- यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटीज को ई-वेस्ट डिस्पोजल की बारीकियां सिखाने के दिए निर्देश

- स्टूडेंट्स को सभी आस्पेक्ट से कराया जाएगा अवेयर, रोजाना हजारों किलो निकलता है ई-वेस्ट

GORAKHPUR: एडवांस एरा में हाईटेक गैजेट्स का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। नए अपडेटेड मैटेरियल्स को लोग घर ला रहे हैं, तो वहीं पुराने सामानों को लोग वेस्ट में डाल रहे हैं। मगर इन वेस्ट के डिस्पोजल की कोई व्यवस्था न होने से न सिर्फ एनवायर्नमेंट को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि इन इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट में मौजूद हार्मफुल केमिकल लोगों की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। इस असर को कम करने के लिए अब यूजीसी ने बेड़ा उठाया है। इसके तहत उन्होंने सभी हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस को निर्देश दिए हैं कि वह ई-वेस्ट को लेकर अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए, जिससे इसके हार्मफुल इफेक्ट से बचा जा सके और लोगों की अनमोल जिंदगी बचाई जा सके।

प्रोवाइड कराना है कंटेंट

इस एरा में लोग धड़ल्ले से इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन उन्हें इस बात की बिल्कुल भी जानकारी नहीं है कि इसके जो वेस्ट निकल रहे हैं, उनके क्या नुकसान हैं। इसको देखते हुए यूजीसी ने एनवायर्नमेंटल हाजा‌र्ड्स ऑफ इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को लेकर अवेयरनेस प्रोगाम चलाने के निर्देश दिए हैं। इसके तहत यूनिवर्सिटी और दूसरे एकेडमिक इंस्टीट्यूशंस को ट्रेनिंग मैटेरियल्स, टूल्स, कंटेंट, फिल्म और प्रिंटेड मैटेरियल्स तैयार करने हैं, जिसके जरिए लोगों को इनकी जानकारी देने में आसानी हो सके।

संस्थाएं चलाएंगी अवेयरनेस कैंपेन

यूनिवर्सिटी और हायर एजुकेशनल इंस्टीट्यूशंस को कंटेंट तैयार कर इसे सामाजिक और जनसेवी संस्थाओं को उपलब्ध कराना है। जिसके बाद वह इसके जरिए लोगों को अवेयर करेंगी और इससे होने वाले नुकसान और बचने के तौर-तरीके बताएंगी। वहीं यूनिवर्सिटी और कॉलेजेज को इसकी जानकारी स्टूडेंट्स को भी देनी है, ताकि वह भी अपने आसपास के लोगों को इसके बारे में बता सकें और होने वाले नुकसान को कम कर सकें।

रोजाना 250 टन वेस्ट

गोरखपुर में कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है। पहले जहां गिनती के इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट बिकते थे, अब उनकी तादाद कई गुना हो चुकी है। इस्तेमाल बढ़ने से इनके खराब होने और इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट निकलने की तादाद भी काफी बढ़ गई है। एक अनुमान के मुताबिक 2014 में जहां करीब 150 टन प्रति वर्ष ई-वेस्ट निकलता था, वहीं अब इसकी क्वांटिटी बढ़कर 250 टन तक पहुंच चुकी है।

घरों में भी नहीं है कमी

इलेक्ट्रॉनिक सामान हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो चुका है। इसके साथ ही हम इससे निकलने वाले वेस्ट को भी अपनी जिंदगी में शामिल कर चुके हैं। यह जानते हुए भी हम अपने घरों में इन्हें इकट्ठा कर अपने आप के साथ ही एनवायर्नमेंट को भी बर्बाद कर रहे हैं। डेली लाइफ में हमारे इस्तेमाल में आने वाले कई इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट्स ऐसे हैं, जो अब इस्तेमाल के लायक नहीं है, लेकिन बावजूद इसके हम उन्हें अपने घरों में ही रखकर बैठे हुए हैं। पुरानी टीवी, पुराने मोबाइल हैंडसेट्स, कैमरा और रेडियो के साथ ही कंप्यूटर इस लिस्ट में शामिल हैं। यह सभी ऐसे सामान हैं जो आउटडेटेड तो हो चुके हैं, लेकिन जब हम इन्हें सेल करने के लिए जाते हैं तो इसको लेने के लिए लोग औनी-पौनी कीमत ऑफर करते हैं। जिसकी वजह से न चाहते हुए उसे हम हीं बेचते और वह हमारे घरों में ही वेस्ट के तौर पर पड़े रहते हैं।

बॉक्स

बाघागाड़ा में खुली थी फैक्ट्री

इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट के मैनेजमेंट और हैंडलिंग के लिए गर्वनमेंट ने सख्त रूल बनाए हैं। इसके तहत यूजर को ऑथराइज वेंडर से डिस्चार्ज कराना जरूरी कर दिया गया है। एक मई 2011 को जारी इस आदेश के बाद कई सिटी में तो इसके डिस्पोजल के लिए पहल शुरू हो गई, लेकिन हमारी सिटी अब भी इससे अछूती है। शहर में इसके डिस्पोजल के लिए बाघागाड़ा में प्लांट लगाया गया था, लेकिन पब्लिक को प्रॉब्लम और हेजीटेशन की वजह से इसका विरोध हुआ और इसे बंद कर दिया गया।

ऐसे हो सकता है डिस्पोजल

ई-वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए सभी खराब इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम्स को इकट्ठा करके पा‌र्ट्स को तोड़ लिया जाता है। इसके बाद उसमें से प्लास्टिक और मेटल्स को अलग कर लिया जाता है। इसकी रीसाइकिलिंग की जाती है। जबकि हार्मफुल केमिकल जोकि सबसे खतरनाक होता है, उसे डिस्ट्राय कर लैंडफिल एरिया में फेंक दिया जाता है।

वर्जन

गोरखपुर में ई-वेस्ट की मात्रा दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। इन दिनों पर कैपिटा पर डे के हिसाब से कैल्कुलेशन किया जाए, तो करीब 250 टन के आसपास ई-वेस्ट प्रति साल निकलता है। इसके प्रॉपर डिस्पोजल की व्यवस्था न होने से लोगों को काफी प्रॉब्लम हो सकती है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट