बिहार की कौन सी चीज आपको अट्रैक्ट करती है?

मैं एक हिंदुस्तान देखना चाहता हूं, उसे अलग करकर नहीं देखता हूं। फिर भी हम कहीं जाते है तो वहां के कल्चर की खास खुशबू ढूंढ़ते हैं। ताकि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें। मैं जब भी बिहार आता हूं एनशिएंट नालंदा यूनिवर्सिटी की तरफ देखता हूं और सोचता हूं कि कहीं न कहीं इस प्राचीन ज्ञान के केंद्र से मेरी भी जड़ें जुड़ी रही होंगी।  

पूरे देश को जोडऩेवाली लैंग्वेज के बारे में क्या कहना है?

लिंक लैंग्वेज कोई पैदा कर सकता है तो कर ले, मेरे समझ में देवनागरी नेशनल लैंग्वेज है। बोलने, लिखने और समझने में आसान है। मेजॉरिटी तक इसकी पहुंच भी है।

आजकल लिखने की भाषा में बदलाव आया है, स्पेशली बॉलीवुड के लिरिक्स में, उसके बारे में आपका क्या कहना है?

दुनिया में कोई भी जबान स्टैटिक नहीं होती। बदलाव अच्छा है। जिंदा जबान बदलती रहेगी और बदलते भी रहना चाहिए तभी वो आगे बढ़ेगी।

1936 के बाद यह रिसर्जेंट बिहार का पहला लिटरेचर फेस्टिवल है। आपकी ओपिनियन?

बहुत खूबसूरत शुरुआत हुई है। मन में इस लिटरेचर फेस्टिवल को करने की ख्वाहिश तो आई और ऐसी प्रेरणा तो जगी, यह अच्छी बात है। फिर अगर ख्वाहिश जगी है तो आगे भी बढ़ते जाएंगे।

 

बिहार से क्या लेकर जा रहे हैं?

आपकी मोहब्बत।

 

आप लिखने के लिए पेन-पेपर यूज करते हैं या कंप्यूटर पर कंर्फटेबल हैं?

लिखने का तो यूं कह लीजिए कि पेन के बगैर सोच भी नहीं पाता। वो भी जब तक निब को स्याही में डूबो न लूं, ख्याल आगे नहीं जाते। मुझे आज भी निब वाले पेन से ही लिखना पसंद  है।

आपका लिखा हुआ पहला सांग, 'मोरा गोरा रंग लई ले' से आयटम सांग बीड़ी जलाइले का बदलाव आपके शब्दों में?

मैं अभी लिटरेचर फेस्टिवल में आया हूं तो लिटरेचर की बात कीजिए। बॉलीवुड फेस्ट में बॉलीवुड की बात करूंगा।

Conversation with Sumita Jaiswal