- डिमांड से आधा भी नहीं मिलता वन महकमे को जंगलों की आग बुझाने को बजट

- जंगल धधकने शुरू, अब तक मिला सिर्फ 30 परसेंट बजट

DEHRADUN: उत्तराखंड के वन पूरे उत्तर भारत में मौसम चक्र को गतिशील रखने में मदद करते हैं। इस क्षेत्र के जंगल हिमालयी ग्लेशियरों के रख-रखाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो कई नदियों को वर्ष भर पानी देते हैं। राज्य के वनों के इस महत्व को देखते हुए इस क्षेत्र में वनों सके रखरखाव पर खास ध्यान दिया जाता है और वनों को आग से बचाने के लिए राज्य से लेकर केन्द्र तक की सरकार सक्रिय रहती है। लेकिन, विडंबना यह है कि वनों को आग से बचाने के लिए महकमे को पूरा बजट नहीं दिया जाता। ऐसे में जंगलों की आग बेकाबू हो जाती है और वन विभाग हाथ पर हाथ धरे रह जाता है।

तीन हेड से मिलता है फंड

आग से जंगलों को बचाने के लिए तीन हेड से बजट मिलता है, केन्द्र सरकार से, राज्य सरकार से और वन विभाग के अन्तर्गत संचालित कैम्पा प्रोजेक्ट से, लेकिन इन तीनों हेड से मिलने वाला बजट इतना नहीं होता कि आग बुझाने के लिए भरपूर संसाधन उपलब्ध हो पाएं।

बजट पर एक नजर

वर्ष प्रेषित बजट प्राप्त बजट

2015-16 19.00 7.14

2016-17 29.65 22.82

2017-18 37.69 10.15

धनराशि करोड़ रुपये में

आधी से कम धनराशि

वर्ष 2015-16 और 2017-18 में वन विभाग ने आग पर काबू पाने के लिए जो बजट मांगा था, विभाग को उसका एक तिहाई से भी कम मिला। 2016-17 में विभाग ने 29.65 करोड़ रुपये मांगा था। इस बार भी धनराशि कम मिलती, लेकिन बड़े पैमाने पर आग लगने के बाद धनराशि उपलब्ध करवाई गई। इसके बावजूद यह राशि 22.82 करोड़ तक ही पहुंच पाई।

इस बार का बजट

शासन को भेजे गये प्रस्ताव : 37.69 करोड़

शासन से स्वीकृत राशि : 10.15 करोड़

अब तक मिली राशि : 7.15 करोड़

केन्द्र से मंजूर राशि 5.84 करोड़

केन्द्र से प्राप्त राशि : 1.68 करोड़

कैम्पा से स्वीकृत राशि : 4.35 करोड़

कैम्पा से प्राप्त राशि : 00

कम बजट से नुकसान

जरूरत के अनुसार बजट न मिल पाने के कारण वन विभाग आग बुझाने की सभी जरूरी तैयारियां नहीं कर पाता। फॉरेस्ट फायर सीजन 15 फरवरी से शुरू हो जाता है। नियमानुसार मैदानी क्षेत्रों में 15 फरवरी से पहले और पहाड़ी क्षेत्रों में फरवरी अंत से सभी तैयारियां पूरी हो जानी चाहिए, लेकिन बजट देरी से और कम मिलने के कारण जरूरी तैयारियां नहीं हो पाती।

क्या काम प्रभावित

आग से वनों को बचाने के तीन उपाय सीजन शुरू होने से पहले जरूर किये जाते हैं, कंट्रोल बर्निग, रेगुलर बर्निग और फायर लाइन का रखरखाव। ये तीनों काम पूरे वन क्षेत्र में होने चाहिए, लेकिन बजट की कमी के कारण इस साल केवल संवेदनलशील क्षेत्रों में ही ये तीनों काम किये गये हैं। इसके अलावा मास्टर कंट्रोल रूम की संख्या जो पहले 63 थी, अब घटाकर 40 कर दी गई है। कई उपकरणों में भी कटौती की गई है।

समय पर बजट न मिलने के कारण कई जरूरी काम नहीं हो पाते। जो तैयारियां फायर सीजन शुरू होने से पहले की जानी चाहिए, वे भी प्रभावित होती हैं। हालांकि देर-सबेर बजट मिल जाता है, लेकिन विभाग की तरफ से जो प्रस्ताव भेजा जाता है, उससे कम धनराशि मंजूर होती है। इसी से काम चलाना पड़ता है।

-बीपी गुप्ता, नोडल ऑफिसर, फॉरेस्ट फायर