सिटी के कई हॉस्पिटल में स्वास्थ्य विभाग की टीम को मिली खामियां

ऑपरेशन थियेटर में मिली एक्सपायरी दवाएं, अंट्रेंड स्टाफ कर रहा इलाज

35 प्रतिशत सराकारी और 65 प्रतिशत लोग प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते हैं

आगरा। लोगों का जीवन बचाने की शक्ति रखने वाले ही आज उनकी जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं। सिटी में हॉस्पिटल नहीं, बल्कि 'मौत की दुकानें' संचालित हो रही हैं। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि पिछले कुछ दिनों में प्राइवेट हॉस्पिटल में हुई पेशेंट्स की संदिग्ध मौत और इस पर स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई में हो रहे खुलासे इसकी पुष्टि करते नजर आ रहे हैं।

हॉस्पिटल का बोर्ड हटवा दिया

निरीक्षण के दौरान न्यू लाइफ हॉस्पिटल को बंद करा दिया गया। टीम को हॉस्पिटल में कोई नहीं मिला। टीम ने हॉस्पिटल के बोर्ड तक हटवा दिए। नीशू हॉस्पिटल बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहा था, वहीं गीतांजलि हॉस्पिटल प्रबंधन रजिस्ट्रेशन नहीं दिखा पाया। यहां ऑपरेशन थियेटर में एक्सपाइरी डेट की दवाएं मिलीं।

लॉक कर भाग गया

स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई की भनक शायद अंजलि हॉस्पिटल संचालक को लग चुकी थी। टीम यहां पहुंची तो ताला लटका मिला। इसका भी पता नहीं लगाया जा सका कि हॉस्पिटल में अंदर पेशेंट हैं या नहीं। टीआरपी हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन किसी दूसरे डॉक्टर के नाम से था, जबकि वहां पेशेंट का उपचार कोई और डॉक्टर कर रहा था।

दो टीमें बनाई गई

स्वास्थ्य विभाग की दो टीमों ने मंगलवार को सिटी के कई प्राइवेट हॉस्पिटल का निरीक्षण किया। पहली टीम में डॉ। अजय कपूर, डॉ। आनंद शर्मा और दूसरी टीम में डिप्टी सीएमओ डॉ। वीरेन्द्र भारती एवं अन्य प्रशासनिक अधिकारी शामिल रहे।

टीमों ने इनका किया निरीक्षण

केयरवेल हॉस्पिटल

प्राइम नर्सिंग होम

सनराइज हॉस्पिटल

गया प्रसाद हॉस्पिटल

प्राकृतिक चिकित्सालय मंडी समिति

ग्रांड व्यू मेडिकेयर हॉस्पिटल

ओम हॉस्पिटल

सरस्वती हॉस्पिटल

गीतांजलि हॉस्पिटल

अंजलि हॉस्पिटल

नीशू हॉस्पिटल

टीआरपी हॉस्पिटल

भगवान भरोसे उपचार

टीम में शामिल डॉक्टर की मानें तो इन हॉस्पिटल में मरीज भगवान के भरोसे एडमिट किए जाते हैं। उपचार के लिए जरूरी मेडिकल उपकरण भी नहीं मिले। दिन में तो कोई डॉक्टर मौजूद भी रहता है, जबकि रात में हॉस्पिटल का अंट्रेंड स्टाफ, यहां तक चपरासी ही इलाज करना शुरू कर देते हैं। इससे कई बार कैजुअलटी हो जाती है।

बंद हो जिंदगी से खिलवाड़

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार एक अनुमान के मुताबिक, 35 प्रतिशत लोग सराकारी और 65 प्रतिशत लोग प्राइवेट हॉस्पिटल में जाते हैं। प्रशासन को सरकारी मापदंडों पर खरे नहीं उतरने वाले हॉस्पिटल्स पर कार्रवाई करनी चाहिए। जिससे कि लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ न हो सके।

आज बंद, तो कल दूसरी जगह खुल जाएंगे

स्वास्थ्य विभाग की सांठगांठ से चलता है ये सारा खेल

रजिस्ट्रेशन में शामिल डॉक्टर खुद ही करते हैं किनारा

आईएमए का दावा कि राजनीतिक संरक्षण भी मिलता है

आगरा। स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई से भले ही कुछ हॉस्पिटल्स पर ताला लटक जाए, लेकिन ये भी एक सच है कि कुछ दिनों बाद ही इनका दोबारा संचालन शुरू हो जाता है। आईएमए भी इस बात का समर्थन करता है।

रिटायर्ड डॉक्टरों के नाम रजिस्ट्रेशन

आईएमए अध्यक्ष डॉ। संदीप अग्रवाल की मानें तो जिन हॉस्पिटल के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, कायदे से तो वह रजिस्टर्ड ही नहीं हैं। ये हॉस्पिटल संचालक रिटायर्ड डॉक्टरों के नाम पर रजिस्ट्रेशन करवा लेते हैं। कुछ दिनों बाद डॉक्टर खुद ही किनारा कर लेते हैं, या फिर उन्हें हटा दिया जाता है। ऐसे में तुरंत इनका रजिस्ट्रेशन कैंसिल हो जाना चाहिए, जबकि ऐसा होता नहीं है।

टीम की रहती है सांठ-गांठ

आईएमए अध्यक्ष का कहना है कि हॉस्पिटल संचालकों की स्वास्थ्य विभाग में भी साठगांठ रहती है। इससे इन हॉस्पिटल के पक्ष में स्वास्थ्य विभाग की टीम भी रिपोर्ट तैयार कर देती हैं। कुछ दिन बंद रहने के बाद दोबारा यह हॉस्पिटल संचालित होना शुरू हो जाते हैं। बताया जाता है कि इन हॉस्पिटल संचालकों को राजनीतिक शरण भी प्राप्त होती है।

कमीशन पर चल रहे हॉस्पिटल

यह हॉस्पिटल कमीशनखोरों के जरिए लाए गए मरीजों से संचालित होते हैं। सूत्रों की मानें तो एक पेशेंट को हॉस्पिटल में एडमिट कराने पर संचालक द्वारा एजेंट को 500 से 1000 रुपए तक दिए जाते हैं। यह एजेंट ऑटो-रिक्शावाले, कुछ प्राइवेट एंबुलेंसवाले होते हैं, जो मरीजों को इन हॉस्पिटल तक पहुंचाते हैं।