- मोहल्लों में दिन में छुट्टा जानवरों, बंदरों और रात को कुत्तों का रहता है आतंक

- नगर निगम ने नहीं चलाया जानवर पकड़ने का अभियान, निगम ऑफिस में भी है बंदरों का खौफ

GORAKHPUR: छुट्टा पशुओं की समस्या से जहां शहरवासी बुरी तरह त्रस्त हैं। दूसरी तरफ, बंदरों और सड़क पर घूमने वाले कुत्तों की बढ़ती संख्या भी बड़ी परेशानी बनती जा रही है। वहीं, पब्लिक के लिए जी का जंजाल बन चुकी इस मुसीबत के प्रति अब भी लापरवाह बना हुआ है। आलम ये है कि अफसरों या पब्लिक के दबाव में कभी-कभी तो निगम छुट्टा पशुओं का पकड़ने का अभियान चला भी देता है, लेकिन मोहल्लों में आतंक फैलाने वाले बंदरों और कुत्तों के बारे में जिम्मेदार कुछ नहीं करते। इन जानवरों के कारण अक्सर लोग दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। 2004 में आवारा कुत्तों को पकड़कर निगम ने नसबंदी योजना चलाई थी, लेकिन उसके बाद इसे अब तक नहीं चालू किया गया है। ऐसे में लोग सवाल उठाने लगे हैं कि पता नहीं, निगम के जिम्मेदारों को छुट्टा पशुओं और आवारा कुत्तों से कौन सा प्रेम है जो इन पर अंकुश लगाने के लिए कुछ नहीं किया जा रहा।

गलियों में रहता है आतंक

शहर के शेषपुर, कूड़ाघाट, तुर्कमानपुर, हासूंपुर एरिया, बशारतपुर सहित कई अन्य एरियाज में दिन में छुट्टा जानवर, बंदर का तो रात को कुत्तों का आतंक कायम हो जाता है। अक्सर गलियों से गुजरने पर राहगीरों को इनके चलते मुसीबत झेलनी पड़ती है। हाल ये है कि घरों की छतों पर जहां बंदरों का खतरा बना रहता है। वहीं, गलियों में छुट्टा जानवर और आवारा कुत्ते राहगीरों के लिए मुसीबत बने बैठे रहते हैं। रात के वक्त तो कुत्तों से बच कर घर पहुंचना बेहद ही मुश्किल है। अक्सर ही ये कुत्ते बाइक सवार, पैदल आने वाले या साइकिल सवारों को दौड़ा लेते हैं। कई बार इसके चलते गंभीर दुर्घटनाएं हो जाती हैं। वहीं, इधर कुत्ते के काटने के केसेज भी शहर में काफी बढ़े हैं।

बंदरों से तो जिम्मेदार भी डरे

ऐसा नहीं है कि जानवरों का ये आतंक सिर्फ मोहल्लों में रहने वाले आम नागरिकों को ही झेलना पड़ता है। इस पर लगाम लगाने के जिम्मेदार खुद भी इसके शिकार हैं। नगर निगम ऑफिस में सुबह से ही बंदरों का आतंक शुरू हो जाता है। हाल ये है कि बंदर निगम ऑफिस की पानी टंकियां और खड़ी गाडि़यों की डिग्गियां तक तोड़ जाते हैं। इनके चलते यहां इतना खौफ है कि कर्मचारी ऑफिस कैंपस में टहलने तक से डरते हैं। इसके अलावा अन्य सरकारी दफ्तर भी बंदरों के आतंक के साए में हैं। आकाशवाणी केंद्र की बाउंड्री पर सुबह से ही बंदर बैठे रहते हैं। आने-जाने वालों को अक्सर झपट कर काट लेते हैं।

डेली आते हैं 10 मरीज

जिला अस्पताल के आंकड़ों के मुताबिक कुत्तों और बंदरों के काटने से घायल डेली 10 मरीज आते हैं। इनमें औसतन आठ कुत्ते के काटने तो दो बंदर के शिकार होते हैं। इनमें ज्यादातर मरीज बच्चे और महिलाएं होते हैं।

हादसे दे रहे चेतावनी

19 जनवरी 2014 - सतीश चंद श्रीवास्तव, सांड़ के हमले से मौत

एक फरवरी 2014 - डॉ। मिर्जा बेग की छत पर गाय चढ़ी

दो फरवरी 2014 - मुन्नालाल गुप्ता, सांड़ के हमले से घायल

10 फरवरी 2014- डॉ। शोहाब आलम और चमेली देवी को सांड़ ने किया घायल

13 फरवरी 2014- रामपाल को सांड़ ने किया घायल

21 फरवरी 2014 - रफीउद्दीन अंसारी को सांड़ ने किया घायल

ये है स्थिति

नगर निगम वास्तविक संख्या

आवारा जानवर

1829 5000

गधे

36 200 से अधिक

आवारा कुत्तों की संख्या

7500 9000

वर्जन

कुत्तों को पकड़ने का प्लान बन रहा है। इस बार बाहर की किसी कंपनी से सहयोग लेकर कुत्तों की नसबंदी की योजना बन रही है। स्वास्थ्य विभाग को इसके लिए रूपरेखा तैयार करने के लिए कहा गया है।

- डॉ। एसके सिंह, नगर स्वास्थ्य अधिकारी, नगर निगम