- नई बिल्डिंग में इसके लिए हो सकती है आसानी

- घरों में थोड़ी जगह का वॉटर हार्वेस्टिंग के लिए किया जा सकता है इस्तेमाल

GORAKHPUR: देश के कई इलाकों में पानी के लिए हाहाकार मचा है। लोग पानी के लिए आसमान में नजरें जमाए हुए हैं, लेकिन राहत नहीं मिल सकी है। पिछले दिनों पहले कुछ इलाकों में बारिश के बाद लोगों ने थोड़ी राहत की सांस ली, लेकिन यह भी दगा दे गए। जमीन में पानी का लेवल लगातार कम होता जा रहा है। लोग इसका इस्तेमाल तो करते हैं, लेकिन इसे रीचार्ज करने की नहीं सोचते। वॉटर लेवल को मेनटेन करने और पानी की किल्लत से बचने के लिए सबसे आसान और कारगर तरीका है, रेन वॉटर हार्वेस्टिंग। इसके जरिए न सिर्फ ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज किया जा सकता है, बल्कि सड़क पर होने वाले जल जमाव और बाढ़ जैसी आपदा के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

दो तरह से हो सकती है हार्वेस्टिंग

पानी की बचत के लिए दो तरह के तरीके अपनाए जाते हैं। एमएमएमयूटी के प्रो। गोविंद पांडेय ने बताया कि इसमें रूफ टॉप हार्वेस्टिंग के जरिए बड़ी मात्रा में पानी की बचत की जा सकती है। इस सिस्टम में घर की छतों से निकलने वाले पानी को पाइप लाइन के जरिए जोड़ दिया जाता है और मैदान में एक टैंक बनवाकर सारा पानी उसी में इकट्ठा किया जाता है। इसके बाद इसे बोरवेल या रीचार्ज पाइप के जरिए जमीन में भेजकर ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज किया जाता है। वहीं दूसरे तरीके में घर के शेष एरिया का पानी नाली के थ्रू एक जगह गड्ढे में इकट्ठा किया जाता है और वहां से ग्राउंड वॉटर ऑटोमेटिक रीचार्ज होता रहता है। इन दोनों ही तरीकों से ग्राउंड वॉटर रीचार्ज किया जाता है।

70 परसेंट कर रहे हैं इस्तेमाल

जमीन के अंदर जो पानी मौजूद है, उसका इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए। डॉ। गोविंद पांडेय ने बताया कि ग्राउंड की पहली और दूसरी सतह में जो भूमिगत जल है। इसका 50 परसेंट से भी कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मगर एक सर्वे के दौरान जब सिटी का ग्राउंड वॉटर डेवलपमेंट रेट निकाला गया, तो यह 70 परसेंट के आसपास पाया गया, जो सामान्य से 20 परसेंट अधिक है। जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल होने और प्रॉपर वॉटर रीचार्ज न होने की वजह से वॉटर लेवल लगातार घटता जा रहा है।

नहीं हो पाता है प्रॉपर रीचार्ज

डॉ। पांडेय ने बताया कि सिटी में लगातार बढ़ रही बिल्डिंग्स और पक्की सड़कों की वजह से वॉटर रीचार्ज नहीं हो पा रहा है। इसकी वजह से लगातार पानी का लेवल भी गिर रहा है। ऐसा इसलिए कि शहर में लगातार मकानों की संख्या बढ़ती जा रही है और जमीन में कंक्रीट की मोटी-मोटी परत बिछ चुकी है। यहां बरसात का पानी ग्राउंड में नहीं पहुंच पाता और पानी नालियों के माध्यम से तालाबों या नदियों में चला जाता है, जिससे ग्राउंड वॉटर क्राइसिस बढ़ती चली जाती है। वहीं हरियाली भी कम होती जा रही है, जिसकी वजह से बारिश की मात्रा भी कम होती जा रही है।

कम हो सकता है बाढ़ का प्रकोप

रेन वॉटर हार्वेस्टिंग न सिर्फ ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करती है, बल्कि इससे और भी कई फायदे हैं। डॉ। गोविंद पांडेय की मानें तो वॉटर हार्वेस्टिंग न होने की वजह से इसका सारा पानी नालियों के जरिए नदियों और तालाबों में चला जाता है। पानी ग्राउंड में न जाने से नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है और यह बाढ़ के हालात पैदा कर देता है। शहर में होने वाली वॉटर लॉगिंग भी इसी का साइड इफेक्ट है।

वर्जन

वॉटर हार्वेस्टिंग कर न सिर्फ ग्राउंड वॉटर का लेवल कम होने से बचाया जा सकता है, बल्कि इससे जल जमाव और बाढ़ जैसे हालात पैदा होने के खतरे को भी कम किया जा सकता है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवायर्नमेंटलिस्ट