- दो दिन बाद है छठ, अब तक तैयारियों में नहीं जुटे जिम्मेदार

- बुधवार देर शाम तक चलता रहा विसर्जन का सिलसिला

- हाजर्ड केमिकल और पीओपी मिलाने से जहरीला होता जा रहा है पोखरे का पानी

- 24 घंटों में सफाई का निर्देश, लेकिन 20 दिन बाद सिर्फ कोरम पूरा कर रह गए जिम्मेदार

GORAKHPUR: पोखरों में फैले मलबे, रोड़ों भरी राह, पोखरों में भरा जहरीला पानी, यह कुछ ऐसे चैलेंजेस हैं, जिन्हें पूरा करने में जिम्मेदार पूरी तरह से नाकाम हैं। महज दो दिन बाद छठ पर्व है, इसके बाद भी जिम्मेदारों ने व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त नहीं की है। हालत यह है कि पोखरों में जहां मलबे पटे पड़े हैं, वहीं दुर्गा प्रतिमाओं के अवशेष पानी में मिलकर इसे जहरीला बना चुके हैं। छठ के दौरान पूजा के लिए घाटों पर हजारों लोगों की भीड़ उमड़ती है। ऐसे में अगर कोई गलती से इन पोखरों की चपेट में आ जाता है तो टॉक्सिक एलिमेंट्स की चपेट में आने से न सिर्फ उसको प्रॉब्लम होगी, बल्कि पोखरों में टॉक्सिक केमिकल और ऑक्सीजन की कमी की वजह से उनकी जान भी जा सकती है।

20 दिन में नहीं ताे अब कैसे?

दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद से दिवाली तक के बीच करीब 20 दिनों का वक्त रहता है। लंबे अरसे के दौरान जिम्मेदार पोखरों में पड़े मलबे को नहीं हटा सके। दो दिन पहले सफाई का काम शुरू हुआ, तो इस दौरान सिर्फ एक पोखरे की सफाई ही हो सकी, बाकी दो से सिर्फ मलबे ही निकाले जा सके। ऐसे में अब छठ को महज दो दिन बचे हैं तो जिम्मेदार पोखरों की सफाई कैसे कराएंगे यह सबसे बड़ा चैलेंज है। छठ पूजा के लिए घाटों पर हजारों की भीड़ उमड़ती है। इसमें बड़े-बूढ़ों के साथ बच्चे भी शामिल रहते हैं। ऐसे में उबड़-खाबड़ रास्तों के बाद पोखरों के बीच से जाने की राह से अगर कोई फिसल कर गिरता है, तो उसका बचना काफी मुश्किल है।

जहरीले हैं सभी पोखरे

राजघाट पुल के पास बने सभी पोखरे काफी जहरीले हो चुके हैं। इसकी अहम वजह प्रतिमाओं में इस्तेमाल किया गया टॉक्सिक पेंट और हाजार्ड केमिकल है। वहीं, कुछ प्रतिमाओं में प्लास्टर ऑफ पेरिस भी इस्तेमाल किया जाता है, जो काफी टॉक्सिक है। इतना ही नहीं पोखरों में पड़े मलबे का जब डीकम्पोजिशन के दौरान पानी में डिजॉल्व ऑक्सीजन बड़ी तादाद में खर्च हुई, जिसकी वजह से ऑक्सीजन की मात्रा में भारी कमी आई, जबकि आर्टिफिशियल पॉन्ड होने की वजह से एक्वेटिक प्लांट भी नहीं थे, जिससे कार्बन डाई ऑक्साइड का लेवल बढ़ गया।

नदी को बना रहे जहरीला

एक तरफ जहां जिम्मेदार पोखरों को साफ करने के इंतजाम करने में बिल्कुल नाकाम हैं, वहीं दूसरी ओर वह राप्ती नदी को भी गंदा करने में लग गए हैं। हालत यह है कि मशीन के जरिए वह पोखरे का पानी निकालकर राप्ती में डाल रहे हैं। ऐसे में वह पानी भी दूषित हो रहा है। जबकि छठ के दौरान सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए महिलाएं काफी देर तक पानी में खड़ी रहती हैं, ऐसे में अगर वह पानी में बहाए जा रहे टॉक्सिक केमिकल की चपेट में आ जाती हैं, तो न सिर्फ उनको स्किन रिलेटेड प्रॉब्लम हो सकती है, बल्कि इसके अलावा भी कई दिक्कतें हो सकती हैं।

