यहाँ सफलतापूर्वक परिवार नियोजन करने वाले दंपत्तियों को नाम दिया जाता है - ‘हैप्पी दंपत्ति’। ‘इंडियन आइडल’ से प्रेरित ‘हैप्पी दंपत्ति’ कार्यक्रम का मक़सद है समुदाय के सामने उन्हीं के बीच से चुने गए अनुकरणीय दंपत्तियों को चुनना ताकि परिवार नियोजन को लेकर भ्रांतियाँ दूर की जा सकें।

इस कार्यक्रम में विभिन्न बस्तियों से ऐसे दंपत्तियों को चुना जाता है जिन्होंने अपने परिवार नियोजन को अपनाया है। उन्हें टीवी, फ़्रिज जैसी भेंटों से सम्मानित किया जाता है।

इस कार्यक्रम का संचालन किया हैं अरबन हेल्थ इनिशियेटिव (यूएचआई) नाम के संगठन ने जिसे बिल और मेलिंडा गेट्स फ़ाउंडेशन का वित्तीय समर्थन प्राप्त है।

संगठन के आंकड़ों के मुताबिक 8,000 से ज़्यादा दंपत्ति परिवार नियोजन के इस कार्यक्रम से जु़ड़ चुके हैं। हालाँकि इस कार्यक्रम की काफ़ी प्रशंसा हो रही है, ये भी कहा जा रहा है कि ज़्यादा दंपत्तियों को आकर्षित करने के लिए पुरोहितों और पुजारियों का भी सहारा लेना चाहिए।

ऐसी निजी कोशिशें नई नहीं हैं। पहले भी संस्थाएँ लोगों को परिवार नियोजन से जोड़ने की चेष्टा करती रही हैं। लेकिन इस कार्यक्रम में ज़्यादा लोगों के जुड़ने का कारण हैं इन दंपत्तियों के कार्यक्रम स्थानीय रेडियो और टेलीविज़न पर दिखाया जाना जो उन्हें समाज में महत्वपूर्ण दर्जा देता है।

रूढ़िवादी समाज की मुश्किलें

मोहम्मद वसीम और उनकी पत्नी सीमा ने भी परिवार नियोजन के तरीकों का इस्तेमाल किया है ताकि दूसरे बच्चे वक्त से पहले नहीं आए। उनके घर के चारों और गरीबी और गंदगी है। छोटे-छोटे बच्चे गलियों में कुछ न कुछ खेलते दिख जाते हैं। लेकिन उनके लिए परिवार नियोजन पर बात करना आसान नहीं था। इसलिए बीबीसी से बात करने के लिए वो एक दूसरे के घर में मिले।

वसीम का परिवार बड़ा था, इसलिए उनके लिए ज़िंदगी आसान नहीं रही। लेकिन अपनी 'बेटी साहिबा को डॉक्टर या अफ़सर' बनाना चाहते हैं। वसीम कहते हैं, "जो ज़िंदगी हमने देखी है, हम नहीं चाहते कि साहिबा को भी देखनी पड़े। आमदनी के हिसाब से छोटा परिवार ही मेरे लिए सही है। इसलिए हमने कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल किया। बड़े परिवार में होने के कारण हमें बहुत मुश्किलें पेश आईं क्योंकि पिताजी अकेले कमाने वाले थे। जब वो बीमार हो जाते थे तो बहुत परेशानी आ जाती थी। कभी-कभी हमें भूखे भी सोना पड़ता था."

पास ही की एक और बस्ती में बृजगोपाल की छोटी सी एक दुकान है और उनकी आमदनी छह हज़ार रुपए महीने के आसपास है। उनकी पत्नी मधु बताती हैं कि उन्हें भी परिवार नियोजन के तरीकों के इस्तेमाल में कोई परेशानी नहीं हुई। उनकी दो बेटियाँ परी और खुशी उनके आसपास ही खेल रही थीं।

बृजगोपाल बताते हैं, “जब रात में हमें यौन संबंध कायम करने का मन करता था तो हम कंडोम नहीं ला पाते थे। फिर हमने गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल शुरु किया। मैने गोलियाँ वहीं रखी हैं जहाँ दुकान की चाभी रखी होती है। मेरी पत्नी वक्त से गोलियाँ खा लेती हैं.” लेकिन लोगों को परिवार नियोजन के तरीकों को अपनाने के लिए प्रेरित करना आसान नहीं था।

दंपत्तियों के बीच कम बातचीत

यूएचआई के दलबीर सिंह गोदारा कहते हैं कि अभी भी कई दंपत्तियों के बीच यौन संबंध और बच्चों को लेकर बहुत कम बात होती है। वो कहते हैं, “वो ये भी बात नहीं करते थे कि उनके कितने बच्चे होने चाहिए और अगर बच्चों में अंतर रखना हो तो किन तरीकों का इस्तेमाल किया जाए। उनमें कई भ्रांतियाँ हैं, जैसे कि कॉपर टी लगाने से खून बहुत ज़्यादा निकलता है.” लेकिन लोगों की सोच बदली है। डॉक्टर राहुल कुलश्रेष्ठ अलीगढ़ में स्वास्थ्य के नगरीय केंद्रीय अफ़सर और ज़िला मलेरिया अधिकारी हैं।

वो बताते हैं कि पुरुष नसबंदी के मामलों में 10 गुना औऱ महिला नसबंदी के मामलों में दो गुना बढ़ोत्तरी हुई है। लेकिन इस कार्यक्रम से जुड़े हुए कुछ लोगों का ये भी कहना है कि ज़्यादा दंपत्तियों को परिवार नियोजन की ओर खींचने के लिए मज़हबी लोगों का सहारा लिया जाना चाहिए, ताकि “उन्हें इस बात का एहसास दिलाया जाए कि वो जन्म दर औऱ मृत्यु दर को एक तरीके से देखें.” लेकिन दंपत्तियों की सबसे बड़ी चिंता है महंगाई जिसके कारण वो सीमित परिवार चाहते हैं।

बृजगोपाल की पत्नी मधु बताती हैं कि परिवार की ओर से कभी भी उन्हें परिवार नियोजन पर शिकायत और परेशानी नहीं हुई। वो बताती हैं कि उन्होंने ऐसे परिवार देखे हैं जहाँ बड़े परिवार के कारण बच्चे अपना मन मारकर रह जाते हैं। वे कहती है, "यही देखकर मैने प्रतिज्ञा कर ली कि मेरे बच्चे ऐसे नहीं होंगे। मेरे बच्चे जो कुछ बनाने के लिए कहेंगे, मैं बनाउँगी."

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