हारमोनियम रिपेयर करते थे

जीहां फिल्मों में संगीत देने के लिए मुंबई आने के पहले नौशद लखनऊ में रहते थे और मशहूर संगीतकार बनने के रास्ते पर आगे बढ़ने से पहले तक वो वहीं पर हॉरमोनियम रिपेयर करते थे। मुंबई आने पर भी वे काफी समय तक उस दौर के बड़े संगीतकारों के सहायक के तौर पर काम करते रहे और लंबे समय के बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से संगीत निर्देशन शुरू किया।

पहली फिल्म और पहली कामयाबी

नौशाद को पहली बार स्वतंत्र रूप से 1940 में 'प्रेम नगर' में संगीत देने का अवसर मिला, लेकिन उनकी अपनी पहचान बनी 1944 में प्रदर्शित हुई 'रतन' से जिसमें जोहरा बाई अम्बाले वाली, अमीर बाई कर्नाटकी, करन दीवान और श्याम के गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए और यहीं से शुरू हुआ कामयाबी का सफर जो उनके आखिरी दिनों तक चला।

कई मशहूर गायकों को दिया मौका

अपने छह दशक मतलब 60 साल तक चले संगीत निर्देशन के करियर में उन्होंने कई मशहूर गायकों को मौका दिया जिन्होंने बाद में फिल्मी गायन की दुनिया में झण्डे गाड़े। इनमें सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। उन्होंने अपने 6 दशक के करियर में करीब 64 फिलमों में संगीत दिया।

उतार चढ़ाव और पुरस्कार सम्मान

नौशाद ने छोटे पर्दे के लिए भी काम किया। उन्होंने 'द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' और 'अकबर द ग्रेट' जैसे धारावाहिक में संगीत दिया था। अपने करियर में हर रंग देखने वाले  नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म ताजमहल के सुपर फ्लाप होने का बेहद अफसोस रहा। सौ करोड़ की लागत से बनने वाली अकबर खां की ये फिल्म रिलीज होते ही मुंह के बल गिर गई थी। मुगले आजम को जब रंगीन किया गया तो उन्हें बेहद खुशी हुई थी। उन्हें 1982 में दादा साहब फालके अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और 1992 में पदम विभूषण से सम्मानित किया गया।

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