घरवाले ही बने दुश्मन

कमला दास मलयालम में 'माधवी कुट्टी' के नाम से लिखती थीं। जबकि अंग्रेजी में कमला दास के नाम से लिख रही थीं। घर में सभी उन्हें प्यार से अमी बुलाते थे। उन्होंने 68 साल की उम्र में इस्लाम धर्म अपना लिया और इसके बाद इनका नाम सुरैया पड़ गया। अपनी रचनाओं में इन्होंीने घरेलू व यौन हिंसा की शिकार महिलाओं की बात को मुखरता से रखा। अपनी आत्मकथा 'माई स्टोरी' जो 1976 में आई में उन्हों।ने अपने जीवन से जुडे़ हर पहलू का उल्लेख किया। इनके घरवाले इसे रिलीज नहीं होने देना चाहते थे। घरवालों को घर की बात का बाहर ढिंढोरा पीटना सही नहीं लग रहा था। इसके बावजूद 'माई स्टोरी' प्रकाशित हुई और लोगों के दिलों तक पहुंची।

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15 विदेशी भाषा में हुआ 'माई स्टोरी' का अनुवाद

उनकी आत्मभकथा 'माई स्टोरी' को लेकर विवाद भी हुआ लेकिन लोगों ने इसे पसंद किया। इसका 15 विदेशी भाषाओं में अनुवाद हुआ। वह 1984 में नोबेल पुरस्काोर के लिए नॉमिनेट हुई थीं। अगले ही वर्ष उन्हें साहित्य अकादमी से सम्माीनित किया गया। उन्हें  एशियन पोएट्री अवार्ड से भी सम्माननित किया जा चुका है। इनके अलावा भी उन्हे ढेरों पुरस्कामर व अवार्ड मिले हैं।

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