RANCHI: मोदी सरकार के चार साल पूरे हो गए हैं। ख्यातिलब्ध उपलब्धियों में जीएसटी एक ऐसा विषय है जो देश की जीडीपी से सीधा जुड़ा हुआ है। तीन शब्दों के इस कानून ने बड़े-बड़े धुरंधरों को उलझा दिया है। लोग हालांकि यह मानते हैं कि जीएसटी कानून स्वर्णिम भारत की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में उठाया गया एक बेहतर कदम है, लेकिन सॉफ्टवेयर और ऑनलाइन होने की वजह से इसमें कई अड़चनें भी हैं। माल सस्ता हुआ है वहीं दैनिक जरूरत की चीजों पर टैक्स स्लैब को लेकर नाराजगी है।

सिटी में लिस्टेड व्यवसायी

साउथ सर्किल 1329

वेस्ट सर्किल 3015

ईस्ट सर्किल 2180

स्पेशल 1776

कुल 8300

कंजंप्शन बेस्ड टैक्स से राज्य को नुकसान

जीएसटी एक कंजंप्शन बेस्ड टैक्स है जिस वजह से झारखंड में निर्मित प्रोडक्ट से टैक्स अन्य प्रदेशों में जा रहा है। झारखंड में माइंस के साथ-साथ कई कंपनियां हैं तो कई प्रकार की सामग्री, यंत्र, उपकरण, मोटर वाहन सहित कई चीजों का निर्माण करती हैं। नियमों की वजह से बड़ा नुकसान हो रहा है। हालांकि घाटे को पूरा करने के लिए सेस से प्राप्त होने वाली राशि से भरपाई पूरी की जाएगी। कई ऐसी वस्तुएं हैं जिनपर जीएसटी में सेस 1 से 5 प्रतिशत तक निर्धारित है।

जीएसटी से सस्ते हुए सामान

वैट और जीएसटी में तुलना की जाये तो सामान की कीमत कम हुई है। आंकडे़ बताते हैं कि उपभोक्ताओं को किसी भी प्रोडक्ट को खरीदने के लिए कई जगह टैक्स देना पड़ता था, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद सिर्फ एक ही बार लोगों को टैक्स देना पड़ रहा है।

ऐसे समझें वैट का गणित

शर्ट बनाने के लिए निर्माता को 100 रुपए के मैटेरियल पर 10 रुपए वैट देना पड़ता था तो शर्ट की लागत 110 रुपए हुई। उसके बाद हॉल सेलर के पास गई तो उसने लेबल लगाये जिसकी लागत 40 रुपए हुई शर्ट की कीमत 150 रुपए हो जाती थी उसपर फिर वैट दस प्रतिशत लगता था तो शर्ट 165 रुपए की हो गई। उसके बाद पुटकर व्यापारी 165 रुपए में शर्ट खरीदता था , उसकी पैकिंग करता तो उसका खर्च करीब 30 रुपए बैठता था शर्ट की कीमत फिर बढ़कर 195 रुपए हुई उसके बाद वैट फिर 10 प्रतिशत देकर उपभोक्ता खरीदता है तो शर्ट उसे 214.5 रुपए देना पड़ता था। यानी कि प्रोडक्शन से दोगुनी कीमत उपभोक्ता को देनी पड़ती थी।

ऐस समझें जीएसटी का गणित

जीएसटी में व्यापारियों को इनपुट क्रेडिट टैक्स के तहत रिलीफ मिलता है। क्योंकि जब खुदरा व्यवसायी थोक व्यापारी से शर्ट खरीदता है तो जो टैक्स पहले दस प्रतिशत दे चुका है, उसे कम करके भुगतान करता है। अगले चरण में रिटेलर ने भी इसी तरह से काम करता है। मतलब साफ है जो शर्ट पहले 214.5 रुपए में उपभोक्ता को मिल रही थी अब वही शर्ट की कीमत 187 रुपए में मिल जाती है।

बिना तैयारी जीएसटी लागू: ज्योति पोद्दार

चैंबर के ज्योति पोद्दार का कहना है कि जीएसटी बहुत अच्छी चीज है। लेकिन बिना तैयारी के जिस प्रकार इसे लागू किया गया वो उचित नहीं था। हालात ऐसे हैं कि टैक्स से जुड़े पदाधिकारियों को भी जीएसटी के बारे में पूरी जानकारी नहीं है। कानून को किस्तों में लागू किया जा रहा है। मतलब साफ है कि इसे लेकर एक्सरसाइज नहीं की गई। ई-वे बिल के लिए कहां अपील करनी है, इसके लिए ऑथोरिटी का गठन नहीं किया गया है। ज्योति का कहना है कि इनपुट क्रेडिट टैक्स में अगर गलती हो गई तो डीलर्स को नोटिस थमाया जा रहा है। सॉफ्टवेयर में खामियों का खामियाजा व्यवसायियों को भुगतना पड़ रहा है। इससे व्यवसायियों में खौफ है।

जीएसटी प्रोफेशनल उठा रहे फायदा: आनंद गोयल

चैंबर के आनंद गोयल का कहना है कि जीएसटी केन्द्र सरकार की ओर से उठाया गया बेहतर कदम है, लेकिन नेटवर्किंग की व्यवस्था खराब होने से परेशानी बढ़ गयी है और जीएसटी प्रोफेशनल इसका अनुचित लाभ उठा रहे हैं। सरकार की ओर से नियमों का प्रचार प्रसार नहीं किया जा रहा है। प्रोडक्ट के लिए रॉ मैटेरियल के टैक्स स्लैब में गडबड़ी है। दूसरा ये कि सर्किल क्या है और व्यापारी केन्द्र या राज्य सरकार किसके अधीन हैं इसे लेकर कंफ्यूजन है। ये सच है कि जीएसटी के आने से प्रोडक्शन बढ़ा है, लेकिन कृषि यंत्र एवं उपकरण में 12 प्रतिशत जीएसटी लागू किया गया है जबकि वैट मात्र 5 प्रतिशत हुआ करता था, यह उचित नहीं है। ऐसे में कृषि विकास के सपनों को साकार करना मुश्किल होगा।