शरमीन की डॉक्यूमेंट्री 'सेविंग फेस' पाकिस्तान में चेहरे पर तेज़ाब फ़ेंकने की घटना का शिकार हुई औरतों की कहानी है.'सेविंग फेस' के अलवा शरमीन अफ़गानिस्तान में रह रही महिलाओं की स्थिति पर भी फ़िल्म बना चुकी हैं। तो पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान जैसे देशों में औरतों से जुड़े संवेदनशील मुद्दों पर फ़िल्म बनाना मुश्किल नहीं रहा शरमीन के लिए?

इस सवाल का जवाब देते हुए शरमीन कहती हैं, ''अगर मैं पाकिस्तान में मर्द पैदा हुई होती तो आज जो काम मैं कर रही हूं वो नहीं कर सकती थी। मैं एक औरत हूं इसलिए समाज में मेरे लिए एक जगह है जहां रह कर मैं अपना काम कर सकती हूं। मेरा औरत होना मेरे लिए फायदेमंद रहा और मैं कभी नहीं चाहूंगी कि मैं पाकिस्तान में मर्द के रूप में जन्म लूं, मैं तो औरत ही ठीक हूं.''

क्यों कह रही हैं शरमीन ऐसी बात, क्या फायद हुआ उन्हें अपने औरत होने का? शरमीन कहती हैं, ''जिस तरह की कहानियों पर मैं काम करती हूं उसकी वजह से मुझे दूसरी औरतों के साथ काफी वक़्त बिताना पड़ता है, उनके घरों में रहना भी पड़ता है ताकि मैं उनके हालात बेहतर तरीके से समझ सकूं। जिस तरह का हमारा समाज है उसमे गैर मर्द का किसी औरत के साथ उठना-बैठना, उसके घर जाकर रहना सही नहीं माना जाता। तो अगर मैं मर्द होती तो मैं ऐसी फ़िल्में बना ही नहीं सकती थी.''

'सेविंग फेस' पर रोशनी डालते हुए शरमीन ने बीबीसी को बताया, ''पाकिस्तान स्थित पंजाब में तेज़ाब बहुत आसानी से मिल जाता है क्योंकि रुई को साफ़ करने के लिए वहां तेज़ाब का इस्तेमाल किया जाता है। वहां छोटी-छोटी बातों पर भी मर्द औरतों पर तेज़ाब फेक देते हैं। इसकी एक वजह शिक्षा की कमी भी है, ऊपर से इनके पास काम नहीं है और सोच ऐसी है कि औरत पर ज़ुल्म करना ठीक है.''

'सेविंग फेस' कहानी है दो औरतों की जिन पर तेज़ाब फेका गया था। इनमें से एक औरत अपने साथ हुए अन्याय के लिए लड़ी। उसने एक महिला वकील और कुछ महिला सांसदों के साथ मिलकर गवाही दी और लड़ कर सिस्टम को बदला।

शरमीन कहती हैं कि उनकी फ़िल्म की कहानी से पता चलता है कि अगर पाकिस्तान चाहे तो अपने मसले खुद हल कर सकता है। साथ ही वो ये भी कहती हैं कि अगर शिक्षित औरतें अशिक्षित औरतों की मदद करें तो ऐसा कोई मसला नहीं है जिसका हल न ढूंढा जा सकता हो। शरमीन कहती हैं भले ही 'सेविंग फेस' तेज़ाब की कहानी हो लेकिन ये उम्मीद की भी कहानी है।

शरमीन एक पत्रकार भी रह चुकी हैं। बीबीसी को उन्होंने बताया कि आज तक उन्होंने उसी तरह की कहानियां की हैं जिन्हें करने से अमूमन लोग डरते हैं, यहां तक कि लोग उन मुद्दों का ज़िक्र भी नहीं करना चाहते। वो कहती हैं कि ज़रूरी है कि पढ़े लिखे लोग ऐसी गंभीर बातों के बारे में चर्चा करें ताकि बदलाव आए और समाज बेहतर बने।

शरमीन चाहती हैं कि वो तब्दीली लाएं, तो क्या हमेशा ही उन्हें अपने आस-पास के लोगों से ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिला या फिर कभी किसी ने उनके हौसलों को तोड़ने की कोशिश भी की?

इस सवाल के जवाब में शरमीन कहती हैं, ''मेरा बस एक ही मकसद है कि मुझे बदलाव लाना है फिर इस काम में किसी भी तरह की आवाज़ आए, कोई कुछ भी कहे मुझे फर्क नहीं पड़ता। मैं उन्हीं लोगों की बातें सुनती हूं जिनकी बातें मुझे सुननी हैं। बहुत आसान होता है कहना कि ये मत करो वो मत करों पर उतना ही मुश्किल होता है वो काम करना जिससे सुधार आए।

26 फरवरी, 2012 को दिए जाने हैं ऑस्कर पुरस्कार। तो इस शाम के लिए क्या कुछ खास सोचा है शरमीन ने? शरमीन कहती हैं वो ऑस्कर पुरस्कार समारोह को लेकर बेहद उत्साहित हैं। उन्होंने 'रेड कारपेट' पर पहनने के लिए अपनी ड्रेस भी तैयार कर ली है। वो कहती हैं, ''मैं पाकिस्तानी लिबास पहनूंगी। मैं चाहती हूं कि दुनिया देखे कि हमारा काम किस तरह का होता है, हमारे कपडे़ किस तरह के होते हैं.''

शरमीन ये भी मानती हैं कि अगर वो 'सेविंग फेस' के लिए ऑस्कर पुरस्कार जीत गई तो उनके काम को, उनके सन्देश को ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का मौका उन्हें मिलेगा। साथ ही वो कहती हैं, ''मैं ऑस्कर अपने देश, अपने पाकिस्तान के लिए जीतना चाहती हूं। हमारा देश कई मसलों, कई जंगो से जूझ रहा है, मैं चाहती हूं कि मैं लोगों का ध्यान जंगो से हटाकर उन्हें खुश होने की एक वजह दूं.''

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