-ओवर बर्डन के कारण मानसिक तनाव से जूझ रहे डॉक्टर

-रोजाना हो रहा तीमारदारों के साथ झगड़ा, सीनियर भी करते हैं प्रताडि़त

LUCKNOW:

केजीएमयू में रेजीडेंट की भारी कमी है। जिसके कारण वे लगातार 24 से 36 घंटे काम करने को मजबूर हैं। कई कई बार उनसे 48 घंटे तक काम लिया जाता है। मरीजों की गालीगलौज के साथ सीनियर्स की प्रताड़ना भी सहनी पड़ती है। कभी मुर्गा बनाया जाता है, तो कभी टेबल और मेज पर कान पकड़ाकर खड़ा किया जाता है।

और खड़ा कर दिया टेबल पर

यह तस्वीर केजीएमयू के एक विभाग की है। जिसमें एक रेजीडेंट डॉक्टर को सीनियर्स ने प्रताडि़त करने के लिए टेबल पर कान पकड़ कर खड़ा कर दिया। वह गिड़गिड़ाता रहा लेकिन सीनियर नहीं पसीजे। दरअसल यह सीन केजीएमयू में ज्यादातर विभागों में दिखाई देता है। पीडियाट्रिक, आर्थोपेडिक, जनरल सर्जरी, मेडिसिन, गाइनी विभागों में दिक्कत ज्यादा है। इनमें इमरजेंसी चलती है और हमेशा मरीजों की संख्या बेड की संख्या से अधिक रहती है। रेजीडेंट्स के अनुसार काम का दबाव एचओडी की तरफ से आता है और अंत में इसे फैकल्टी होते हुए जेआर को ही झेलना पड़ता है।

18 से 36 घंटे काम कर रहे रेजीडेंट्स

ट्रॉमा सेंटर के एक रेजीडेंट ने बताया कि केजीएमयू प्रशासन ने 12 घंटे तक सभी रेजीडेंट डॉक्टर्स की ड्यूटी बदलने के आदेश दिए थे। लेकिन यह किसी भी विभाग में लागू नहीं है। रेजीडेंट्स की कमी और ओवर बर्डन में 24 से 36 घंटे तक काम कराया जा रहा है। हफ्ते हफ्ते भर तक न नहाने का समय मिलता है और ना ही जूते-मोजे उतारने का। पढ़ाई और काम के प्रेशर के कारण वार्ड में ही या स्टूल पर झपकी लेने को मजबूर हैं।

ज्यादातर डिप्रेशन के शिकार

कुछ वर्ष पहले केजीएमयू के टीचर्स ने ही यहां रेजीडेंट डॉक्टर्स पर सर्वे किया था। जिसमें निकल कर आया कि ज्यादातर डॉक्टर काम के बोझ से डिप्रेशन और अन्य मानसिक समस्याओं की चपेट में हैं। जिसका असर इलाज पर पड़ रहा है।

मरीजों का बोझ अधिक है। सीनियर्स का दबाव अधिक है। सीनियर्स द्वारा उन्हें प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। यदि सीनियर जूनियर को प्रताडि़त करते हैं तो यह रैगिंग है। जांच कराकर दोषी को सजा दी जाएगी।

प्रो। नर सिंह वर्मा, प्रवक्ता, केजीएमयू