- करोड़ों रुपए खर्च, फिर भी नहीं सुधरी हालत

- डीएम आफिस के बगल में भी हैं जर्जर पोल

GORAKHPUR: शहर में बिजली व्यवस्था सुधारने के लिए चल रही सारी कोशिशें नाकाम हो जा रही हैं। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी बिजली की स्थिति बदल नहीं पा रही। शहर में जर्जर हो चुके बिजली पोल और तार बदलने के लिए विभागीय अधिकारी बड़ी दुर्घटनाओं का इंतजार कर रहे हैं। बारिश झेल चुके बिजली के खंभे बदलने में हो रही लापरवाही से बड़े हादसों की संभावना बढ़ गई है।

डीएम ऑफिस के पास ही जर्जर पोल

महानगर की बिजली व्यवस्था सुधारने के लिए शहर में बिजनेस प्लान शुरू किया गया था। इस योजना के तहत हर साल 20 से 25 करोड़ रुपए बिजली विभाग को व्यवस्था सुधारने के लिए मिलते हैं। करोड़ों रुपए खर्च करने के बाद भी शहर में बिजली के पुराने पोल नहीं बदले जा सके हैं। इस साल हुई बारिश में मोहल्लों में लगे पोल जंग खाकर नीचे से टूटने की कगार पर पहुंच गए हैं। तेज हवा के झोंके से पोल कभी भी भरभराकर गिर जाएंगे। पोल गिरने पर किसी तरह की दुर्घटना से इनकार किया नहीं किया जा सकता है। डीएम ऑफिस के ठीक बगल में ही बिजली विभाग के ऑफिस के सामने जर्जर पोल खड़े हैं।

शहर में पहले हो चुके हैं बवाल

शहर में जर्जर पोल लगने से पहले भी बवाल हो चुके हैं। शहर में कई बार पब्लिक सड़क पर उतर चुकी है। नालियों, नालों और वाटर लॉगिंग वाली जगहों पर लगे लोहे वाले पोल जंग खाकर जल्द ही खराब हो जाते हैं। इसके लिए इनकी नियमित देखभाल की जरूरत होती है। लेकिन सब स्टेशन-फीडर पर तैनात जूनियर इंजीनियर, बिजली कर्मचारी और लाइनमैन अपने क्षेत्र में इसकी निगरानी नहीं करते। इससे धीरे-धीरे लोहा गलकर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। बिजली विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि शहर में करीब 200 खंभे जर्जर हाल हो चुके हैं।

पहले भी पोल बने मुसीबत का सबब

19 अक्टूबर 2017: राप्ती नगर में जर्जर पोल लटकने पर तार नीचे आ गए। वाहन गुजरने पर तारों के बीच स्पार्किंग हुई।

20 जून 2017: शहर में आठ पोल ढहने से बिजली सप्लाई बंद रही। बाद में पोल बदलकर आपूर्ति बहाल की गई।

10 अप्रैल 2017: सूर्य विहार कॉलोनी में पोल गिरने से करीब सात घंटे तक बिजली सप्लाई ठप रही।

इतने रुपए का बजट, फिर भी खस्ताहाल

बिजनेस प्लान के तहत कुल बजट - 200 करोड़

व्यापार विकास निधि में कुल बजट- 100 करोड़

स्काडा योजना में जारी हुआ बजट- 88 करोड़

हर साल बिजली व्यवस्था में सुधार पर खर्च- 20 से 25 करोड़

वर्जन

ज्यादातर जगहों पर बिजली के पोल बदल दिए गए हैं। यदि कहीं पर इस तरह की शिकायत मिली तो उसके संबंध में कार्रवाई की जाएगी। शहर में बिजली के खंभों और जर्जर तारों को बदलने के लिए निर्देश दिए गए हैं।

- एके सिंह, चीफ इंजीनियर, यूपीपीसीएल, गोरखपुर जोन

बॉक्स

ठप पड़ा कंस्ट्रक्शन तो कहां से मिले पोल

गोरखपुर में बिजली विभाग के पास पीसीसी पोल बनाने की फैक्ट्री नहीं थी। वर्ष 2011 से शहर में पोल फैक्ट्री बनाने की कवायद चल रही थी। काफी प्रयास के बाद गीडा, बरहुआ में पोल बनाने की फैक्ट्री लगाई गई। लेकिन पोल फैक्ट्री शुरू होने के बाद भी बिजली विभाग को राहत नहीं मिल सकी। शहर के तमाम मोहल्लों में बांस और बल्ली के सहारे घरों में बिजली की सप्लाई दी जा रही है। बांस-बल्ली से लगने वाले तारों से रोजाना दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। जीएसटी लागू होने के बाद पोल फैक्ट्री संकट में पड़ गई है। कच्चे माल की सप्लाई न होने से पीसीसी पोल ढलाई थम गई है। बिजली विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कम ही सही पर पोल बनाए जा रहे हैं।

यह होती लापरवाही

- लोहे के खंभे लगाने के दौरान सीमेंट के चैंबर बनाने में लापरवाही होती है।

- शहर में पोल के जर्जर होने की दशा में भी सपोर्ट नहीं लगाया जाता है।

- नीचे से पोल के जर्जर होने, लोहे के गलकर टूटने पर वेल्डिंग किया जाता है।

- कई जगहों पर पोल बदलने के बजाय बिजली कर्मचारी दो से तीन बार वेल्डिंग करते हैं।

पोल की लाइफ

स्टील ट्यूबलर पोल - 15 से 20 साल

रेल पोल- 40 से 50 साल

ईसीसी- 60 से 70 साल