- पटना सहित स्टेट के 25 जगहों पर लगेगी टीबी नॉट मशीन

- 2014 में बिहार में मिले 1024 केसेज, 700 लोग देश में हर दिन मरते हैं

PATNA: कम रिकॉर्ड होने से एमडीआर के पेशेंट की संख्या बढ़ गई है। जब तक ज्यादा से रोगियों की शुरुआती स्तर पर ही जांच की सुविधा नहीं दी जाएगी, तब तक यहां टीबी उन्मूलन को सफल बनाना बहुत मुश्किल है। ये बातें बिहार स्टेट हेल्थ सोसाइटी की ओर से आयोजित मीडिया वर्कशॉप में उभर कर आई। इसमें टीबी से जुड़े विभिन्न पहलूओं पर चर्चा करते हुए बिहार में इसकी जांच को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने पर जोर दिया गया। होटल मौर्या में आयोजित इस वर्कशॉप में रीजनल डिप्टी डायरेक्टर केपी सिन्हा, स्टेट टीबी ऑफिसर डॉ केएन सहाय, व‌र्ल्ड हेल्थ पार्टनर प्रोजेक्ट हेड डॉ नीता झा उपस्थित थे। केपी सिन्हा ने इसके मामलों को कम करने में मिलकर काम करने की अपील की।

जांच में फ्00 रुपए खर्च आएगा

वर्कशॉप में स्टेट टीबी ऑफिसर डॉ केएन सहाय ने बताया कि बिहार स्टेट में ख्भ् जगहों पर टीबी नॉट मशीन लगायी जाएगी। इस मशीन की हेल्प से टीबी की जांच मात्र दो घंटे में मिल पाएगा। सरकारी क्षेत्र में यह बिल्कुल फ्री है, जबकि प्राइवेट में इस जांच में फ्00 रूपये खर्च आएगा। यह सुविधा देश के अन्य राज्यों में है और बिहार में फिलहाल तीन जगह रोहतास, मुजफ्फरपुर और भागलपुर में है। पटना में आईजीआईएमएस, एम्स पटना और टीबीडीसी, अगमकुआं-इन तीन जगहों पर यह मशीन लगेगी। इसकी खरीद भारत सरकार कर रही और इसे ऑपरेट बिहार गवर्नमेंट करेगी।

पटना में सात हजार से अधिक एमडीआर

डॉ केएन सहाय ने बताया कि बीते साल प्राइवेट सेक्टर में टीबी के आठ हजार दो सौ तीस केस जांच किया गया। पटना में बीते साल एमडीआर के 7,म्क्ख् केस रिकॉर्ड किया गया। इसमें से क्0क्भ् का ट्रीटमेंट किया गया। जबकि स्टेट में ख्0क्ब् में म्7,99क् केस का जांच किया गया। उन्होंने इसकी बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त किया और इसमें अवेयरनेस पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इसमें मीडिया की अग्रणी भूमिका है। जानकारी हो कि इलाज के लिए पंजीकरण कराने वाले स्टेट में बिहार का आठवां स्थान है।