- पिछले चार साल से नहीं हुआ रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट

- नेट क्वालिफाई करने वाले कैंडिडेट्स यूनिवर्सिटी में नहीं ले रहे हैं इंटरेस्ट

- इसकी वजह से रिसर्च की रफ्तार पड़ी हुई है मंद

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में रिसर्च का सिर्फ कोरम पूरा हो रहा है। इनोवेशन तो मानो यूनिवर्सिटी के जिम्मेदार जानते ही नहीं। किसी तरह से खींच-तान के प्रोजेक्ट पूरे किए जा रहे हैं, तो वहीं रिसर्च कराने के लिए जरूरी सुविधाओं का टोटा होने से कई रिसर्च पेंडिंग पड़ी हुई हैं। 2013 के बाद से अब तक रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट भी नहीं कराया जा सका है, तो वहीं नेट क्वालिफाई करने वाले कैंडिडेट्स यूनिवर्सिटी से रिसर्च करने का मन नहीं बना पा रहे हैं। कुल मिला-जुलाकर यूनिवर्सिटी में रिसर्च की रफ्तार मंद है, तो वहीं इनोवेशन बिल्कुल बंद है।

अध्यादेश तैयार, हरी झंडी का इंतजार

यूजीसी गाइडलांइस के बाद यूनिवर्सिटी लेवल पर पीएचडी का नया अध्यादेश बीते साल ही तैयार हो चुका है। कार्यपरिषद की मंजूरी के बाद इसे कुलाधिपति से मंजूरी लेने के लिए भेजा गया था। नए रूल में फीस निर्धारण न होने की वजह से कुलाधिपति ने इस पर आपत्ति लगा दी थी। जिसकी वजह से चल रही प्रॉसेस को एक बार फिर ब्रेक लग गया। यूनिवर्सिटी ने फीस निर्धारित करने बाद प्रपोजल को शासन के पास दोबारा भेज दिया है, लेकिन राज्यपाल से हरी झंडी न मिल पाने की वजह से रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट अब भी अटका पड़ा हुआ है।

पुरानी नियमावली पर रजिस्ट्रेशन

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के रूल्स एंड रेग्युलेशन के मुताबिक फीस में किसी तरह के बदलाव के लिए प्रदेश शासन की परमिशन जरूरी है। कुलाधिपति के निर्देश के बाद यूनिवर्सिटी ने शुल्क निर्धारण संबंधी व्यवस्था के लिए फाइल शासन को भेज दी है और वहां की कार्रवाई का इंतजार कर रहा है। शासन से जवाब आने में देरी और रेट आयोजन की जरूरत को देखते हुए यूनिवर्सिटी ऑप्शनल व्यवस्था के तहत फिलहाल पुरानी नियमावली को ही अपना चुका है और इसके जरिए विभागों में नेट क्वालिफाइड स्टूडेंट्स से अप्लीकेशन फॉर्म इनवाइट किए गए हैं, लेकिन इसमें स्टूडेंट्स का इंटरेस्ट नजर ही नहीं आ रहा है और बड़ी मुश्किल से कुछ विभागों में इक्का-दुक्का आवेदन पहुंचे हैं।

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अब तक सिर्फ दो ही पेटेंट

इनोवेशन की बात करें तो यूनिवर्सिटी में अब यह वर्ड भले ही कोई न जानता हो, लेकिन पहले यहां के प्रोफेसर्स ने कमाल दिखा रखा है। करीब 15 साल पहले केमिस्ट्री के प्रोफेसर गुरदीप सिंह ने रॉकेट इंजन में इस्तेमाल होने वाले फ्यूल को पेटेंट कराया था। उनका यह प्रोजेक्ट डीआरडीओ की देख-रेख में चला और उन्हें काफी सफलता भी मिली। वहीं करीब आठ साल पहले इसी विभाग में प्रो। बीपी बरनवाल ने भी उन लोगों को तोहफा दिया था, जिनके बाल नहीं थे। उन्होंने बाल उगाने वाला ऐसा सॉल्युशन तैयार किया था, जिससे काफी लोगों को फायदा मिला। उन्होंने इसका पेटेंट भी कराया था। यही दो पेटेंट हैं, जिन्होंने इनोवेशन में यूनिवर्सिटी की नाक बचा रखी है। वरना यूनिवर्सिटी में अब रिसर्च सिर्फ नाम और फंड यूटिलाइज करने के लिए ही हो रही है।

वर्जन

रिसर्च एलिजिबिल्टी टेस्ट के लिए सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं। अध्यादेश को शासन के अनुमोदन का इंतजार है। वहां से अप्रूव होते ही कैंडिडेट्स को यूनिवर्सिटी में खाली पड़ी सीट्स पर रिसर्च करने का मौका मिलेगा।

- शत्रोहन वैश्य, रजिस्ट्रार, डीडीयूजीयू