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-13 अक्टूबर को जेल में हुए बवाल में पुलिस की चार्जशीट झूठी, आरटीआई से खुलासा

-चार्जशीट में कई ऐसे कैदियों के भी नाम जो बवाल में नहीं थे शामिल

-मामला सामने आने के बाद हड़कंप, डीआईजी ने जांच पर बिठाई जांच

arun.kumar@inext.co.in

GORAKHPUR: गोरखपुर पुलिस 13 अक्टूबर को जेल में हुए बवाल मामले में चार्जशीट सबमिट कर आप ही अपनी पीठ थपथपा रही है, लेकिन दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के इंवेस्टिगेशन में यह बात सामने आई है कि पुलिस की पूरी चार्जशीट झूठी है। इसका खुलासा जेल प्रशासन की ओर से कैदियों को आरटीआई के तहत दी गई जानकारी से हुआ है। पुलिस की चार्जशीट में शामिल कई कैदियों के सवालों का जवाब देते हुए जेल प्रशासन ने कहा है कि वे बवाल के समय मौके पर नहीं थे। उस समय वे बैरक में थे। ऐसे में सवाल उठता है कि उन कैदियों का नाम पुलिस ने चार्जशीट में कैसे एड कर लिया। इससे साफ पता चल रहा है कि पुलिस ने बैठे-बिठाए जांच कर ली और आनन-फानन में चार्जशीट सबमिट कर दिया। आरटीआई के तहत मिली सूचना ने महकमे में भूचाल ला दिया है। डीआईजी ने मामले की जांच का आदेश जारी कर दिया है।

12 घंटे कब्जे में थी जेल

मंडलीय कारागार में 13 अक्टूबर 2016 को एक बीमार कैदी की मौत हो जाने के बाद बंदियों ने जमकर उत्पात मचाया था। जेल पर कब्जा कर लिया। बवाल कर रहे बंदियों ने बंदी रक्षकों को बंधक बनाकर पीटा। सीसीटीवी कैमरों को तोड़ दिया। आगजनी करके अफरा-तफरी मचा दी। करीब 12 घंटे तक जेल में बंदियों का उत्पात चलता रहा।

इन पर दर्ज हुआ केस

इस मामले में जेल अधिकारियों की तहरीर पर शाहपुर थाना में उत्पाती बंदियों के खिलाफ केस दर्ज कराया। अधिकारियों ने विवेक तिवारी, मनोज ओझा, नंदन सिंह, राजकुमार बाजपेयी, राकेश सिंह, चंदन यादव, आनंद तिवारी, बुद्धि सागर शुक्ला और दीपू उर्फ करुणेश को नामजद किया। इन पर हत्या के प्रयास, बलवा, तोड़फोड़, आगजनी, सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने का मामला दर्ज करके शाहपुर पुलिस विवेचना में जुट गई।

जोड़ दिए 110 के नाम

जेल में बवाल मामले की विवेचना कर रही पुलिस ने इस दौरान करीब 110 बंदियों का नाम जोड़ दिया। लेकिन, विवेचना के बाद चार्जशीट फाइल हो पाती उसके पहले ही कुछ बंदियों को जमानत मिल गई। इस वजह से पुलिस उन बंदियों की तलाश में जुट गई। अधिकारियों तक बात पहुंचने पर विवेचक ने 113 बंदियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर दी। इसमें अपना नाम आने पर आपत्ति जताते हुए कुछ बंदियों ने जेल प्रशासन से आरटीआई के तहत जानकारी मांग ली।

बॉक्स

साहब, बवाल के समय हम कहां थे?

बंदियों ने आरटीआई के तहत जेल प्रशासन से पूछा कि जब बवाल हुआ था, तब वे वहां थे या नहीं? तब वे कहां थे? जेल प्रशासन ने कुछ बंदियों को जो जवाब दिया है, उसमें कहा है कि वे बवाल में शामिल नहीं थे। एक तरफ पुलिस की चार्जशीट में जिन कैदियों को बवाल में शामिल दिखाया गया, उन्हीं कुछ कैदियों के बारे में जब जेल प्रशासन ने कहा कि वे बवाल में शामिल नहीं थे, तो मानो महकमे में भूचाल आ गया। वहीं, बंदी भी आरटीआई से मिली सूचना को अपने बचाव का आधार बनाते हुए सामने आ गए हैं।

सवालों के घेरे में विवेचना

बंदियों ने डीआईजी को पत्र भेजकर खुद को बेकसूर बताया है। उन्होंने डीआईजी को आरटीआई का वह जवाब भी दिया है, जिसमें बताया गया है कि वे बवाल में शामिल नहीं थे। इस तरह बंदियों ने पुलिस कार्रवाई पर सवाल खड़ा कर दिया है। इसी के साथ पुलिस की निष्पक्ष विवेचना के दावों और चार्जशीट पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। बंदियों का कहना है कि जब बवाल में उनकी कोई भूमिका नहीं तो उनका नाम विवेचना में कैसे शामिल कर लिया गया। डीआईजी ने मामले की जांच का निर्देश दे दिया है। जिसके बाद जेल अधिकारियों से लेकर पुलिस तक में हड़कंप मच गया है।

पुलिस का यह तर्क

एक तरफ आरटीआई के तहत मिले जवाब और बंदियों के कड़े रूख से जेल अधिकारियों में हड़कंप मच गया है वहीं विवेचना में शामिल अधिकारी अपने बचाव का रास्ता ढूंढने लगे हैं। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि विवेचना में जो नाम जोड़े गए हैं, वह जेल अधिकारियों के बयान, सीसीटीवी फुटेज और साक्ष्यों के आधार पर जोड़े गए हैं। सवाल उठता है कि जब खुद जेल प्रशासन ने ही आरटीआई के तहत दिए जवाब में कुछ बंदियों को बवाल में शामिल नहीं बताया है, उन्होंने विवेचना में उनका नाम कैसे और क्यों शामिल करवा दिया? खैर, अब डीआईजी ने पुलिस की जांच पर ही जांच बिठा दी गई है।

वर्जन

आरोपी बंदियों के खिलाफ चार्जशीट फाइल कर दी गई है। चार्जशीट दाखिल होने के पहले नौ बंदियों की जमानत हो चुकी थी। उनको अरेस्ट करके आगे की कार्रवाई पूरी की जाएगी।

अभय कुमार मिश्र, सीओ कैंट

एक बंदी ने आरटीआई के तहत जानकारी मांगी थी। नियमानुसार उसे जानकारी उपलब्ध करा दी गई है। जेल के बवाल के मामले में पुलिस अपनी कार्रवाई कर रही है। इससे संबंधित सारी जानकारी उनको उपलब्ध कराई जा चुकी है।

एसके शर्मा, वरिष्ठ जेल अधीक्षक