पिसता रहा मरीज
मगर सरकार और डॉक्टर्स की जंग में बेचारा मरीज पूरे दिन पिसता रहा। किसी को जरूरी डॉक्टरी इमदाद नहीं मिली तो कोई पूरे दिन डॉक्टर की रूटीन विजिट का इंतजार करता रहा। हम ये बिल्कुल नहीं कह रहे कि डॉक्टर्स को विरोध करने का हक नहीं है? पुरजोर तरीके से विरोध दर्ज कराने का हक सभी को है। डॉक्टर्स को भी। लेकिन अगर आपके विरोध से किसी की जान खतरे में पड़ती है तो विरोध के तरीके पर जरूर विचार करना चाहिए। विरोध के और भी प्रभावशाली तरीके हैं जिन्हें अपनाकर अपनी मांगों को सरकार के समक्ष रखा जा सकता है। आइए कुछ और तरीकों पर गौर करते हैं.

काली पट्टी
विरोध करने का ये तरीका डॉक्टरी पेशे को कर्तव्य से नहीं हटाता। आप चाहते तो काली पट्टियां बांधकर मरीजों को देखते और बीच में समय निकालकर मौन जुलूस निकाल लेते.

हस्ताक्षर अभियान
हस्ताक्षर अभियान भी विरोध करने का तरीका हो सकता था। इस अभियान को जितना चाहें बड़ा किया जा सकता था। इसमें हस्ताक्षर रथ भी निकाला जा सकता था। कुछ समय सीमा तय की जाती ताकि मरीजों को नुकसान न हो। इसमें मरीजों को भी शामिल किया जा सकता था.

भूख हड़ताल
अगर सरकार डॉक्टर्स पर अत्याचार कर रही है तो भूख हड़ताल जैसा कदम उठाया जा सकता था। भूखे रहकर भी सरकारी नीतियों का विरोध किया जा सकता है। इससे मरीजों को दिक्कत नहीं पेश आती.

अन्नागीरी
डॉक्टर्स अन्ना की राह पर चलकर अन्ना-गीरी भी कर सकते थे। डॉक्टर्स की टीम मिलकर बारी-बारी से क्रमिक अनशन पर भी बैठ सकती थी। या फिर दिन में एक घंटे के लिए सभी डॉक्टर्स मिलकर अनशन कर सकते थे। इस अनशन में भी शहर की स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को ठप नहीं कराना पड़ता.

ऑन लाइन कैंपेन
सोशल नेटवर्किंग के जरिये कई बड़े अभियानों को शुरू किया गया और वे सफल भी रहे। डॉक्टर्स चाहते तो इन सोशल साइट्स के जरिये अपने हकों को सरकार और जनता दोनों के सामने रखते। ये अभियान बहुत तेजी से लोगों के बीच अपनी जगह बना लेता और लोग डॉक्टर्स के हक में एकजुट हो खड़े होते। अगर किसी अभियान को आमजन का समर्थन मिल जाए तो वो स्ट्रांग बन जाता है.

मरीजों को जोडक़र
डॉक्टर्स अपनी लड़ाई में अपने पेशेंट्स की भी भागीदारी जुटा सकते थे। डॉक्टर्स जिनके लिए काम करते हैं अगर वे भी उनकी बात का समर्थन करें तो मांग में दम खुद आ जाता है। लेकिन अगर मरीजों को डॉक्टर्स की हड़ताल की वजह से परेशान होना पड़े तो मरीज उनका कभी समर्थन नहीं करेंगे.

बंद रहे क्लीनिक
एनसीएचआरएच बिल, केमिकल स्टेबलिशमेंट बिल (रजिस्ट्रेशन व रेगुलेशन) और मेडिकल काउंसिल को भंग करने के कानून के विरोध में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने सोमवार को देशव्यापी बंद किया। इस विरोध में क्लीनिक, ओपीडी समेत डाइग्नोसटिक सेंटर बंद रहे। केवल आपात कालीन सुविधाएं ही चालू रहीं। इस विरोध में आईएमए मेरठ के डॉक्टर्स पूरी तरह शामिल रहे.

मौन जुलूस निकला
सुबह सभी डॉक्टर्स ने बच्चा पार्क स्थित आईएमए भवन से मौन जुलूस निकाला। ये जुलूस वेस्टर्न कचहरी रोड होते हुए कमिश्नरी पार्क में जाकर समाप्त हुआ। सभी डॉक्टर्स ने डीएम और सीएमओ को अपना शिकायती ज्ञापन दिया। जुलूस में तकरीबन 350 निजी डॉक्टर्स ने भाग लिया। इसमें डॉ। वीपी कटारिया, डॉ। प्रदीप बंसल, डॉ। अम्बेस पंवार, डॉ। एसके गुप्ता, डॉ। नेहरा, डॉ। पल्लव अग्रवाल, डॉ। ऋषि भाटिया, डॉ। अनीस खान, डॉ। पीके गुप्ता और डॉ। एसएस शर्मा समेत तमाम डॉक्टर्स मौजूद थे.