कड़े कानून के लिए हमले

एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक इशरत जहां मुठभेड़ मामले की जांच में सरकार की तरफ से कोर्ट में हलफनामे पर दस्तखत करने वाले गृह मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि ने कहा है कि हाल तक सीबीआइ-एसआइटी टीम के सदस्य रहे सतीश वर्मा ने उन्हें बताया था कि दोनों आतंकी हमले की साजिश तत्कालीन सरकारों ने रची थी. इसका मकसद था आतंकवाद के खिलाफ कानून को मजबूत करना. मणि ने सतीश के हवाले से कहा कि 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले के बाद पोटा कानून लागू किया गया. फिर 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले के बाद गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) में संशोधन किया गया. मालूम हो कि दोनों हमलों के समय केंद्र में क्रमश: भाजपा और कांग्रेस की सरकारें थी.

कुछ भी कहने से इनकार

इस विषय में सतीश वर्मा से बात करने पर उन्होंने कुछ भी कहने से इन्कार कर दिया. गुजरात कैडर के आइपीएस अधिकारी वर्मा ने कहा कि मुझे पता नहीं क्या शिकायत है, किसने की और कब की. न ही इसे जानने में मेरी कोई दिलचस्पी है. इस तरह के मामलों में मैं मीडिया से बात नहीं कर सकता. आप सीबीआइ से पूछिए. इशरत जहां मामले में गठित एसआइटी सदस्य वर्मा का हाल ही में तबादला जूनागढ़ पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज प्रिंसिपल के रूप में किया गया है.

जो आईएसआई कहती है वही कह रहे

हाल में शहरी विकास मंत्रालय में भूमि और विकास उप अधिकारी बनाए गए मणि ने अपने वरिष्ठ अधिकारी को लिखे पत्र में कहा है कि वर्मा वहीं कह रहे हैं जो पाकिस्तानी जासूसी एजेंसी आइएसआइ कहती है. उनके अनुसार वर्मा ने 22 जून को अहमदाबाद में यह बात तब कही थी जब वह मुठभेड़ मामले में गृह मंत्रालय के दो हलफनामे पर उनसे वह पूछताछ कर रहे थे.

बयान पर दस्तखत के लिए दबाव

मणि ने शहरी विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव को लिखे पत्र में आरोप लगाया है कि वर्मा ने उन पर एक बयान पर दस्तखत करने के लिए दबाव डाला था जिसमें कहा गया था कि मुठभेड़ मामले में पहला हलफनामा आइबी के दो अधिकारियों ने तैयार किया था. मणि ने कहा कि मैं यह जानता था कि ऐसा बयान मेरे अपने तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारियों पर झूठे आरोप लगाने जैसा है. इसलिए मैंने उस बयान पर दस्तखत करने से इन्कार कर दिया. मणि ने कहा कि वर्मा के सामने मुठभेड़ की असलियत पर शक जताने के बाद वर्मा ने उनसे दोनों आतंकी हमलों के बारे में सरकारों के शामिल होने की बात कही थी.

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