-अपना सर्वर न होने की वजह से चेंज हो जाता है डाटा

-एडमिशन और एग्जामिनेशन फार्म भरने में करनी पड़ती है मशक्कत

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी के ही हैं, इसको यूनिवर्सिटी पूरे कॉन्फिडेंस के साथ नहीं कह सकता। ऐसा इसलिए कि न तो उनके पास स्टूडेंट्स का कोई रिकॉर्ड है और न ही कोई डाटा है। जब भी उन्हें किसी रिकॉर्ड वेरिफिकेशन की जरूरत पड़ती है, तो उन्हें एजेंसी के भरोसे रहना पड़ता है और उन्हीं से रिकॉर्ड मांगने पड़ते हैं। यह व्यवस्था बरसों से चली आ रही है। यह हालत तब है जब यूनिवर्सिटी डाटा मैनेजमेंट पर हर साल लाखों रुपए खर्च करती है और इसके लिए उन्होंने प्राइवेट फर्म को जिम्मेदारी सौंप रखी है।

अनफॉर्मेट डाटा करते हैं प्रोवाइड

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के पास अपना कोई सर्वर स्पेस नहीं है। इसकी वजह से उन्हें अपने तमाम रिकॉर्ड वेंडर फर्म के सर्वर पर ही रखने पड़ते हैं। जब फर्म का टेन्योर पूरा हो जाता है, तो वह यूनिवर्सिटी को सिर्फ जनरल अनफॉर्मेटेड डाटा प्रोवाइड कराकर चलते बनते हैं, जबकि उन्हें तय फॉर्मेट में डाटा मुहैया कराने चाहिए। इतना ही नहीं यूनिवर्सिटी का अपना सर्वर न होने की वजह से अगर तय फॉर्मेट में डाटा मिल भी जाए, तो यूनिवर्सिटी इसे एक्सेस नहीं कर सकती, क्योंकि उनका अपना सर्वर नहीं है।

सोर्स कोड नहीं देती कंपनी

यूनिवर्सिटी जिस भी फर्म को जिम्मेदारी सौंपती है, वह एक्सेल फॉर्मेट में डाटा लेकर इसको फॉर्मेटिंग करने के लिए सॉफ्टवेयर डेवलप करती है। इसके लिए एक सोर्स कोड भी जनरेट किया जाता है, जिसे कायदतन यूनिवर्सिटी को मुहैया कराना चाहिए। मगर अब तक किसी भी कंपनी ने सोर्स कोड मुहैया नहीं कराया गया है, जिसकी वजह से यूनिवर्सिटी के पास अपना कोई रिकॉर्ड नहीं है। इसकी वजह से यूनिवर्सिटी को स्ट्रक्चरिंग और डाटा फॉर्मेटिंग में हर तीन साल पर लाखों रुपए खर्च करने पड़ते हैं।

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यूनिवर्सिटी ही जिम्मेदार

डाटा न मिलने की सबसे बड़ी जिम्मेदार अगर कोई है, तो वह खुद है यूनिवर्सिटी। ऐसा इसलिए कि यूनिवर्सिटी को टेंडर देते ही अपनी शर्तो में इस बात का जिक्र करना चाहिए कि जो भी कंपनी उनका सर्वर मैनेज करेगी, उसे सभी डाटा, सॉफ्टवेयर और इसका सोर्स कोड यूनिवर्सिटी को ही मुहैया करना होगा। वहीं अगर यूनिवर्सिटी अपना सर्वर खुद रखे, तो उन्हें कंपनी से यह गुहार भी नहीं लगानी होगी और सोर्स कोड लेने के बाद वह अपना पासवर्ड वगैरा चेंज कर डाटा को सिक्योर भी कर सकेंगे। लेकिन अभी अपना सर्वर न होने की वजह से ऐसा नहीं हो पाता है और लाखों खर्च करने के बाद यूनिवर्सिटी को अपना रिकॉर्ड ही नहीं मिल पाता और उन्हें हर बार एक्स्ट्रा पैसे खर्च करने पड़ जाते हैं।

स्टूडेंट्स को होती है प्रॉब्लम

यूनिवर्सिटी के पास अपना रिकॉर्ड न होने से हमेशा ही स्टूडेंट्स पर इसका असर पड़ता है। एक तरफ जहां नया फॉर्म भरने में स्टूडेंट्स को प्रॉब्लम होती है, तो वहीं एडमिशन और हॉस्टल के लिए भरे जाने वाले रिन्यूअल फॉर्म का डाटा मैच न होने की वजह से उन्हें काफी दौड़ भी लगानी पड़ती है। इतना ही नहीं एग्जाम के दौरान भी स्टूडेंट्स को फॉर्म भरने में प्रॉब्लम हो जाती है, जिसके लिए न सिर्फ स्टूडेंट्स परेशान होते हैं, बल्कि जिम्मेदारों को भी इसे ठीक कराने के लिए एजेंसी से काफी लेटरबाजी करनी पड़ती है, जिसके बाद स्टूडेंट्स को राहत मिल पाती है।

वर्जन

यह एक गंभीर मसला है। यूनिवर्सिटी का डाटा उनके पास होना चाहिए। पहले जो गलतियां की जाती रही हैं, वह आगे न हो यह सुनिश्चित किया जाएगा। वहीं अनुबंध में भी इसका जिक्र होगा कि यूनिवर्सिटी को सोर्स कोड के साथ सारा डाटा मिल सके।

- बीरेंद्र चौबे, फायनेंस ऑफिसर, गोरखपुर यूनिवर्सिटी