टाटा-विलासपुर पैसेंजर ट्रेन को रोककर पोस्टर और बैनर चिपकाया था। इसके अलावा पिछले सैटरडे और संडे को भी नक्सलियों ने चक्रधरपुर और पोसैता के पास डेरवां स्टेशन पर बैनर और पोस्टर चिपकाया था।

इन ट्रेंस में होता है स्कॉट

GRP : गीतांजली एक्सप्रेस, आजाद सिंह एक्सप्रेस

CRPF : दुरंतो, हावड़ा-कुर्ला, टाटा-यशवंतपुर, कविगुरु एक्सप्रेस, शालीमार-उदयपुर एक्सप्रेस और हावड़ा-चेन्नई एक्सप्रेस।

वर्जन

आरपीएफ के पास मॉडर्न वेपन्स की सख्त जरूरत थी। ट्रेंस में स्कॉट करते समय .303 से काम नहीं चलने वाला था। हम जानते हैं कि नक्सलियों के पास कई तरह के मॉडर्न वेपन्स हैं। उनसे मुकाबला करने के लिए हमारे पास भी मॉडर्न वेपन्स की जरूरत थी इसीलिए .303 की जगह एके 47 और इंसास ने ले लिया।

- एके चौरसिया, कमांडेंट आरपीएफ

मुझे लगता है कि ट्रेंस में स्कॉट के लिए इंसास और एसएलआर जैसे वेपन्स सफिसिएंट हैं। जीआरपी के पास ये दोनों ही वेपन्स हैं। आगे कभी जरूरत होगी तो देखा जाएगा।

- अजय लिंडा, रेल एसपी (एक्स्ट्रा चार्ज)

बदलते समय के अनुसार हर चीज बदलती हैं। बेशक .303 ने हमारा बहुत साथ दिया लेकिन अब के समय में बेहतर और मॉडर्न वेपन्स की जरूरत है। जीआरपी जब ट्रेंस में स्कॉट पर जाती है तो उनके पास इंसास और एसएलआर जैसे वेपन्स दिए जाते हैं।

- कुमुद चौधरी, डीजी जीआरपी