-नहीं लगाने पड़ेंगे हर हफ्ते महंगे इंजेक्शन

-नई दवाओं से सस्ता हुआ हेपेटाइटिस का इलाज

LUCKNOW: हेपेटाइटिस-सी से पीडि़त मरीजों के लिए एक अच्छी खबर है। अब उनको इलाज के लिए लाखों रुपए नहीं खर्च करने पड़ेंगे। अभी तक उनको 18 लाख के महंगे इंजेक्शन लगवाने पड़ते थे। लेकिन, अब हेपेटाइटिस सी मात्र 40 हजार की दवाओं से 3 से 6 माह में पूरी तरह ठीक हो जाएगा। यह संभव होगा देश में बन रही जेनेरिक दवाओं से। इससे अब आम लोग भी इसका पूरा इलाज करा सकेंगे। यह जानकारी रविवार को डॉ। राम मनोहर लोहिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस में एम्स नई दिल्ली से आए से आए डॉ। डॉ। शालीमार ने दी।

हेपेटाइटिस पर कार्यशाला

हेपेटाइटिस की पहचान, निदान और रोकथाम विषयक कार्यशाला में डॉ। शालीमार ने बताया कि अभी तक हेपेटाइटिस सी के लिए महंगे इंजेक्शन हर हफ्ते लगाने पड़ते थे। जिसका इलाज लगभग साल भर चलता था। लेकिन, अब सस्ती दवाएं देश में उपलब्ध हैं, जिसके कारण इंजेक्शन नहीं लगाने पड़ेंगे। इन इंजेक्शन का साइड इफेक्ट भी नहीं है। डॉ। शालीमार ने बताया कि इंजेक्शन के काफी साइड इफेक्ट थे। हर बार इंजेक्शन पर दो से तीन दिन बुखार, प्लेट लेट काउंट कम होना, टीएलसी काउंट कम होने की समस्याएं थीं। अगर हीमोग्लोबिन कम है तो इंजेक्शन नहीं दे सकते थे। पहले नियमित रूप से खून की जांच करानी पड़ती थी, लेकिन अब दवाओं के इलाज में तीन माह में वायरल लोड जांच कराते हैं। जिसमें 90 परसेंट केसेज में यह निगेटिव हो जाता है।

बचाव के बारे में दी जानकारी

डॉ। शालीमार ने बताया कि डॉक्टर्स कैसे मरीज को हेपेटाइटिस होते हुए उसका इलाज कर सकते हैं। कई बार सर्जन सिर्फ हेपेटाइटिस होने के कारण ऑपरेशन से इनकार कर देते हैं, जबकि 95 परसेंट केसेज में हेपेटाइटिस होने के बावजूद ऑपरेशन किया जा सकता है। शेष में लिवर खराब या अन्य कारणों से मना करते हैं। अगर लिवर में कोई दिक्कत नहीं है तो ऑपरेशन से पहले इलाज करना पड़ता है। इससे पहले सीएम के ओएसडी डॉ। आरसी अग्रवाल ने कार्यक्रम का शुभारंभ किया। उन्होंने कहा कि इस जागरूकता और बचाव से ही इस बीमारी से बचा जा सकता है।

काफी संख्या में हैं मरीज

लोहिया इंस्टीट्यूट के डॉ। प्रशांत वर्मा ने बताया कि लोहिया इंस्टीट्यूट की रोजाना की ओपीडी मे ही 5 से 6 मरीज हेपेटाइटिस के आते हैं। यह बीमारी काफी खतरनाक रूप धारण कर रही है। डॉ। प्रशांत ने बताया कि हेपेटाइटिस ए व बी के लिए वैक्सीन उपलब्ध है। बी का वैक्सीन किसी भी उम्र में लगवा सकते हैं, जिसकी छह माह में 3 डोज लगती हैं। वहीं 'ए' का वैक्सीन बचपन में ही दो से 8 हफ्ते के अंतर में दो डोज लगानी पड़ती है। इनसे हेपेटाइटिस वायरस से बीमारी होने का खतरा नहीं रहता। डॉ। प्रशांत वर्मा ने बताया कि बीमारी होने पर ज्यादातर मरीज गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचते हैं। अगर समय पर गैस्ट्रोइंट्रोलॉजिस्ट के पास पहुंचे तो आसान इलाज उपलब्ध है।

कैसे फैलता है हेपेटाइटिस

डॉ। राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डॉ। संदीप चौधरी ने बताया कि हेपेटाइटिस संक्रमित संक्रमण से होने वाली बीमारी है, जो सीधे लीवर को अफेक्ट करती है। व्यक्ति के साथ खाने से, संक्रमित सुई से, संक्रमित ब्लड चढ़ाने से, ड्रग्स लेने, संक्रमित डायलिसिस, टैटू बनवाने से, अशुद्ध पीने के पानी से, असुरक्षित यौन संबधों से अधिक खतरा होता है। कुछ लोगों में वायरस का संक्रमण होने पर भी वह बीमार नहीं होते, लेकिन दूसरे में बीमारी फैलाने का खतरा बना रहता है। इसलिए इन चीजों से बचें और बीमारी होने पर तुरंत इलाज शुरू करें।