- आखिर स्कूलों से कहां गायब हो गया मैनेजमेंट का बोर्ड

- बढ़ती फीस और बदलते नियमों में पेरेंट्स का दखल नहीं

MEERUT नियम कहता है कि फीस बढ़ोतरी से लेकर कमेटी की बैठक में पेरेंट्स की उपस्थिति होनी चाहिए, लेकिन पब्लिक स्कूलों को अपने ही नियम भाते हो। प्रशासन और नियमों तक धज्जियां भी खूब उड़ रही हैं। पब्लिक स्कूलों के सामने न जाने कई बार प्रशासन भी मात खा चुका है। न तो स्कूलों की मैनेजमेंट कमेटी में पेरेंट्स मेंबर हैं और न ही नियमों में पेरेंटस की दखलअंदाजी। पेरेंट्स के दखल बिना सभी फैसले खुद ब खुद ले लेते हैं। सिटी के तमाम स्कूलों की पीटीए में पेरेंट्स मेंबर नहीं हैं और अगर किसी में हैं तो नाम मात्र को।

क्या है नियम

सीबीएसई द्वारा ख्0क्फ् मई माह में भेजे गए एक लेटर में नियम भी दिए हुए हैं। नियम तो ये कहता है कि पब्लिक स्कूलों की कमेटी में टीचर्स, पेरेंट्स और सीबीएसई तीनों का ही शामिल होना जरुरी है। वहीं सन् ख्009 के शासनादेश भी बिना पेरेंट्स जानकारी के फीस नहीं बढ़ा सकते हैं। अगर स्कूलों को कोई चार्ज भी बढ़ाना है तो उसमें पेरेट्स की रजामंदी आवश्यक है। मगर अंजान पेरेंट्स केवल अपनी जेबे खाली करते रह जाते हैं। नियम तो यह भी कहता है कि स्कूलों की फीस फिक्स करने के लिए भी पहले पेरेट्स और मैनेजमेंट का विचार विमर्श होना जरुरी है।

स्कूल खोल रहे पोल

पब्लिक स्कूलों की पोल तो स्कूल खुद ही खोल रहे हैं। सिटी में जीटीबी स्कूल, सोफिया ग‌र्ल्स इंटर कॉलेज, एमपीएस, सेंट मेरीज जैसे तमाम ऐसे स्कूल हैं, जिनमें न तो कोई पेरेंट्स मेंबर हैं और न ही पेरेंट्स से फीस बढ़ाने से पहले कोई विचार विमर्श किया जाता है। अगर किसी स्कूल में पेरेंट्स मेंबर हैं भी तो उन्हें यह तक नहीं पता कि आखिर उनकी जिम्मेदारी क्या है। हालांकि एमपीएस स्कूल पेरेंट्स के मेंबर होने का दावा करता है, मगर सूचना तो यह है कि यहां पेरेंट्स से ज्यादा विचार नहीं किया जाता है।

कोई नहीं सुनवाई

पेरेंट्स के अनुसार तो उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। फीस बढ़ोतरी से लेकर ड्रेस के चेंज होने तक स्कूल अपनी मनमर्जी से कर लेते हैं। शास्त्रीनगर निवासी ज्योति पाठक बताती हैं कि बेटी एमपीएस ग‌र्ल्स में पढ़ती है। स्कूल में अपनी मन से जब भी ड्रेस बदल दी जाती है। वहीं बेगमबाग निवासी संगीता अरोड़ा ने बताया कि सोफिया ग‌र्ल्स स्कूल में तो कोई सुनने वाला नहीं है। जब मन में आए जो भी किताब लगा दे, जितने मर्जी खर्च बढ़ा दे।

कहां है मैनेजमेंट बोर्ड

पब्लिक स्कूलों में अधिकतर स्कूलों में तो मैनेजमेंट के नाम के बोर्ड भी गायब है। पब्लिक स्कूलों में कुछ गिने चुने स्कूलों को छोड़कर बाकी सबमें तो बोर्ड या मैनेजमेंट नेम प्लेट तक नहीं है। आखिर पब्लिक स्कूलों में मैनेजमेंट के बोर्ड क्यों गायब है।

नहीं होती सुनवाई

स्कूलों में पेरेंट्स की सुनने वाला कोई नहीं है। सच है कि स्कूलों को बस जेब ढीली करनी आती है। ऐसे में पेरेंट्स परेशान ही रहते हैं।

-मंजुला,बुढ़ाना गेट

हर साल ही बिना बताए फीस बढ़ा देते हैं। आखिर पेरेंट्स मेम्बर्स का भी क्या फायदा होगा। जब वो पेरेंट्स की सुनवाई ही नहीं है।

-मीनाक्षी, बेगमपुल

पब्लिक स्कूलों पर जब प्रशासन लगाम नहीं कस सका, तो फिर कोई पेरेंट्स क्या कर सकते हैं। आखिर सुनवाई तो स्कूलों की ही है।

-शिखा सिंह, साकेत

तो ये कहते हैं स्कूल

स्कूल की मैनेजमेंट में पेरेंट्स शामिल नहीं होते हैं। पेरेंट्स तो पीटीए में होते हैं। हमारे स्कूल में कुछ पेरेंट्स हैं।

-मधु सिरोही, एमपीएस ग‌र्ल्स स्कूल

ऐसा नहीं है पेरेंट्स को सुना नहीं जाता है। पेरेंट्स की शिकायतों पर स्कूल गौर करते हैं। कोई भी स्कूल पेरेंट्स को परेशान नहीं करता।

-सिस्टर मेरी, सोफिया स्कूल

पेरेंट्स को तो स्कूल में मीटिंग में बुलाया जाता है। जब भी मीटिंग होती है तो उनकी शिकायत सुनी जाती है।

-बाबू वर्गीज, सेंट मेरीज

स्कूल में जब भी पेरेंट्स टीचर मीटिंग होती है, तो पेरेंट्स की शिकायत सुनी जाती है।

-कपिल सूद, जीटीबी