पेंट में होते हैं यह होते हैं केमिकल

लेड

कॉपर

क्रोमियम

निकिल

कोबाल्ट

कैडमियम

टॉक्सिक एलिमेंट्स

ऐसे गंदा होता है पानी

- मूर्तियों में इस्तेमाल किए जाने वाले पेंट्स पानी में घुल जाते हैं और पानी का टॉक्सिक बना देते हैं।

- फूल-पत्तियां जो सड़ सकते हैं, तो इसकी वजह से ऑर्गेनिक मैटर कंटेंट बढ़ता है

- ऑर्गेनिक मैटर डिकम्पोज होता है, तो बैक्टेरियल ग्रोथ होती है, तो पानी को दूषित करती है।

- डिकम्पोजिशन के दौरान डिजॉल्व ऑक्सीजन का इस्तेमाल होता है। इससे ऑक्सीजन की कमी होने लगती है और कॉर्बन डाईऑक्साइड बढ़ने लगती है।

यह हो सकती है प्रॉब्लम

- वाइटल सिस्टम, सर्कुलेटरी सिस्टम, कार्डियोवैस्कुलर सिस्टम, नर्वस सिस्टम पर प्रभाव

- स्किन रिलेटेड डिजीज

- फूड चेन के माध्यम से टॉक्सिसिटी सर्कुलेट होती है, उसकी भी दिक्कत हो सकती है।

- ग्राउंड वॉटर में मिलता है, तो इससे पेट से जुड़ी दिक्कत हो सकती है।

- आर्टिफिशियल कलर्स और डाई में टॉक्सिक एलिमेंट्स काफी तादाद में होते हैं।

क्या है पॉल्युशन बोर्ड का नियम

- प्रतिमाओं को आइडियल मिट्टी से ही बनाया जाए, इसमें बेक्ड क्ले और प्लास्टर ऑफ पेरिस का इस्तेमाल न किया जाए।

- पेंटिंग के लिए वॉटर सॉल्युबल डाई और नॉन टॉक्सिक डाई का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

- टॉक्सिक, नॉन बायोडिग्रेडेबल और केमिकल डाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है।

- मूर्ति विसर्जन से पहले फूल, कपड़े, पेपर और प्लास्टिक से बने डेकोरेटिंग मैटेरियल्स हटा दिए जाने चाहिए।

- नॉन बायोडिग्रेडेबल मैटेरियल्स को अलग कर उनको साफ जमीन में डिस्पोज की जानी चाहिए।

- मूर्ति विसर्जन के 48 घंटों के अंदर ही मूर्तियों को बाहर निकाल लिया जाना चाहिए।

- विसर्जन के पहले और बाद में वॉटर क्वालिटी मॉनीटरिंग भी की जानी चाहिए।

मूर्तियों को बनाने में कलाकारों के पास काफी कम समय होता है। इसको देखते हुए वह जो भी कलर या पेंट मिलता है, उसका इस्तेमाल कर लेते हैं। ऐसे में टॉक्सिक केमिकल भी यूज हो जाते हैं। जब प्रतिमाएं विसर्जित होती हैं, तो यह पानी में घुलकर उसे जहरीला बना देते हैं। इसके लिए रेग्युलर अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाने चाहिए। वहीं पूजा समितियों को जहां से प्रतिमा लेनी है, उन मूर्तिकारों को पहले से बता देना चाहिए कि कैसी प्रतिमाएं बनानी चाहिए और किस तरह के कलर का इस्तेमाल करें, इससे पानी पॉल्युटेड होने से बच जाएगा और लोगों प्रॉब्लम से बच जाएंगे।

- डॉ। गोविंद पांडेय, इनवायर्नमेंटलिस्ट

मूर्तियों में इस्तेमाल होने वाले पेंट्स में केमिकल होते हैं। ऐसे में स्किन के कॉन्टैक्ट में आने पर लोगों को एलर्जी, दाने, चकत्ते जैसी प्रॉब्ल्म हो सकती है। अगर बहुत दिनों तक एलर्जन के कॉन्टैक्ट में रहे, तो चमड़ी सफेद हो जाती है।

- डॉ। नवीन कुमार वर्मा, स्किन स्पेशलिस्ट